Upnayan Sanskar: यज्ञोपवीत संस्कार क्यों माना जाता है महत्वपूर्ण, जानें महत्व और विधि
Upnayan Sanskar importance: हिंदू धर्म में उपनयन संस्कार बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है. आइए जानते हैं कि जनेऊ संस्कार क्यो इतना महत्वपूर्ण माना जाता है.
Upnayan Sanskar: यज्ञोपवीत संस्कार, जिसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के संस्कारों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह संस्कार केवल धार्मिक अनुष्ठान से परे, जीवन के एक नवीन आयाम का द्वार खोलता है. आमतौर पर 8 से 16 वर्ष की आयु के बीच के द्विज वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) के लड़कों पर यह संस्कार संपन्न किया जाता है.
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यज्ञोपवीत संस्कार का धार्मिक महत्व अत्यंत गहन है. यह संस्कार बालक को वेदों के अध्ययन, यज्ञों में भागीदारी तथा गुरु-शिष्य परंपरा का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है. साथ ही, यह संस्कार उसे सदाचार, आत्मसंयम और कर्मठता जैसे जीवन मूल्यों को ग्रहण करने का मार्गदर्शन प्रदान करता है. सांस्कृतिक दृष्टि से भी यज्ञोपवीत संस्कार का महत्व असीम है. यह संस्कार सदियों से चली आ रही भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
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संस्कार विधि
यज्ञोपवीत संस्कार विधि अनेक चरणों में सम्पन्न होती है, जिनमें शामिल हैं:
मुंडन: संस्कार का प्रारंभ मुंडन से होता है, जिसमें बालक का सिर मुंडवाया जाता है. यह कर्म बालक के पूर्वजन्म के पापों और अज्ञानता का प्रतीकात्मक त्याग दर्शाता है.
वस्त्र धारण: मुंडन के पश्चात, बालक को धोती और दुपट्टा पहनाया जाता है.
यज्ञोपवीत धारण: संस्कार का मुख्य चरण यज्ञोपवीत धारण है. नौ सूतों से बना यह पवित्र सूत बालक के बाएं कंधे से होते हुए दाहिने कमर तक पहनाया जाता है. प्रत्येक सूत का अपना विशिष्ट महत्व होता है.
अग्नि प्रज्वलन: बालक अग्नि प्रज्वलित करता है और यज्ञ में आहुति देता है. यह कर्म उसे सत्य, तप और आत्मबल का प्रतीक माना जाता है.
गायत्री मंत्र दीक्षा: गायत्री मंत्र, जो वेदों का सार माना जाता है, बालक को गुरु द्वारा प्रदान किया जाता है.
भोजन: संस्कार के समापन पर, सभी उपस्थित लोगों को भोजन ग्रहण कराया जाता है.
सामाजिक और शैक्षिक निहितार्थ: यज्ञोपवीत संस्कार केवल धार्मिक अनुष्ठान तक ही सीमित नहीं है. इसका सामाजिक और शैक्षिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
सामाजिक दृष्टिकोण से: यह संस्कार बालक को समाज में द्विज का दर्जा प्रदान करता है और उसे वेदों का अध्ययन करने तथा यज्ञों में भाग लेने का अधिकार देता है.
शैक्षिक दृष्टिकोण से: यह संस्कार बालक के लिए शिक्षा ग्रहण करने का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है. गायत्री मंत्र दीक्षा और वेदों के अध्ययन के माध्यम से बालक को ज्ञान, विवेक और सदाचार का मार्ग प्रशस्त होता है.
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847