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अमावस्या तिथि कब होगी समाप्त
अमावस्या तिथि आरंभ मुहूर्त: 9 जून 2021, बुधवार की दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्ति मुहूर्त: 10 जून 2021, गुरुवार शाम 4 बजकर 22 मिनट तक
क्यों खास है इस बार की ज्येष्ठ अमावस्या
साल का पहला सूर्य ग्रहण 2021 पड़ रहा है. जो दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से शुरू हो जायेगा और शाम 6 बजकर 41 मिनट तक रहेगा.
शनि जयंति 2021 है. मान्यता है कि शनि देव का जन्म आज ही हुआ था.
अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के महिलाएं वट सावित्री व्रत 2021 रख रही हैं. वट वृक्ष की पूजा की जा रही है.
पितरों की आत्मा के शांति के लिए दिन अच्छा माना जाता है.
सूर्य पूजा और पवित्र नदी में डूबकी लगाकर पाप को नाश के लिए लोग कामनाएं करते है.
सूर्यग्रहण-शनि जयंती का प्रभाव किस राशि पर अधिक
वृषभ राशि के जातकों पर सूर्यग्रहण भारी पड़ सकता है.
इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है.
शनि-सूर्य के योग ठीक नहीं, इस दौरान वाहन चलाने से परहेज करें
धन हानि भी होने की संभावना है.
परिजन से अनबन हो सकता है.
कोरोना महामारी के दौरान घर पर कैसे करें वट सावित्री पूजा
वट सावित्री की सभी पूजन सामग्री एक टोकरी में सजा लें
वट वृक्ष के समीप जाएं और एक आसन लेकर बैठ जाएं
धूप-दीप दिखाकर वट वृक्ष की पूजा शुरू करें.
भिगोए चने, पूरी, पुए व आम के मुरब्बे का भोग लगाएं
फिर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें
अब भीगा चना, कुछ पैसे व वस्त्र अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें.
पूजा के बाद सुहाग का सामान दान करें.
इसके अलावा, किसी ब्राह्मण को वस्त्र व फल भी दान कर सकते हैं.
वट सावित्री के प्रमुख भोग
वट सावित्री व्रत के दौरान आम का मुरब्बा, भिगोए चने, पूरी व पुए खास भोग है. ऐसी मान्यता है कि इसे चढ़ाने से त्रिदेव से अखंड सौभाग्य का वर मिलता है.
पूजा प्रसाद में चना रखना न भूलें
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था. इस लिए इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है.
जानें आज क्यों की जाती है वट वृक्ष की पूजा
वट सावित्री व्रत पूजा के लिए बरगद का वृक्ष होना बहुत जरूरी है. मान्यता के अनुसार वट वृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पति सत्यवान की मृत शरीर को घेर रखा था. ताकि जंगली जानवर उनके शरीर को कोई नुकसान न पहुंचा पायें. इसी लिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है.
जानें वट सावित्री व्रत के लिए पूजन की सामग्री
बांस की लकड़ी का पंखा, अगरबत्ती, लाल व पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़, चढ़ावे के लिए पकवान, हल्दी, अक्षत, सोलह श्रृंगार, कलावा, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिंदूर, लाल रंग का वस्त्र आदि.
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इन बातों का रखें खास ध्यान
आज वट सावित्री व्रत और शनि जयंती है. वहीं, आज अमावस्या तिथि पर सूर्य ग्रहण भी लग रहा है. इसलिए कुछ बातों को ध्यान में रखकर ही मांगलिक कार्य करना होगा. क्योंकि ग्रहण के दौरान किसी भी नए व मांगलिक कार्य का शुभारंभ नहीं किया जाता है. ग्रहण काल के समय भोजन पकाना और खाना दोनों ही मना होता है. ग्रहण काल में भगवान की मूर्ति छूना और पूजा करना भी मना होता है. इसके साथ ही तुलसी के पौधे को छूने की मनाही होती है.
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इस आसान विधि से करें पूजा
वट सावित्री व्रत रखने का दिन है. आज व्रत्री महिलाएं नहाकर संपूर्ण श्रृंगार करें. इसके बाद एक बांस व पीतल की कोटरी में पूरा सामान रख पूजा करें. भगवान सूर्य को लाल पुष्प के साथ तांबे के बर्तन में अघ्र्य दें. घर के पास या मंदिर के वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें. इसके बाद वट वृक्ष को पंखा झेलें. बांस के पात्र का दान करें.
