Sheetla Ashtami Vrat katha: हिन्दुओं का प्रमुख त्योहारों में शामिल शीतला अष्टमी व्रत है. इस दिन शीतला माता के व्रत और पूजन की जाती है. शीतला अष्टमी व्रत होली सम्पन्न होने के बाद अगले सप्ताह में करते हैं. इस दिन शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार तथा गुरुवार के दिन ही की जाती है. अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है. शीतला अष्टमी व्रत के दौरान व्रत कथा जरूर सुनना चाहिए. मान्यता है कि बिना व्रत कथा सुनें पूजा अधूरी मानी जाती है….
एक बार एक राजा के इकलौते पुत्र को शीतला (चेचक) निकली. उसी के राज्य में एक काछी-पुत्र को भी शीतला निकली हुई थी. काछी परिवार बहुत गरीब था, पर भगवती का उपासक था. वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भी भली-भांति निभाता रहा. घर में साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता था. नियम से भगवती की पूजा होती थी. नमक खाने पर पाबंदी थी. सब्जी में न तो छौंक लगता था और न कोई वस्तु भुनी-तली जाती थी. गरम वस्तु न वह स्वयं खाता, न शीतला वाले लड़के को देता था. ऐसा करने से उसका पुत्र शीघ्र ही ठीक हो गया.
उधर जब से राजा के लड़के को शीतला का प्रकोप हुआ था, तब से उसने भगवती के मण्डप में शतचण्डी का पाठ शुरू करवा रखा था. रोज हवन व बलिदान होते थे. राजपुरोहित भी सदा भगवती के पूजन में निमग्न रहते. राजमहल में रोज कड़ाही चढ़ती, विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन बनते. सब्जी के साथ कई प्रकार के मांस भी पकते थे. इसका परिणाम यह होता कि उन लजीज भोजनों की गंध से राजकुमार का मन मचल उठता. वह भोजन के लिए जिद करता. एक तो राजपुत्र और दूसरे इकलौता, इस कारण उसकी अनुचित जिद भी पूरी कर दी जाती.
एक बार एक राजा के इकलौते पुत्र को शीतला (चेचक) निकली. उसी के राज्य में एक काछी-पुत्र को भी शीतला निकली हुई थी. काछी परिवार बहुत गरीब था, पर भगवती का उपासक था. वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भी भली-भांति निभाता. इस पर शीतला का कोप घटने के बजाय बढ़ने लगा. शीतला के साथ-साथ उसे बड़े-बड़े फोड़े भी निकलने लगे, जिनमें खुजली व जलन अधिक होती थी. शीतला की शांति के लिए राजा जितने भी उपाय करता, शीतला का प्रकोप उतना ही बढ़ता गया. क्योंकि अज्ञानतावश राजा के यहां सभी कार्य उलटे हो रहे थे. इससे राजा और अधिक परेशान हो उठा. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सब होने के बाद भी शीतला माता का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है.
एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि काछी-पुत्र को भी शीतला निकली थी, पर वह बिलकुल ठीक हो गया है. यह जानकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला माता की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी बढ़ता जा रहा है, जबकि काछी पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया. इसी सोच में उसे नींद आ गई. श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा- ‘हे राजन्! मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से प्रसन्न हूं. इसीलिए आज भी तुम्हारा पुत्र जीवित है.
इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया. तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए. नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है. घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इसकी गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है. रोगी का किसी के पास आना-जाना मना है. यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है. अतः इन नियमों का पालन कर, तेरा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा.
Posted by: Radheshyam Kushwaha