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Vivah Sanskar: विवाह तय करते समय किन बातों का रखना चाहिए ध्यान, जानें वर-वधू की जन्मकुंडली मिलाने का महत्व

Vivah Sanskar: हिन्दू धर्म में बताए गए सोलह संस्कारों में से ‘विवाह संस्कार’ महत्त्वपूर्ण संस्कार है. विवाह निश्चित करते समय वधू-वर की जन्मकुंडलियों के मिलान की पद्धति पहले से ही प्रचलित है. आइए इस लेख में जानते है कि विवाह का उद्देश्य और उसके लिए वर-वधू की जन्मकुंडलियों के मिलान का महत्व क्या है.

Vivah Sanskar Vidhi: जीवन में होनेवाले प्रमुख सोलह संस्कार ईश्वर के निकट जाने के लिए सनातन धर्म ने बताए हैं. उनमे से सबसे महत्वपूर्ण है ‘विवाह संस्कार’ (vivah sanskar). विवाह संस्कार को जन्म जन्मांतर का साथ माना जाता है. इसलिए विवाह करने के पहले दूल्हा और दुल्हन की कुंडली मिलाकर उनके योग और गुण को मिलाने की प्रथा है. ज्योतिष अनुसंधान केंद्र लखनऊ के संस्थापक वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि यदि कुंडली में मौजूद गुण अच्छी तरह से मिल रहे हैं तो शादी का रिश्ता जन्म जन्मांतर तक चलता है. विवाह की धार्मिक विधियों के पीछे जो शास्त्र है और विवाह के अपप्रकारों पर प्रकाश डालने के साथ ही विवाह आदर्शरीति से कैसे करें, इसका दिशादर्शन सनातन धर्म ‘विवाह संस्कार शास्त्र’ में किया है. सनातन धर्म ने मानव को प्रकृति के लिए अनुकूल ऐसा आदर्श जीवन जीने के नीति-नियम बनाए हैं. शास्त्रों में विवाह संस्कार (vivah sanskar ka varnan) के विषय में बताया गया है कि जोड़ीदार का चुनाव मनानुसार न करते हुए कुल, शील, वय आदि बातों को ध्यान में रखकर करने से वैवाहिक जीवन सफल होने की मात्रा बहुत बढ़ जाती है.

Vivah Sanskar ka Varnan: विवाह संस्कार का वर्णन

Vivah Sanskar ka Varnan: पुरुष एवं प्रकृति के संयोग से विश्व की निर्मिति हुई. वैदिक परिभाषा में पुरुष को अग्नि और प्रकृति को सोम कहा गया है. अकेला पुरुष अथवा अकेली स्त्री ‘अर्धेंद्र’ अर्थात अपूर्ण होते हैं. पुरुषरूपी अग्नि एवं स्त्रीरूपी सोम की एकता से जीवन को पूर्णत्व आता है. विवाहबद्ध हुए पुरुष एवं स्त्री, ‘धर्मपालन’ करने के लिए एक दूसरे के पूरक एवं सहायक होते हैं. धर्मपालन करने से मनुष्य की ऐहिक एवं आध्यात्मिक उन्नति साध्य होती है. विवाह संस्कार, गृहस्थाश्रम का आरंभबिंदु है. गृहस्थाश्रम में रहकर दंपति के यज्ञ, पूजा आदि करने से ‘देवऋण’, संतान उत्पन्न करने से ‘पितृऋण’ एवं अतिथियों की सेवा करने से ‘समाजऋण’ चुकता होता है. विवाह संस्कार (Vivah Sanskar) के कारण कुटुंबव्यवस्था टिकी रहने से पर्याय स्वरूप समाज व्यवस्था एवं राष्ट्रव्यवस्था उत्तम रहती है.

Vivah Sanskar: विवाह निश्चित करते समय किन बातों का रखना चाहिए ध्यान

विवाह निश्चित करते समय जोड़ीदार का कुल (घराना), विद्या (बुद्धिमत्ता एवं शिक्षा), आयु, शील (प्रकृति एवं स्वभाव), धन (अर्थार्जन करने की क्षमता), रूप (शारीरिक स्थिति) एवं घर-द्वार का विचार किया जाता है.

