Shiv Parvati Marriage: हिंदू धर्म में शिवरात्रि का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और पार्वती की शादी हुई थी. क्या आप जानते है कि भगवान शिव और पार्वती का विवाह किस जगह हुआ था. वह विवाह स्थल कहा है. पौराणिक कथा के अनुसार पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए जिस स्थान पर तपस्या की थी, वह जगह गौरी कुंड कहलाती है. जिस स्थान पर भगवान शिव का विवाह हुआ था, वह स्थान त्रियुगीनारायण मंदिर कहलाता है.
भगवान शिव ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था. मान्यता है कि जिस हवन कुंड की अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव ने माता पार्वती जी से विवाह किया था वो अग्नि की ज्योति त्रेतायुग से आजतक निरंतर जल रही है. आज भी यहां अनेक जोड़े विवाह के बंधन में बंधते आ रहे है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती जी पर्वतराज हिमावन की पुत्री थीं. पार्वती के रूप में मां सती का पुनर्जन्म हुआ था. अपने इस जन्म में भगवान शिव से विवाह करने के लिए माता पार्वती ने कठिन ध्यान और साधना की थी. जिस स्थान पर मां पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए कठोर साधना की, उस स्थान को गौरी कुंड कहते हैं. जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं, वे गौरीकुंड के दर्शन भी जरूर करते हैं. पौराणिक ग्रंथ के अनुसार भगवान शिव जी ने गुप्त काशी में माता पार्वती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.
भगवान शिव के प्रस्ताव के बाद शिव-पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी, सोन और गंगा के मिलन स्थल पर हुआ था. विवाह में आए सभी देवताओं ने यहां स्नान किया और इसलिए यहां तीन कुंड भी बने हैं, जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं. इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है. मान्यता है कि सरस्वती कुंड का निर्माण भगवान विष्णु की नासिका से हुआ था. इन कुंड में स्नान से संतानहीन जोड़ों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस विवाह में भगवान विष्णु देवी पार्वती के भ्राता बने थे और ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे. कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान वामन ने भी अवतार लिया था. आज भी बहुत से भक्त यहां दर्शन करने के लिए आते हैं और भगवान उनकी मनोकामना पूर्ण होती हैं.
Posted by: Radheshyam Kushwaha