शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी-चंद्रमा की पूजा के अलावा महर्षि वाल्मीकि का जयंती दिवस भी है. महर्षि वाल्मीकि हिंदू धर्म में श्रेष्ठ गुरु व ब्रह्मांड के प्रथम कवि माने गये हैं. धार्मिक मान्यतानुसार, ब्रह्माजी के कहने पर भगवान विष्णु द्वारा श्रीराम के रूप में अवतार लेने के पहले ही उन्होंने संस्कृत में रामायण की रचना कर दी थी. जिस प्रकार कोई कथा-उपन्यास लिखा पहले जाता है कल्पनाओं, चिंतन-मनन के आधार पर और मंचन बाद में होता है, उसी प्रकार वाल्मीकि की रामायण की रचना के बाद श्रीराम ने असुरों के विनाश तथा सत्पुरुषों की रक्षा का कदम उठाया. मनुस्मृति के अनुसार, वे प्रचेता ऋषि के पुत्र हैं.
उन्होंने वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के 93 सर्ग के 17वें श्लोक में खुद को (प्रचेता) वरुण का पुत्र और 96 सर्ग के 19वें श्लोक में वरुण के 10वें पुत्र होने का उल्लेख किया है. संसर्ग-दोष के कारण डाकू रत्नाकर के रूप में निम्नस्तरीय कार्य के दौरान देवर्षि नारद से मुलाकात हुई. नारद ने उन्हें योग-दर्शन का ज्ञान दिया, जिससे वे मुख से नहीं, बल्कि मणिपुर चक्र से ‘राम’ जपने लगे. जितने भी ऋषि-महर्षि महान हुए, वे कुंडलिनी जागृत करके ही तेजस्वी हुए. तप की महिमा वाल्मीकि ने रामायण की शुरुआत में लिख दी. यह ज्ञान के साथ विज्ञान से भरा ग्रंथ है. प्राचीन रामायण में 24,000 श्लोक हैं.