हरि को सिर पर बैठाते हैं शिव, हरि-हर मिलन के साथ खेली जाती है बाबाधाम में होली
शिवलिंग की कहानी से जुड़ी है हरि और हर के मिलन का संबंध, The relationship between Hari and Hari is related to Shivling History
होली का त्योहार यूं तो पूरे देश में मनाया जाता है. देश के अलग-अलग जगहों पर इसके विविध रंग भी देखने को मिलते हैं. वहीं, झारखंड के देवघर में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा बैद्यनाथ धाम की होली काफी अनूठी और अलग होती है.
इस दिन यहां भगवान श्रीविष्णु (हरि) स्वयं आकर भगवान शिव (हर) के साथ होली खेलते हैं. यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां होली के दिन हरि का हर से मिलन होता है. चैत्र कृष्ण प्रतिपदा पर होनेवाले इस मिलन समारोह के बाद ही भक्त भगवान शिव पर गुलाल चढ़ाते हैं. इस मिलन के बाद बाबानगरी में होली शुरू हो जाती है.
सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, मंदिर परिसर स्थित राधा-कृष्ण मंदिर से विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की प्रतिमा को काफी उत्साह के साथ बाबा बैद्यनाथ मंदिर के गर्भगृह में ले जाकर बाबा बैद्यनाथ के शिवलिंग के ऊपर रखा जाता है. इस तरह हरि का हर के साथ मिलन कराया जाता है. इसके बाद देवघर में होली का उत्सव शुरू हो जाता है. इस अनोखे होली मिलन को देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु हर साल देवघर आते हैं. साथ ही हरि और हर के मिलन के बाद आपस में रंग-अबीर लगाकर होली खेलते हैं.
हरि और हर के मिलन का संबंध देवघर के शिवलिंग की कहानी से जुड़ा माना जाता है. कथाओं के अनुसार, रावण स्वयं भगवान शिव से वरदान में शिवलिंग लेकर लंका जा रहे थे. रास्ते में जब रावण को लघुशंका लगी, तो उसने शिवलिंग को ब्राह्मण के वेष में आये भगवान विष्णु (हरि) को थमा दिया. भगवान विष्णु ने उस शिवलिंग को थोड़ी देर बाद वहीं जमीन पर रख दिया. शिवलिंग देते समय शिवजी ने रावण से कहा था कि शिवलिंग जहां भी एक बार भूमि पर रख दिया जायेगा, वह वहीं पर स्थापित हो जायेगा. इस तरह शिवलिंग को रावण अपने साथ लंका नहीं ले जा सका था. हर (शिव) के शिवलिंग की देवघर में स्थापित होने में हरि का साथ होने के कारण हर साल हरि और हर का मिलन देवघर में कराया जाता है.