Sheetla Ashtami 2020 : ऐसे करें शीतला अष्टमी की पूजन, जानें… क्यों चढ़ाये जाते हैं बासी प्रसाद

पटना : शीतला अष्टमी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है. माता शीतला का यह पर्व किसी न किसी रूप में देश के हर कोने में मनाया जाता है. शीतला अष्टमी अामतौर पर होली के आठवें दिन मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 16 मार्च को है. मान्यता है कि शीतला माता अपने भक्तों के […]

By Samir Kumar | March 11, 2020 9:11 PM
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पटना : शीतला अष्टमी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है. माता शीतला का यह पर्व किसी न किसी रूप में देश के हर कोने में मनाया जाता है. शीतला अष्टमी अामतौर पर होली के आठवें दिन मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 16 मार्च को है. मान्यता है कि शीतला माता अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं. चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाये जाने वाले शीतला अष्टमी को ही कई जगहों पर बसौड़ा या बसोरा भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए. साथ ही इस दिन एक दिन पहले का बना हुआ बासी भोजना माता को भोग के तौर पर चढ़ाया जाता है.

स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में वर्णन

स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं. यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) तथा नीम के पत्ते धारण किये होती हैं. साथ ही गर्दभ की सवारी किये यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं. शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं. इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है.

शुभ मुहूर्त

इस बार शीतला अष्टमी 16 मार्च (सोमवार) को है. अष्टमी तिथि की शुरुआत 16 मार्च को तड़के 03:19 बजे से हो रही है. इसका समापन 17 मार्च को सुबह 02:59 बजे होगा. शीतला माता का आशीर्वाद पाने के लिए सप्तमी और अष्टमी दोनों दिन व्रत किया जाता है.

ठंडी चीजें बहुत पंसद करती हैं शीतला माता

शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि शीतला माता को ठंडी चीजें बहुत पसंद हैं. इस कारण उनके लिए सप्तमी की रात को चावल गुड़ या गन्ने के रस से भाेजन बनाया जाता हैं. इसी कारण इस व्रत को बसौड़ा भी कहा जाता है. ऐसा कहते हैं कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाना चाहिए.

पूजा की विधि

व्रत के दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद पूजा की थाली तैयार करनी चाहिए. थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी के दिन बने मीठे चावल, मठरी आदि को रखें. एक दूसरी थाली भी लें. उसमें आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, सिक्के और मेहंदी रखें. दोनों थाली के साथ ठंडे पानी का लोटा भी रखें. अब शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाये मंदिर में रखें. माता को सभी चीजें एक-एक कर चढ़ाएं और विधिवत पूजा करें. घर में पूजा के बाद मंदिर में पूजा करें. अंत में जल चढ़ाये और बचे हुए जल को घर के सभी सदस्यों के आंखों पर लगाये. कुछ जल घर के हिस्सों में भी छिड़के. बचे हुए पानी को घर आकर पूजा के स्थान पर रखें. अगर पूजा साम्रगी बच जाये तो गाय या ब्राह्मण को दें.

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