बिहार के कोसी की पर्वतारोही बेटी लक्ष्मी ने एक बार फिर नया रिकॉर्ड बनाया है. अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति की बदौलत बिहार की बेटी लक्ष्मी झा ने मात्र 36 घंटे में 19341 फीट ऊंचाई तय कर दक्षिण अफ्रीका में दुनिया के चौथे सबसे ऊंचे पर्वत किलिमंजारो पर भारत का झंडा लहराया है. इससे पहले लक्ष्मी ने नवंबर 2022 में सिर्फ 9 दिन के अंतराल में नेपाल के काला पत्थर पिक और माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचकर तिरंगा फहराया था.
आपको बता दें कि अफ्रिका का किलिमंजारो पर्वत तीन ज्वालामुखीय शंकु है. जो अफ्रीका का सबसे उंचा पर्वत है. यह समुद्र तल से 5,895 मीटर 19,341 फीट ऊंचा है. लक्ष्मी ने अब तक के सबसे कम समय में किलिमंजारो की चोटी का सफर तय करने में कामयाब रहीं, जो देश स्तर पर एक रिकॉर्ड है. पर्वतारोही लक्ष्मी ने कई बार अपने इन्हीं कारनामों की बदौलत बिहार और कोसी क्षेत्र का नाम रोशन किया है. सहरसा के बनगांव के रहने वाले स्व. बिनोद झा और सरिता देवी की बेटी लक्ष्मी अपने सभी भाई बहनों में सबसे छोटी है.
पिछले साल 2022 में मात्र 9 दिनों के अंतराल में ही लक्षमी ने नेपाल के काला पत्थर चोटी और माउंट एवरेस्ट बेस कैंप की चढ़ाई पूरी कर वहां भारत का तिरंगा लहराया. जिसके बाद वे एवरेस्ट पर पहुंचने वाली बिहार की पहली बेटी बनी. हालांकि वो एवरेस्ट की चोटी पर नहीं पहुंच सकीं, क्योंकि वहां पहुंचने के लिए 40 से 45 लाख रुपये खर्च कर कड़े अभ्यास की जरूरत होती है.
लक्ष्मी के ट्रेनिंग लेने के बाद छोटे-छोटे पर्वतों पर चढ़ाई करने के बाद उसे काला पत्थर व एवरेस्ट के लिए चयनित किया गया. जिसे उसने सफलतापूर्वक पूरा किया. लक्षमी के हौसलें अभी बुलंद हैं. वो कहती है कि उन्हें आर्थिक मदद मिली तो वह एक दिन एवरेस्ट की चोटी पर भी पहुंचकर तिरंगा जरूर फहराएंगी. लक्ष्मी ने बताया की इसके बाद वह 2024 में वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रही है.
लक्षमी की शुरूआती शिक्षा मौजेलाल शर्मा राम मध्यविद्यालय, माध्यमिक शिक्षा फूलदाय कन्या उच्च विद्यालय बनगांव सहरसा में हुई. इसके बाद उसने उसने उच्च शिक्षा रमेश झा कॉलेज से हासिल की. पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्हें 2019 में सचिवालय की नौकरी मिली. उसके बाद उन्होंने एवरेस्ट फतह करने का अपना सपना पूरा करने के लिए उत्तराखंड के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में एडमिशन लिया. यहां उनकी मुलाकात हरियाणा में पदस्थ डीएसपी अनिता कुंडुन से हुई. उसके बाद अनिता कुंडुन के मार्गदर्शन से वो आगे बढ़ती रहीं