Sharad Purnima Benefits: हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है. साल भर में 12 पूर्णिमा आती हैं. आश्विन माह की पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सबसे खास माना जाता है. इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा कहा जाता है, इस साल शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को मनाया जाएगा. इस दिन व्रत रखने का विधान है. कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत की वर्षा होती है, क्योंकि उस समय चंद्रमा अपने 16 कलाओं से युक्त होकर अमृत वर्षा करता है. आइए ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री से जानते है शरद पूर्णिमा से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें…
भगवान श्रीकृष्ण और राधा की अदभुत और दिव्य रासलीलाओं का आरम्भ भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ. पूर्णिमा की श्वेत उज्जवल चांदनी में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी नौ लाख गोपिकाओं के साथ स्वंय के ही नौ लाख अलग-अलग गोपों के रूप में आकर ब्रज में महारास रचाया था. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और वह अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. इस रात्रि में चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है. उज्ज्वल चांदनी में सारा आसमान धुला नजर आता है, हर तरफ चन्द्रमा के दूधिया प्रकाश में प्रकृति नहा उठती है.
शास्त्रों के अनुसार, माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है. नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती है और माता यह भी देखती है- कि कौन जाग रहा है? यानि अपने कर्त्तव्यों को लेकर कौन जागृत है? जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते है. मां लक्ष्मी की उन पर असीम कृपा होती है, प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह व्रत लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला है.
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शरद पूर्णिमा के दिन सूतक काल दोपहर 03 बजे लगने जा रहा है और सूतक काल लग जाने के बाद पूजा पाठ नहीं किया जाता है. वहीं शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना की जाती है और इस दिन चंद्र अर्ध्य भी दिया जाता है. ऐसे में पूजा सूतक प्रारंभ होने से पूर्व कर लें और ग्रहण की समाप्ति के बाद मंत्रों का जाप करें. चन्द्रमा को अर्घ्य दें, दान-पुण्य करें, इससे सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे.
शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ चन्द्रमा की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए. कुंआरी कन्याएं इस दिन सुबह सूर्य और चंद्रदेव की पूजा अर्चना करें तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि जो लोग इस रात लक्ष्मी जी की विधि विधान से पूजा करके श्री सूक्त का पाठ, कनकधारा स्त्रोत, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते है, उनकी कुण्डली में धनयोग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं.
इस बार कई साल बाद शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है और इस दिन रात में खीर भी खुले आसमान में रखी जाती है, ताकि उसमें चन्द्रमा से अमृत वर्षा हो सके, लेकिन इस साल खीर को पूरी रात बाहर ना रखें, इससे वह दूषित हो जाएगी. ग्रहण 28 अक्टूबर की रात 01 बजकर 05 मिनट में लगने जा रहा है और समाप्ति 02 बजकर 23 मिनट पर होगी. इसलिए ग्रहण समाप्त होने के बाद ही यानि 02 बजकर 23 मिनट के बाद ही स्न्नान कर खीर बनाएं और फिर उसे खुले आसमान के नीचे रखें और सुबह भगवान का भोग लगाकर खीर का प्रसाद ग्रहण करें.
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शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर चांदनी रात में रखने की परंपरा है, लेकिन इस दिन लगने वाले ग्रहण को लेकर लोग दुविधा में हैं. ऐसी परिस्थिति में सूतक से पहले ही खीर बनाकर भगवान को भोग लगाकर खीर में तुलसी पत्र, कुशा रख दें. अन्यथा सूतक से पहले दूध में कुशा रख दें और मोक्ष के बाद स्नानकर खीर बनाएं और आंगन में रख दें. अगले दिन सुबह भगवान को भोग लगाकर प्रसाद स्वरूप उसका सेवन करें.