कोरोना महामारी के दौरान घर में कैसे करें वट सावित्री पूजा
बरगद के पेड़ की एक टहनी तोड़ें, उसे गमले में लगाएं
विधिपूर्वक इसे पूजें.
ब्रह्मा, विष्णु, महेश का ध्यान लगाएं
पूजा में जल, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, मौली, फूल और धूप का इस्तेमाल करें.
वट वृक्ष को लेकर क्या है मान्यताएं
कहा जाता है कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश वट वृक्ष में बसते है. जिन्हें प्रसन्न करने से अखंड सौभाग्य का वर मिलता है.
बरगद के पेड़ का है महत्व
हिन्दू धर्म में बरगद के पेड़ को पूजनीय माना जाता है, शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है. इसलिए वट सावित्री में बरगद के पेड़ की आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
वट सावित्री व्रत के लिए शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 9 जून 2021, दोपहर 01:57 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त: 10 जून 2021, शाम 04:22 बजे
वट सावित्री व्रत के लिए पूजन सामग्री
बांस का पंखा
लाल और पीले रंग का कलावा या सूत
धूप-दीप
घी-बाती
पुष्प
फल
कुमकुम या रोली
सुहाग का सामान
लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए
पूजा के लिए सिन्दूर
पूरियां
गुलगुले
चना
बरगद का फल
कलश जल भरा हुआ
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बेहद खास माना जा रहा है ये योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्र को सौभाग्य व वैवाहिक जीवन का कारक माना जाता है. इस दिन वृषभ राशि में चतुर्ग्रही योग बनना बेहद खास माना जा रहा है. चार ग्रहों के एक राशि में होने पर चतुर्ग्रही योग बनता है. मान्यता है कि इस योग से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है.
कोरोना महामारी में कैसे करें पूजा
अपने घर पर ही त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा कर सकते हैं.
बरगद के पेड़ की टहनी तोड़ कर उसे गमले में लगा लें.
इसके बाद विधिवत इसकी पूजा करें.
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल और धूप का इस्तेमाल करें.
इसके बाद सबसे पहले वट वृक्ष की पूजा करें.
इसके बाद सावित्री-सत्यवान की कथा सुने और दूसरों को भी सुनाएं.
अब फिर भीगा हुआ चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर आशीर्वाद लें.
पूजा के बाद किसी जरूरतमंद विवाहित स्त्री को सुहाग का सामान दान करें.
इसके अलावा, किसी ब्राह्मण को वस्त्र और फल भी दान कर सकते हैं.
वट सावित्री पूजा विधि
शादीशुदा महिलाएं अमावस्या तिथि को सुबह उठें, स्नानादि करें.
लाल या पीली साड़ी पहनें.
दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार करें.
व्रत का संकल्प लें
वट वृक्ष के नीचे आसन ग्रहण करें.
सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें.
बरगद के पेड़ में जल पुष्प, अक्षत, फूल, मिष्ठान आदि अर्पित करें.
कम से कम 5 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें और उन्हें रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद प्राप्त करें.
फिर पंखे से वृक्ष को हवा दें
हाथ में काले चने लेकर व्रत की संपूर्ण कथा सुनें
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वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त
वट सावित्री व्रत कल दिन गुरुवार को रखा जाएगा. यह व्रत अमावस्या तिथि को रखा जाता है. अमावस्या तिथि 09 जून को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी और 10 जून को शाम 04 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी. व्रत का पारण 11 जून को किया जाएगा.
वट सावित्री व्रत पूजन सामग्री
बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), अक्षत, हल्दी, अगरबत्ती या धूपबत्ती, लाल-पीले रंग का कलावा, सोलह श्रंगार, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिंदूर और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए, पांच प्रकार के फल, बरगद पेड़ और पकवान आदि.
वट सावित्री व्रत पूजा विधि
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे.
इसके बाद कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दें.
एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखें
फिर वट वृक्ष पर जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाएं
इसके बाद सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए.
पूजा करने के बाद चने गुड़ का प्रसाद बांटे.
इसके बाद सावित्री व्रत कथा सुनें