Vishwakarma Puja 2023: विश्वकर्मा पूजा के दिन इसलिए होती है औजारों की पूजा, जानें पौराणिक कथा
Vishwakarma Puja 2023:विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कन्या संक्रांति 17 सितंबर 2023, रविवार के दिन पड़ रही है.ऐसे में विश्वकर्मा भगवान की पूजा भी इसी दिन की जाएगी.पंचांग के अनुसार, पूजा समय दोपहर 01 बजकर 43 मिनट रहेगा और इसी समय सूर्य गोचर करेंगे.
Vishwakarma Puja 2023 Katha: विश्वकर्मा पूजा हर साल 17 सितंबर के दिन मनाया जाता है. विश्वकर्मा पूजा का पावन पर्व हर साल उस दिन मनाया जाता है जब सूर्यदेव सिंह राशि से कन्या राशि मंक प्रवेश करते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, आज ही के दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का विधान है. उनकी कृपा से बिगड़े काम बन जाते हैं, बिजनेस और रोजगार में सफलता प्राप्त होती है. दुनिया के पहले वास्तुकार एवं इंजीनियर कहे जाने वाले विश्वकर्मा जी ने इस सृष्टि की रचना करने में परम पिता ब्रह्मा जी की सहायता की थी. उन्होंने सबसे पहले इस संसार का मानचित्र तैयार किया था.
प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी.उन सभी का निर्माण विश्वकर्मा जी के द्वारा ही किया गया था. यहां तक की सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलियुग का हस्तिनापुर सभी विश्वकर्मा जी के द्वारा ही रचित थे।सुदामापुरी की रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता भी विश्वकर्मा जी ही थे. इससे यह पता चलता है कि धन धान्य की अभिलाषा करने वालों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा अवश्य करनी चाहिए.
विश्वकर्मा जी को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है.भगवान विश्वकर्मा की एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी में रहने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. वह अपने कार्य में निपुण तो था लेकिन स्थान- स्थान पर घूमने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था. उसके जीविकापर्जन का साधन निश्चित नहीं था. इतना ही नहीं उस रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहा करती थी.
पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु और संतों के पास जाते थे. लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी. तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ. तुम्हारी सभी इच्छाएं अवश्य ही पूरी होंगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों. इसके बाद अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जिससे उसे धन धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगे.
विश्वकर्मा पूजा 2023 तिथि
विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कन्या संक्रांति 17 सितंबर 2023, रविवार के दिन पड़ रही है. ऐसे में विश्वकर्मा भगवान की पूजा भी इसी दिन की जाएगी. पंचांग के अनुसार, पूजा समय दोपहर 01 बजकर 43 मिनट रहेगा और इसी समय सूर्य गोचर करेंगे.
विश्वकर्मा पूजा 2023 शुभ योग
पंचांग में बताया गया है कि विश्वकर्मा पूजा के दिन कई शुभ संयोग का निर्माण हो रहा है. इस विशेष दिन पर हस्त और चित्रा नक्षत्र, साथ ही ब्रह्म योग, द्विपुष्कर योग, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है.
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ब्रह्म योग- पूरे दिन
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द्विपुष्कर योग- सुबह 10 बजकर 02 मिनट से सुबह 11 बजकर 08 मिनट तक
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सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह 10 बजकर 02 मिनट तक
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अमृत सिद्धि योग- सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह 10 बजकर 02 मिनट तक
विश्वकर्मा पूजा के व्रत की प्रथम कहानी (Vishwakarma Puja vrat kahani)
पौराणिक कथा (Vishwakarma Puja 2022 vrat katha) के अनुसार जब सृष्टि का निर्माण हो रहा था, तो वहां सर्वप्रथम भगवान नारायण यानी साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए.भगवान विष्णु के प्रकट होने के बाद उनकी नाभि कमल से चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो गए थें.ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ और धर्म के पुत्र ‘वासुदेव’ थे.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ‘वस्तु’ से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे,जो शिल्पशास्त्र में बहुत ही बुद्धिमान थे.वासुदेव की पत्नी अंगिरसी’ ने भगवान विश्वकर्मा को जन्म दिया.आगे चलकर अपने पिता के तरह ही भगवान विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बनें.
विश्वकर्मा पूजा के व्रत की दूसरी कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी नगरी में एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था.वह अपने कार्य में निपुण था, लेकिन फिर भी वह भोजन से अधिक धन नही कमा पाता था.इस वजह से उसे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था.इतना ही नहीं उसकी पत्नी पुत्र ना होने की वजह से बहुत दुखी रहती थी.वह दोनों अक्सर पुत्र की प्राप्ति के लिए साधु के पास जाते थे.लेकिन उनकी इच्छा फिर भी पूरी नहीं हो पाती थी.एक दिन उनका एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा कि तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की पूजा करों.तुम्हारी हर इच्छा अवश्य पूर्ण होगी.
अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों.अपने पड़ोसी के ऐसा कहने पर अगले अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा पूरी श्रद्धा से की.उसकी भक्ति को देखकर भगवान विश्वकर्मा बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंनें उसे पुत्र होने का वरदान दिया.भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से रथकार की पत्नी को एक बेहद खूबसूरत पुत्र हुआ.इसके बाद से दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे.