सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : खरसावां के हरिभंजा में भव्य तरीके से प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है. यहां की रथ यात्रा करीब ढाई सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है. यहां सिंहदेव वंश के जमीनदारों ने 17वीं सदी में प्रभु जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू की थी. साल भर यहां चतुर्था मूर्ति प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा के साथ-साथ सुदर्शन की पूजा होती है. वार्षिक रथ यात्रा समेत सभी धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन ओडिशा के पुरी की तर्ज पर होता है. रथ यात्रा को देखने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. रथ यात्रा में सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार यहां रथ निकलती है. रथ यात्रा के दौरान सभी रश्मों को निभाया जाता है.
रथ यात्रा से एक दिन पहले होता है नेत्र उत्सव का आयोजन
रथ यात्रा से एक दिन पहले नेत्र उत्सव का आयोजन किया जाता है. स्नान पूर्णिमा के दिन अत्याधिक स्नान से बीमार होने के बाद प्रभु जगन्नाथ किसी भी भक्त को दर्शन नहीं देते हैं. 15 दिनों के बाद नेत्र उत्सव को लेकर प्रभु जगन्नाथ भक्तों को दर्शन देते हैं. दोपहर को आयोजित होने वाले इस उत्सव में प्रभु जगन्नाथ समेत चतुर्था मूर्ति के नव यौवन रूप के दर्शन होते हैं. इस वर्ष नेत्र उत्सव सह नौव यौवन रूप से दर्शन 19 जून को होंगे. नेत्र उत्सव पर शाम को भजन संध्या का भी आयोजन किया जायेगा.
पारंपरिक छेरा पोंहरा रश्म के बाद निकलती है रथ यात्रा
हरिभंजा में पुरी की तर्ज पर पारंपरिक छेरा पोंहरा रश्म अदायगी के बाद ही प्रभु जगन्नाथ की रथ निकलती है. गांव के जमीनदार विद्या विनोद सिंहदेव सड़क पर चंदन छिडक कर झाडू लगाते हैं. इसके बाद ही प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं बहन सुभद्रा की प्रतिमा मंदिर से पोहंडी कर (झुलाते हुए) श्रीमंदिर से रथ के ऊपर तक ले जाया जाता है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ एवं बलभद्र के लिए विशेष तौर पर तैयार किये गये मुकुट पहनाये जाते हैं, जिसे रथ पर विराजमान होने के बाद ही उतार कर भक्तों में बांट दिया जाता है.
रथ के आगे चलती है संकीर्तन एवं घंटवाल दल
हरिभंजा में रथ यात्रा के दौरान पुरी की तर्ज पर रथ के आगे-आगे 60 सदस्यीय संकीर्तन एवं घंटवाली दल भजन-कीर्तन करते हुए चलते हैं. यहां रथ यात्रा पर खासतौर से ओडिशा से संकीर्तन एवं घंटवाल दल को लाया जाता है. यहां के रथ यात्रा के आकर्षण का यह बड़ा केंद्र होता है.
मौसीबाड़ी में होती है भंडारे का आयोजन
प्रभु जगन्नाथ के मौसी बाड़ी में रहने के दौरान आठ दिनों तक भंडारे का आयोजन होता है. रात में खीर, खिचड़ी और सब्जी का प्रसाद चढ़ा कर भक्तों में बांटा जाता है. यहां प्रसाद लेने के लिए हर रोज करीब पांच सौ लोग पहुंचते हैं.
प्रभु जगन्नाथ का मंदिर बना आकर्षण का केंद्र
हरिभंजा में नव निर्मीत जगन्नाथ मंदिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. वर्ष 2015 में मंदिर का पुर्ननिर्माण किया गया है. मंदिर का निर्माण ओडिशा के कारीगरों द्वारा कलिंग वास्तुकला के अनुसार किया गया है. भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर की खूबसूरती को करीब से देखने के लिए सालों भर यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना लग रहता है. मंदिर के बाहरी दिवारों में भगवान विष्णु के दश अवतार की अलग-अलग मूर्तियां लगायी गयी है, जबकि मंदिर के अंदर 10 द्विगपाल, जय-विजय समेत कई मूर्तियां बनायी गयी है. मुख्य गेट पर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क का सूर्य चक्र बनाया गया है. यह सूर्य चक्र लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है.