Vivah Sanskar: वर एवं वधु के कुंडली मिलान

  • 01- वर एवं वधु समान कुल के हों, तो दोनों घरों के कुलाचार, रीति-रिवाज, कुटुंबियों की मानसिकता, कुटुंबियों का वैचारिक स्तर आदि में समानता होने से दंपति को एक-दूसरे के कुटुंबियों से मेल-जोड़ बढ़ाने में सुलभता होती है.

  • 02- लड़के के लिए 25 से 30 और लड़कियों के लिए 20 से 25 की आयु विवाह के लिए योग्य समझी जाती है.

  • 03- ‘लड़का एवं लड़की की प्रकृति एवं स्वभाव एकदूसरे से कितनी मात्रा में मेल खाते हैं. यह समझने के लिए ज्योतिषशास्त्र की सहायता ली जाती है.

  • 04- पती-पत्नी के गुण, कर्म एवं स्वभाव में समानता होने से उनसे उत्पन्न होने वाली संतान उनसे भी श्रेष्ठ गुणों से संपन्न होती है.

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Vivah Sanskar: वर-वधू की जन्मकुंडलियां मिलाने का उद्देश्य

‘वर-वधु की प्रकृति एवं स्वभाव एकदूसरे के लिए पूरक हो’, यह जन्मकुंडली मिलाने का उद्देश्य है. ऐसे दंपति जीवन की समस्याओं को समर्थरूप से सामना कर सकते हैं. व्यक्ति की प्रकृति एवं स्वभाव जन्मकुंडली द्वारा भली-भांति समझा जा सकता है. इसलिए विवाह निश्चित करते समय वधु-वर की जन्मकुंडलियां मिलाने की प्रथा भारत में प्रचलित है.

Vivah Sanskar: लग्नरास

कुंडली के प्रथम स्थान में होने वाली राशि को ‘लग्नरास’ कहते हैं. लग्नराशि से व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति, कार्यक्षमता, कार्यक्षेत्र आदि बातों का बोध होता है. वर-वधु की लग्नरास एकदूसरे के शुभ योग में होने से उनका व्यक्तित्व एकदूसरे के लिए पूरक होता है. ज्योतिषशास्त्र में 12 राशियों की पृथ्वी, आप, तेज एवं वायु, इन 4 तत्वों में विभाजन किया गया है. उनमें से पृथ्वी एवं आप इस तत्व की राशि एकदूसरे के शुभयोग में आती है, इसके साथ ही तेज एवं वायु तत्व की राशि एकदूसरे के शुभयोग में आती है अर्थात एकदूसरे के लिए पूरक होती हैं.

Vivah Sanskar: जन्मरास

कुंडली में चंद्र जिस राशि में होता है, वह रास व्यक्ति की ‘जन्मरास’ होती है. चंद्र मन का कारक होने से जन्मराशि से व्यक्ति की रुचि-अरुचि, स्वभाव विशेषताएं, भावनाप्रधानता, मानसिक धारणा आदि बातों का बोध होता है. वर-वधु की जन्मराशि एकदूसरे के शुभयोग में होने से उसका स्वभाव एकदूसरे के अनुकूल होता है. वधु-वर की जन्मराशि एवं जन्मनक्षत्र की परस्पर-पूरकता समझने के लिए ‘गुणमिलान’ करने की (36 गुण मिलान की पद्धत भारत में पहले से ही प्रचलित है. इसलिए गुणमिलान के साथ ही कुंडली के अन्य घटकों को ध्यान में लेना आवश्यक होता है.

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Vivah Sanskar: ग्रह स्थिति

विवाह दो लोगों के बीच एक ऐसा संबंध होता है जो उन दोनों लोगों को जन्मों के लिए जोड़ देता है. इसलिए विवाह में वर और वधू के गुण मिलाना बहुत जरुरी माना जाता है. विवाह से पहले वर-वधू की कुंडली मिलाने से विवाह के बाद कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का पता कर सकते है. कुंडली मिलाने से ये पता चलता है, कि जीवन में क्या बदलाव आने वाले हैं. विवाह के समय कुंडली मिलाते हुए अष्टकूट गुण देखे जाते हैं. मुख्य रूप से कुछ गुणों का मिलान बहुत जरूरी माना गया है. जिसमें नाड़ी दोष, भकूट दोष, गण, ग्रह मैत्री, आदि प्रमुख है. मान्यता के अनुसार यदि किसी की कुंडली में नाड़ी दोष है. तो शादी नहीं करनी चाहिए.

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