Som Pradosh Vrat Katha: इस व्रत कथा को पढ़ें बिना प्रदोष व्रत रह जाएगी अधूरी, पूजा के बाद जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

Som Pradosh Vrat 2024: आज वैशाख मास के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि शाम 3 बजकर 10 मिनट के बाद शुरू हो जाएगी. आज प्रदोष व्रत है. क्योंकि प्रदोष व्रत की पूजा त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में करने का विधान है. इसलिए आज ही शाम के समय प्रदोष व्रत की पूजा की जाएगी.

By Radheshyam Kushwaha | May 20, 2024 11:10 AM

Som Pradosh Vrat Katha: सनातन धर्म में हर महीने के त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखने की परंपरा है, इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. प्रदोष व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू किया जा सकता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. वहीं सोम प्रदोष व्रत रखने से मनचाही इच्छा पूरी होती है. भगवान शिव का वार होने के कारण ये प्रदोष व्रत बहुत प्रभावशाली हो जाता है. सोम प्रदोष के दिन चन्द्रमा से जुड़ी समस्याओं का निवारण आसानी से किया जा सकता है. आर्थिक तंगी दूर करने के लिए प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए. प्रदोष व्रत के प्रभाव से रोग दूर हो जाते हैं, इसके साथ ही विवाह की बाधाएं दूर होती हैं.

सोम प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, एक नगर में एक गरीब ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. उसका अब कोई सहारा नहीं था, इसलिए सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन से ही वह अपना व अपने पुत्र का पेट पालती थी. एक दिन ब्राह्मणी भिक्षाटन से घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था. शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और उसका राज्य हड़प लिया था, इसलिए राजकुमार इधर-उधर भटक रहा था. राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा. एक बार गरीब ब्राह्मणी दोनों पुत्रों के साथ ऋषि शांडिल्य के आश्रम में गई. वहां उसने प्रदोष व्रत की विधि और कथा सुनी और घर आकर उसने व्रत रखना आरंभ कर दिया.

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एक दिन की बात है कि दोनों बालक वन में घूम रहे थे. पुजारी का बेटा घर लौट आया, लेकिन राजा का बेटा वन में अंशुमति नामक गंधर्व कन्या से मिला. वह उस पर मोहित हो गई और उसके साथ समय गुजारने लगी. एक दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शंकर ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दीजिए, उन्होंने वैसा ही किया. ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की विशाल सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर लिया. युद्ध जीतने के बाद राजकुमार विदर्भ का राजा बन गया.

उसने पुजारी की पत्नी और उसके बेटे को भी राजमहल में बुला लिया और आनंदपूर्वक रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. अंशुमति के पूछने पर राजकुमार ने उसे प्रदोष व्रत के बारे में बताया. इसके बाद अंशुमति भी नियमित रूप से प्रदोष का व्रत रखने लगी. इस व्रत से इन लोगों के जीवन में सुखद बदलाव आए. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं. सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए.

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