दिवाली पर स्वास्तिक बनाने का क्या है सही तरीका, देखें Video
Swastik: स्वास्तिक को 'साथिया' या 'सतिया' के नाम से भी जाना जाता है. वैदिक ऋषियों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष प्रतीकों की रचना की. स्वास्तिक इन्हीं संकेतों में से एक है, जो मंगल को दर्शाता है और जीवन में खुशियों का इजहार करता है.
Swastik: स्वास्तिक को ‘साथिया’ या ‘सतिया’ के नाम से भी जाना जाता है. वैदिक ऋषियों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष प्रतीकों की रचना की. स्वास्तिक इन्हीं संकेतों में से एक है, जो मंगल को दर्शाता है और जीवन में खुशियों का इजहार करता है. उन्होंने स्वस्तिक के रहस्य को विस्तार से बताया और इसके धार्मिक, ज्योतिष और वास्तु के महत्व को भी समझाया. आज स्वास्तिक का प्रयोग हर धर्म और संस्कृति में अलग-अलग तरीके से किया जाता है.
सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे निशान और अवशेष मिले हैं, जिनसे यह साबित होता है कि कई हजार साल पहले मानव सभ्यता ने अपने भवनों में इस पन्ना चिन्ह का इस्तेमाल किया था. सिंधु घाटी से प्राप्त मुद्रा और बर्तनों में स्वस्तिक चिन्ह अंकित किया गया है. उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाओं में भी स्वास्तिक चिन्ह मिले हैं. स्वस्तिक का महत्व ऐतिहासिक साक्ष्यों से भरा है. इसका उल्लेख मोहन जोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक अभिलेख, रामायण, हरिवंश पुराण और महाभारत आदि में कई बार मिलता है.
स्वस्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण माना जाता है. ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ का अर्थ है – ‘शुभ’ होना, ‘कल्याण होना’. स्वास्तिक का अर्थ है कुशल और कल्याणकारी.
Also Read: Diwali 2022 Laxmi Puja Muhurat, Vidhi : दिवाली कल, जानें कब करें लक्ष्मी पूजन, विधि, शुभ मुहूर्त, डिटेल्स स्वस्तिक क्या है और इसे कैसे खींचना हैस्वस्तिक में 2 सीधी रेखाएं होती हैं, जो एक दूसरे को काटती हैं, जो बाद में मुड़ जाती हैं. इसके बाद भी ये रेखाएं अपने सिरों पर थोड़ा आगे की ओर मुड़ जाती हैं. स्वास्तिक को दो तरह से खींचा जा सकता है. स्वास्तिक बनाने का सबसे पहला तरीका है “घड़ी की दिशा में स्वास्तिक” जिसमें आगे की ओर इशारा करते हुए रेखाएं हमारे दायीं ओर मुड़ जाती हैं. स्वास्तिक बनाने का दूसरा तरीका “काउंटर क्लॉकवाइज स्वास्तिक” है जिसमें रेखा हमारे बाईं ओर मुड़कर पीछे की ओर इशारा करती है.
स्वस्तिक का प्रारंभिक आकार पूर्व से पश्चिम की ओर एक ऊर्ध्वाधर रेखा के रूप में और उसके ऊपर दक्षिण से उत्तर की ओर दूसरी क्षैतिज रेखा के रूप में जोड़ा जाता है, और इसकी चार भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक रेखा होती है. इसके बाद चार रेखाओं के बीच में एक बिंदु रखा जाता है.
7 अंगुल, 9 अंगुल अथवा 9 इंच के प्रमाण में स्वस्तिक बनाने का विधान है. मंगल कार्यों के अवसर पर पूजा स्थल और चौखट पर स्वस्तिक बनाने की परंपरा है.