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Yogini Ekadashi Vrat Katha: योगिनी  एकादशी का व्रत पूजा इस कथा के बिना मानी जाती है अधूरी, जरूर पढ़े ये पौराणिक कथा

Yogini Ekadashi Vrat Katha: योगिनी एकादशी व्रत, जो 1 जुलाई को रखा जाएगा, हिंदू संस्कृति में आध्यात्मिक महत्व रखता हैं. इस व्रत की कथा का महत्व इतना है की, एक बार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में, महादेव और पार्वती ने ब्रह्मा द्वारा बताई गई योगिनी एकादशी की महिमा सुनी थी.

Yogini Ekadashi Vrat Katha: आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है. योगिनी एकादशी 1 जुलाई दिन सोमवार को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर प्रारंभ होगी और 2 जुलाई को सुबह 08 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगी. हिंदू धर्म में यह व्रत रखने का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत करने के दौरान कथा सुनना भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो पूजा-पाठ के समान माना जाता हैं. इस दिन कथा सुने बिना योगिनी एकादशी  व्रत पूजा अधूरी  मानी जाती हैं. इस पावन अवसर पर व्रती व्यक्ति किसी भी प्रकार के अपराध से दूर रहकर, भगवान की आराधना और ध्यान में मगन रहते हैं. इस व्रत को पालन करने से पापों का नाश होता है और जीवन में समृद्धि और शांति प्राप्त होती है. आइए जानते है योगनी एकादशी व्रत कथा इस प्रकार हैं.

Yogini Ekadashi Vrat Katha: योगिनी एकादशी व्रत कथा

अलकापुरी नामक नगरी में एक राजा था. जिसका नाम कुबेर था, जो भगवान शिव के भक्त परमपरा में था. उनके सेवक हेममाली नामक यक्ष थे, जो प्रतिदिन फूल लेकर पूजा के लिए लाते थे. हेममाली की पत्नी विशालाक्षी नाम से विख्यात थी, जो बहुत ही सुंदर थीं. एक दिन, हेममाली मानसरोवर से फूल लेकर वापस आए, लेकिन अपनी पत्नी के साथ रमण करने में इतने लिप्त हो गए कि पूजा के समय फूलों को पहुंचा नहीं सके. इससे राजा कुबेर को बहुत रोष आया और उन्होंने अपने सेवकों से हेममाली को बुलाने को कहा. सेवकों ने बताया कि हेममाली अपनी पत्नी के साथ विलासित हो रहे हैं. यह सुनकर कुबेर ने हेममाली को अपने सामने बुलाया. हेममाली डर से कांप रहे थे, और राजा ने उन्हें बहुत भारी श्राप दिया. उन्होंने कहा, “तूने महादेव का अपमान किया है, इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में कोबरा के रूप में जीवन बिताए.”कुबेर के श्राप के परिणामस्वरूप, हेममाली स्वर्ग से गिरकर पृथ्वी पर आये और कोबरा बन गए. उनकी पत्नी भी उनसे विच्छेद कर गई. उन्होंने पृथ्वी पर अनेक कठिनाइयों का सामना किया, परन्तु भगवान भोलेनाथ की कृपा से उनकी बुद्धि साफ रही और वे अपने पूर्व जन्म के पापों को ध्यान में रखते हुए हिमालय की ओर बढ़ चले.

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अपने यात्रा में वे मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम पहुंचे, जो एक वृद्ध तपस्वी थे और अत्यंत ज्ञानी थे. हेममाली ऋषि के पास गये और उनके चरणों में शीश झुकाया. मार्कण्डेय ऋषि ने पूछा, “तूने कौन-से पाप किए हैं, जिसके कारण तुझे इस कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है?” हेममाली ने अपनी कहानी सुनाई, “हे मुनिश्रेष्ठ! मैं राजा कुबेर का सेवक था. मेरा नाम हेममाली है. मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाता था और एक दिन पत्नी के साथ सुख में रहने में व्यस्त हो गया, इसलिए मैंने समय पर फूल नहीं पहुंचाए. तब राजा ने मुझ पर शाप दिया कि मैं स्त्री के वियोग में तड़पूं और मृत्युलोक में कोबरा के रूप में जीवन व्यतीत करूं. आप मुझे कोई उपाय बताएं, जिससे मेरी मुक्ति हो सके.”मार्कण्डेय ऋषि ने हेममाली को योगिनी नामक एकादशी का व्रत करने का उपाये बताया. उन्होंने बताया कि इस व्रत से सभी पापों का नाश हो जाएगा और उन्हें उनकी मुक्ति प्राप्त होगी. हेममाली ऋषि ने ऋषि के उपदेश का पालन करते हुए योगिनी नामक एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के बल से उन्हें शाप से मुक्ति मिली और उनकी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने का आनंद प्राप्त हुआ. इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि अपने कर्तव्यों को अनदेखा न करना, निरंतर पश्चाताप रखना, और धार्मिक व्रतों का पालन करने से पापों का नाश हो सकता है.

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