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प्रकृति का प्रकाश पर्व है शरद पूर्णिमा

पूरे माह गांव कस्बों में लगनेवाले मेले के माध्यम से लोकपर्व अपनी विविधता एवं विशिष्टता को प्रकट करते हैं. मेले जनमन का उत्सव होते हैं. ये लोकपर्व ही हमारे शास्त्रीय जीवन को लचीला और ग्राह्य बनाते हैं.

डॉ मयंक मुरारी

अध्यात्म लेखक

प्रकृति, मानव और देवता की दीपावली के माध्यम से मानव की चेतना को देवत्व में प्रतिष्ठित करने का अनुष्ठान चातुर्मास के अंतिम माह में चलता है. यह यात्रा तम, रज से सत की ओर आरोहण का है. इसकी शुरुआत शक्ति की आराधना से होती है. शक्ति एवं साधना से परिपूर्ण मानव मन और तन को सुख तथा समृद्धि की कामना होती है, जो नवरात्र में माता दुर्गा की आराधना से शुरू होती है. फिर जीवन के चेतना में इसके क्षणभंगुरता की अनुभूति होती है, तब हम कार्तिक के दूसरे पक्ष में जगद्धात्री माता लक्ष्मी की पूजा लोक जीवन में सात्विकता के संचार के लिए करते हैं. कौमुदी पूर्णिमा में रास से जीवन संगीत की यात्रा शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा को कामना शून्य होकर जीवन को दिव्यता एवं ईशरस में रंगने का कर्म शुरू होता है. गांव-कस्बों में लगनेवाले मेले, नदी एवं पर्वत के किनारे पर्व का प्रतिष्ठान हमारे जीवन कर्म में संवेदना एवं सामूहिकता को सशक्त एवं सर्वग्राही बनाने की क्रिया है.

जब भारतीय चिंतन में ‘जीवेम शरदः शतम्’ की बात कही गयी है, जो अकारण नहीं है. शरद ऋतु को भारतीय संस्कृति में परिघटना का कालखंड माना गया है, जिसमें उत्सव और त्योहार के शास्त्रीय पक्ष हैं, तो दूसरी ओर लोक से संबल पाने वाले पर्व और मेले हैं. पूरे माह गांव कस्बों में लगनेवाले मेले के माध्यम से लोकपर्व अपनी विविधता एवं विशिष्टता को प्रकट करते हैं. मेले जनमन का उत्सव होते हैं. ये लोकपर्व ही हमारे शास्त्रीय जीवन को लचीला और ग्राह्य बनाते हैं. कौमुदी पूर्णिमा प्रकृति का प्रकाश पर्व है. इसके ठीक पंद्रह दिनों बाद संस्कृति यानी मानव का प्रकाश पर्व दीपावली आता है और दीपावली के पंद्रह दिनों के पश्चात देवताओं का प्रकाश उत्सव आता है. शरद पूर्णिमा के चंद्रिकोत्सव में प्रकृति अपने अमृत कणों से जन-मन को आप्लावित कर उनमें स्फूर्ति एवं शक्ति का संचार कर देती है. इसके बाद मानव जीवन में आलोक का आगमन सहज हो पाता है. ज्योतिमय आलोक से अनुप्राणित एवं अनुशासित मानव मन देवत्व की यात्रा करता है.

दिव्य जीवन में भागवत चेतना का प्रस्फुटन कार्तिक पूर्णिमा को होती है और कामना शून्य चेतना का आरोहण परमात्मा में होता है. परमात्मा ने मनुष्य एवं सभी प्राणियों के साथ प्रकृति के लिए शरद के रूप में ऋतुओं का अमृत सौगात दिया है. यह ऐसा सौगात है, जिसके प्रकाश से प्रकाशित जन-मन बार-बार जीना और भोगना चाहता है. इसमें जहां श्रीकृष्ण का महारास है, वही असुरी शक्ति पर मातृशक्ति के विजय का जयघोष है. जीवन में प्रकृति की अनुकूलता तथा मन की प्रसन्नता से शांति मिलती है. क्वांर-कार्तिक का शरद मास तन और मन दोनों के लिए वरदान है. शरद मास अपने साथ जन-धन के साथ वनस्पतियों में फल, फूल की प्रचुरता तथा धन-धान्य के रूप में माता लक्ष्मी आती है. बारह माह का यही एकमात्र मास होता है, जिसमें सुख समृद्धि के साथ पंचतत्वों का संतुलन होता है. जलवायु समशीतोष्ण, प्रकृति खुशहाल और जीवन में रस तथ रंग के भरपूर अवसर होते हैं. इसलिए भारतीय जीवन में शरद के हरेक दिन को उत्सव बना दिया गया. इन पर्वों और त्योहारों के माध्यम से जीवन में तप, व्रत, साधना और संकल्प की यात्रा की जाती है. असत्य पर सत्य की विजय, अंधकार को प्रकाश से आलोकित करने के पश्चात जीवन को अनंत यात्रा की ओर ले जाया जाता है.

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