Shardiya Navratri 2020: दुर्गा पूजा पंडालों में महिला ढाकियों ने बनायी अलग पहचान, जानें क्या है इनकी खासियत …
Shardiya Navratri 2020: बंगाल में दुर्गापूजा का एक विशेष महत्व है. भव्य रोशनी व सजावट के बीच ढाकियों की ढाक व रिदम से उत्सव की रौनक बढ़ा जाती है. पिछले कुछ सालों से दुर्गापूजा पंडालों में महिला ढाकियां आ रही हैं. कई बड़े पूजा पंडालों में महिला ढाकियों को आमंत्रित किया जाता है. मसलंदपुर, पुरुलिया, बांकुड़ा जैसे जिलों में तीन-चार पीढ़ी तक ढाक बजाने के व्यवसाय से जुड़े कलाकार अब अपने परिवार की महिलाओं के साथ गांव की अन्य गृहिणियों को भी ढाक का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रहे हैं.
Shardiya Navratri 2020: बंगाल में दुर्गापूजा का एक विशेष महत्व है. भव्य रोशनी व सजावट के बीच ढाकियों की ढाक व रिदम से उत्सव की रौनक बढ़ा जाती है. पिछले कुछ सालों से दुर्गापूजा पंडालों में महिला ढाकियां आ रही हैं. कई बड़े पूजा पंडालों में महिला ढाकियों को आमंत्रित किया जाता है. मसलंदपुर, पुरुलिया, बांकुड़ा जैसे जिलों में तीन-चार पीढ़ी तक ढाक बजाने के व्यवसाय से जुड़े कलाकार अब अपने परिवार की महिलाओं के साथ गांव की अन्य गृहिणियों को भी ढाक का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रहे हैं. लगभग 100 महिला ढाकियों के ग्रुप-लीडर गोकुल दास ने जानकारी दी कि वह 45 सालों से ढाक बजाने का काम कर रहे हैं. उनकी तीन पीढ़ियां इसी काम में लगी हुई थीं.
ढाकी के रूप में प्रसिद्ध उनके पिताजी मोतीलाल दास को बुलाना कोलकाता पूजा पंडालों के लिए स्टेटस सिम्बल हुआ करता था. उन्हीं के पदचिन्हों पर चल कर वह मसलंदपुर मोतीलाल ढाकी डॉट कॉम के अंतर्गत 110 महिलाओं को ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं. समिति में काम कर रहीं महिलाओं ने बताया : हम घर में बेकार बैठे रहते थे लेकिन ढाक की ट्रेनिंग लेने के बाद काफी रोजगार हो रहा है. पंडालों के अलावा विदेश में भी उन्हें उत्सव में ढाक बजाने के लिए बुलाया जाता है. दस साल से ढाक बजाने वाली सुनीता दास ने बताया कि वह 14 साल की उम्र से ढाक बजा रही हैं. ढाक सिखाने वाले हमारे परिजन ही हैं. कहा-ढाक बजाने के साथ पढ़ाई भी कर रही हूं. ढाक से होने वाली आय से ट्यूशन फीस के अलावा सभी र्खच निकल जाते हैं.
ढाकी के रूप में मम्पी दास व पूजा विश्वास ने बताया कि वे साधारण गृहिणी हैं, ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं लेकिन ढाक से उनकी प्रति माह 12-15 हजार की कमाई हो जाती है. गांव में उनके पास और कोई रोजगार नहीं है. ढाक के भरोसे ही उनके परिवार में खुशहाली बनी रहती है. कई बेरोजगार महिलाओं को ढाक ने सशक्त बनाया है. पूरी महिला टीम एक ही यूनिफॉर्म में सज-धज कर पंडालों में ढाक बजाती हैं. यह काम उनको बेहद पंसद हैं, क्योंकि इससे रोजगार के साथ उनका सम्मान भी बढ़ा है. पंडाल के अलावा अब तो टीवी के बड़े म्यूजिक प्रोग्राम, शादी-ब्याह, नयी लांचिंग व उद्घाटन समारोह में भी वे लोग महिला ढाकियों को बहुत प्यार से आमंत्रित कर रहे हैं.
मसलंदपुर मोतीलाल ढाकी डॉट कॉम के सचिव गोकुल चंद्र दास ने बताया कि दुर्गापूजा में विदेश में भी महिला ढाकियों की मांग बढ़ जाती है. महिला ढाकी तंजानिया में परफॉर्म कर चुकी हैं. इस साल महिला ढाकी के ट्रूप को लंदन जाना था, यह लेकिन महामारी के कारण स्थगित हो गया. पिछले वर्ष कोलकाता के 35-40 बड़े पूजा पंडालों ने महिला ढाकियों को बुलाया था. इस साल उनके ट्रुप की संगीता दास, मानती दास, दीपिका दास, नीपा, बंटी दास, झुम्पा मंडल सहित मात्र 15 महिलाएं कोलकाता गयी हैं. न्यू अलीपुर के सुरुचि संघ के लिए 10 महिला ढाकी और बागबाजार पूजा कमेटी के लिए पांच महिला ढाकी जा रही हैं. इस बार स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों को मानते हुए सैनिटाइजर, मास्क व ग्लब्स के साथ महिलाएं ढाक बजायेंगी.
शादी-ब्याह, टीवी कार्यक्रम में भी ढाक बजा कर महिलाएं कर रही हैं अच्छा रोजगार
लगभग सात-आठ साल से ढाक बजाने वाली काजोल तालुकदार, प्रियंका मंडल व रिनी दास ने बताया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की ढाक हल्की है. इसका वजन 6-7 किलो है,क्योंकि ढाक की बॉडी टिन की है. पुरुष जो बजाते हैं, उसका वजन 13 किलो है और वह काठ की ढाक होती है. लगातार दो-तीन घंटे ढाक बजाने का अब उनका अभ्यास हो गया है, इसलिए कोई परेशानी नहीं होती है. उनकी ढाक से हर शो का माहौल बदल जाता है. उत्सव की रोशनी व लोगों के हुजूम से उन्हें भी प्रसन्नता होती है.
News Posted by: Radheshyam Kushwaha