साहेबगंज : आजादी के 75 वर्ष के बाद भी पहाड़ पर बसे कई ऐसे पहाड़िया गांव हैं, जहां तक पहुंचने के लिए सड़क तक नसीब नहीं है. पगडंडी एवं कच्चे रास्ते के सहारे गांव पहुंचते हैं. बरसात में स्थिति ऐसी हो जाती है कि नीचे के गांव तक पहुंचने के लिये हाथों में चप्पल लेकर कीचड़ में उतरना पड़ता है. ऐसे समय में अगर कोई बीमार हो जाता है तो उसे खटिया पर लिटा कर चार-पांच लोगों के सहारे मुख्य मार्ग तक पहुंचाया जाता है. जहां से एंबुलेंस या अन्य वाहन के माध्यम से मरीज को अस्पताल ले जाया जाता हैं. पतना प्रखंड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित शहरी पंचायत के बड़ा गुम्मा एवं छोटा केशचिपरी गांव के आदिम जनजाति समुदाय के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर हैं. दोनों गांवों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए प्रभात खबर की टीम जब बड़ा गुम्मा गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि उनके गांव में करीब 42 घर हैं. यहां की जनसंख्या करीब 150 से अधिक है. गांव के कई युवक रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य गये हुए हैं. उनके गांव तक पहुंचाने के लिए कच्ची सड़क तक नहीं है. वे सभी पगडंडी के सहारे नीचे के गांव कौवाढाब के झरना नाला तक आते हैं.
ग्रामीणों ने बताया कि चुनावी वादे और आश्वासन के अलावे उन लोगों को आज तक कुछ नसीब नहीं हुआ है. गांव में बिजली पहुंची है परंतु तार चोरी हो जाने के कारण आपूर्ति बाधित है. ग्रामीण अंधेरे को दूर करने के लिए सरकार द्वारा प्राप्त सोलर लाइट का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, छोटा केशचिपरी गांव पहुंचने के लिये पगडंडी ही एकमात्र सहारा है. गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की (दसवीं पास) सलोमी मालतो ने बताया कि आज के दौर में भी वे लोग आदिकाल का जीवन जी रहे हैं. साहिबगंज जिले के इस गांव में ज्यादातर युवक-युवतियां दूसरे प्रदेश में मजदूरी कर रहे हैं. गांव में पेयजल, सड़क जैसे कई समस्याएं हैं. साथ ही गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं होने, विद्यालय के विलय हो जाने के कारण शिक्षा में बाधा पहुंच रही है. यहां 40 घर हैं तथा जनसंख्या करीब 120 है.
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