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माता-पिता व बुजुर्गों की सेवा है ईश्वर की सच्ची भक्ति

मनुष्य वास्तव में अकेला है. अकेला ही आया था और अकेला ही जायेगा. भौतिक सुख की इच्छा करके वह और भी अधिक अकेला हो गया है. पूर्व जन्म के आधार पर जीवन में जो सुख-दुख प्राप्त होते हैं, वह अकेले ही भोगने होते हैं, कोई दूसरा उसमें भागीदार नहीं हो सकता.

By Prabhat Khabar News Desk | July 15, 2023 11:48 AM

जीवन दर्शन

पं शंभुशरण लाटा

प्रसिद्ध श्रीराम कथा वाचक

वर्तमान में लोग परेशान हैं, जिसका मुख्य कारण है कि परिवार में धर्म-आचरण नहीं रह गया है. माता-पिता अपने बच्चों को सद्गुणों की शिक्षा नहीं दे रहे हैं. बच्चों को भगवान से जोड़ने की बजाय उनसे विमुख कर रहे हैं. ऐसे में परिवार में शांति कहां से आयेगी? जो मनुष्य अपने माता-पिता व घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा-सत्कार करते हैं, उन्हें फिर किसी तीर्थ स्थल, मंदिर में जाने की या कथा-कीर्तन सुनने की आवश्यकता नहीं रह जाती. सेवा भी ऐसी करनी चाहिए, जिससे सेवा करने वाले को सुख प्राप्त हो, संतुष्टी मिले. महज दायित्व समझ कर की गयी सेवा व्यर्थ है.

राजा दशरथ को विवश होकर अपने पुत्र राम को वनवास भेजने का बेहद कष्ट हुआ. पत्नी मोह में पुत्र को वनवास और पुत्र वियोग में देह त्यागने वाले पहले और आखिरी उदाहरण राजा दशरथ ही हैं. फिर भी श्रीराम अपने पुत्र धर्म से जरा भी विमुख नहीं हुए. उन्होंने न केवल पिता के आदेश का पालन किया, अपितु पिता के प्रति सेवा-भाव में कमी नहीं आने दी. आज लोग कारण का निवारण करने की बजाय दुख को दूर करने में लगे रहते हैं.

इसके चलते दुख दूर नहीं होते. प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है, बिना कारण कोई कार्य नहीं होता. यहां तक कि मनुष्य का स्वास्थ्य भी खराब नहीं होता. हमें दुख के कारणों को जानने और फिर उसका निवारण करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि फिर दुख न हो.

जो भगवान से संबंध तोड़ने का कार्य करे, ऐसे लोगों को छोड़ देना चाहिए, फिर चाहे वह पिता, माता, भाई और गुरु ही क्यों न हो, ऐसे लोगों का त्याग कर देना चाहिए. यह संसार सर्वशक्तिमान ईश्वर से है, ईश्वर संसार से नहीं हैं. बिना उनके कुछ नहीं हो सकता. संसार में रहते हुए ईश्वर से संबंध बनाये रखना ही सबसे बड़ा सुख है. सबसे बड़ा धर्म है. मनुष्य को जीवन कैसे जीना चाहिए, श्रीराम कथा यही शिक्षा देती है. दुख की घड़ी आने पर उसका सामना कैसे करना चाहिए, यह भी रामकथा से सीखनी चाहिए. मनुष्य जो भी कार्य करता है, उसे उसका फल मिलता ही है. यदि पाप कर्म किये हैं, तो पाप भोगने ही पड़ेंगे और पुण्य किया है, तो उसका उत्तम फल अवश्य मिलेगा.

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम यदि भारत की आध्यात्मिक चेतना के प्रतीक हैं, तो गोस्वामी तुलसीदास इस चेतना को मुखरता प्रदान करने वाले प्रवर्तक. तुलसीदासजी अनमोल कृत रामचरितमानस भगवान श्रीराम की गाथा बखान करने वाली अप्रतिम और अद्वितीय कृति है. वास्तव में तुलसी और उनका साहित्य भारतीय जीवन पद्धति की आधारशिला है. मानस को तो लोक चेतना से परिपूर्ण हमारे समाज की संजीवनी और आचार संहिता भी माना जाता है. यह लोकमंगल स्थापना की महाऔषधि है. भारतीय मनीषा का विश्वकोश होने के साथ ही यह सांस्कृतिक संवेदनाओं का समृद्ध महाकाव्य भी है.

(जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य पंडित शंभुशरण लाटा द्वारा श्रीराम कथा वाचन के प्रमुख अंश.)

प्रस्तुति : शंकर जालान

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