संत शिरोमणि आचार्य विद्या सागरजी महाराज का जीवन था वटवृक्ष की तरह, बोले अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर
Vidyasagar ji Maharaj: अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा कि संत शिरोमणि आचार्य विद्या सागरजी महाराज के उद्बोधन एवं परिचर्चा में महावीर का दर्शन होता था. आप वर्तमान के वर्धमान थे.
अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा कि ब्रह्माण्ड के देवता, विश्वहित चिन्तक, युगद्रष्टा, संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागरजी महाराज रात्रि के तृतीय प्रहर में देवत्व की राह में चले गये. देवताओं ने जिन्हें अपने पास बुला लिया. निश्चित ही उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन को आनंद के साथ पूरा किया. उनके जीवन में वाणी की प्रामाणिकता, साहित्य की सृजनात्मकता एवं प्रकृति की सरलता का त्रिवेणी संगम था. जो अपराजिता के शिखर थे. जिनकी वीतरागता प्रणम्य थी. जिनका जीवन मलयागिरी चन्दन की तरह खूशबूदार था. अपार्थिव एवं यथार्थ संसार के बीच आचार्य भगवान एक दीप स्तंभ थे. आचार्य भगवान की चेतना, पुष्पराग की भान्ति निष्पक्ष थी. ना उन्हें जाति-पाति से प्रयोजन था, ना अपने-पराये से परहेज था. ना देसी से राग, ना विदेशी से द्वेष था. आचार्य श्री का जीवन सर्व जनीन और सर्व हितंकर था. आचार्य भगवन का जीवन वटवृक्ष के समान था.
अहिंसा, सत्य और अनेकांत की हृदयग्राही
विमुग्धिकृत अभ्व मानवीय प्रस्तुति
वीतराग साधना पथ के अविराम पथिक
पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह
उज्ज्वल-धवल-प्रकाशमान
आचार्य श्री विद्या सागरजी महामुनिराज
संयम व ज्ञान की प्रतिमूर्ति थे आचार्य विद्यासागर महाराज
वर्तमान के वर्धमान थे विद्या सागरजी महाराज
अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा कि आपके उद्बोधन एवं परिचर्चा में महावीर का दर्शन होता था. आप वर्तमान के वर्धमान थे. आप संवेदनशीलता एवं डायनेमिक संत थे. आपका जीवन पारदर्शी, पराक्रमी तथा जीवन और जगत दोनों को आलोकित करने वाला था. आपने दहलीज पर खड़ी उदीयमान पीढ़ी को दिशा दृष्टि, और प्रतिभा स्थली को, हथकरघा, पूर्णायु, गौशाला के माध्यम से, उस पीढ़ी की डगर में दोनों ओर मील के पत्थर कायम कर दिए. पिछले सैकड़ों हजारों वर्षों में कोई ऐसा प्रखर और विचारोत्तेजक ना था, ना है और ना होगा. मैं ऐसे संत की चरण वन्दना करके धन्य हुआ. उनके आशीर्वाद व कृपा से ही मेरा उत्कृष्ट सिंह निष्क्रिडित व्रत निर्विघ्न सानन्द सम्पन्न हुआ. हम स्मृतिशेष आचार्य श्री के बताए सन्मार्ग पर निरन्तर बढ़ सकें. यह प्रार्थना कर मैं उनकी पवित्र स्मृति में अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं. आचार्य श्री के दिव्य चरणों में त्रयभक्ति पूर्वक बारंबार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु.