Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का समय है. श्राद्ध पक्ष में तर्पण, पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया जी में आज से श्राद्ध करने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. श्राद्धकर्म विधान- पहला व दूसरा दिन त्रिपाक्षिक श्राद्ध के अंतर्गत गया श्राद्धार्थी भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि यानी गुरुवार को पुनपुन नदी में पहला पिंडदान व तर्पण करते हैं. पितृमुक्ति के निमित्त जो श्रद्धालु अपने पितर का पहला श्राद्धकर्म पुनपुन में नहीं कर सीधा गयाजी चले आते हैं. उनके लिए गोदावरी सरोवर के तट पर पिंडदान कर तर्पण को विधान है. इसके बाद गयाजी में प्रवेश कर दूसरे दिन शुक्रवार को यानी भाद्र पद पूर्णिमा के दिन फल्गु (महानदी) तीर्थ पर तर्पण करें. इससे पहले फल्गु के निर्मल जल से स्नान करें.
देवर्षि पितृ तर्पण करके अपने वेद शाखा के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करें. कहा गया फल्गु तीर्थ सभी तीर्थों से श्रेष्ठ होने से सर्व प्रथम फल्गु तीर्थ जाकर तर्पण श्राद्ध करना चाहिए. वहां श्राद्ध करने से पितरों की मुक्ति तथा करने वालों का तरण होता है. ब्रह्मा जी की प्रार्थना से भगवान विष्णु फल्गु रूप धारण किये. दक्षिणाग्नि में ब्रह्मा जी के द्वारा हवन किये जाने पर फल्गु तीर्थ की उत्पति हुई. अखिल ब्रह्मांड में जितने भी तीर्थ हैं, वे सब देवताओं के साथ फल्गु तीर्थ में नित्य स्नान करने आते हैं.
गंगा भगवान का पादोदक है और फल्गु तो स्वयं आदि गदाधर के रूप में हैं. स्वयं भगवान किया है. उक्त जानका विष्णु द्रव रूप में हैं. इससे गंगा से अधिक फल्गु को जानना चाहिए. जो इसलिए मनुष्य फल्गु कोई एक हजार अश्वमेघ यज्ञों को एक सपिंडों का तर्पण श्राद्ध हजार बार कर ले, तब भी फल्गु तीर्थ अनुसार करके पितामह के प्राप्ति के बराबर नहीं हो सकते. इसलिए मनुष्य फल्गु तीर्थ में अपने जल स्पर्श कर जो देवर्षि पितृ तर्पण सपिंडों का तर्पण श्राद्ध अपने सूत्र के करता है वह अक्षय लोगों को प्राप्त अनुसार करके पितामह शंकर जी को करता है तथा अपने कुल का भी प्राप्ति के बराबर नहीं हो सकते. नमस्कार करे. महानदी फल्गु का उद्धार करता है.
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तीर्थस्थली गयाजी में 28 सितंबर से शुरू हो रहे 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के पहले दिन गयाजी के गोदावरी सरोवर अथवा पुनपुन नदी में पिंडदान का विधान है. शास्त्रों के अनुसार जो श्रद्धालु पुनपुन जाने में असमर्थ होते हैं, गयाजी स्थित गोदावरी सरोवर में पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड करने से पुनपुन नदी में कर्मकांड करने के समान फल की प्राप्ति कि मान्यता है. गयाजी में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है.
पितरों की मुक्ति के लिए मोक्ष धाम में पिंडदान करना सबसे उत्तम कहा गया है. यही कारण है कि यहां पिंडदान की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. प्रत्येक वर्ष के आश्विन मास में यहां 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले का आयोजन होता आ रहा है. त्रेता युग से लेकर द्वापर युग से जुड़े देवी-देवताओं के अलावा ऋषि-मुनि व राजा-महाराजाओं ने भी अपने पितरों के उद्धार के लिए यहां पिंडदान का कर्मकांड किया है. उक्त जानकारियां वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है.
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सबसे पहले प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके पितरों के चित्र पर पुष्प अर्पित करें.
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सबसे पहले आप देवताओं के लिए पूर्व दिशा में मुख करके कुश और अक्षत से तर्पण करें.
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इसके बाद जौ और कुश लेकर ऋषियों के लिए तर्पण करें.
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फिर दक्षिण दिशा में अपना मुख कर लें, उसके बाद कुश और जौ से तर्पण करें.
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अंत में दक्षिण दिशा में मुख करके काले तिल व कुश से तर्पण करें.
हमें पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करते समय पूजन सामग्री में विशेष रूप से रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी, रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काली तिल, तुलसी के पत्ते, पान, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी दीया, कपास, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर इत्यादि चीजों को अवश्य शामिल करनी चाहिए. पितृ पक्ष में इन सामग्री को पूजन में शामिल करने से पितर प्रसन्न हो जाते है.
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29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार- पूर्णिमा श्राद्ध
29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार- प्रतिपदा श्राद्ध
30 सितंबर 2023 दिन शनिवार- द्वितीया श्राद्ध
01 अक्टूबर 2023 दिन रविवार- तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार- चतुर्थी श्राद्ध
03 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार- पंचमी श्राद्ध
04 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार- षष्ठी श्राद्ध
05 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार- सप्तमी श्राद्ध
06 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार- अष्टमी श्राद्ध
07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार- नवमी श्राद्ध
08 अक्टूबर 2023 दिन रविवार- दशमी श्राद्ध
09 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार- एकादशी श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार- द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार- त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार- चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार- सर्व पितृ अमावस्या