Jagannath rathyatra 2020 : सरायकेला-खरसावां : विगत 5 जून को स्नान पूर्णिमा पर अत्याधिक स्नान करने से जगत के पालनहार प्रभु जगन्नाथ के साथ- साथ उनके बड़े भाई प्रभु बलभद्र व बहन सुभद्रा बीमार हो गये हैं. एक तरह से उन्हें अणसर गृह में 14 दिनों तक गुप्त सेवा की जा रही है. सरायकेला-खरसावां के जगन्नाथ मंदिरों के अणसर गृह में जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा को दशमूली दवा पिलायी गयी. इस दवा के सेवन से जल्द ही प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा स्वस्थ होंगे. 21 जून को नेत्र उत्सव के दिन महाप्रभु भक्तों को दर्शन देंगे. 23 जून को प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा है. पढ़ें, शचीन्द्र कुमार दाश की रिपोर्ट.
देवस्नान पूर्णिमा पर अधिक स्नान करने से बीमार हुए महाप्रभु जगन्नाथ,भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा को अणसर गृह में निरोग करने के लिए 14 दिन के एकांतवास में रखा गया. यह एकांतवास कोरोना काल के क्वारंटाइन की तरह है. इस दौरान भगवान को भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जड़ी-बुटियों का काढ़ा पिलाया जा रहा है. यहां पर 14 दिन तक महाप्रभु की गुप्त सेवा की जा रही है.
देसी नुस्खों के तहत विभिन्न प्रकार की जड़ी- बुटियों का काढ़ा और मौसमी फलों के जूस से उनका इलाज किया जा रहा है. इस दौरान भक्तों को महाप्रभु दर्शन नहीं दे रहे हैं. परंपरा के अनुसार, मंगलवार (16 जून, 2020) को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्र को जंगल की 10 जड़ी- बुटी से तैयार दवा खिलाया गया. 10 अलग- अलग जड़ी- बुटी से तैयार होने के कारण ही इसे दशमूली दवा का नाम दिया गया.
परंपरा के अनुसार, इस दवा के सेवन के 2 से 3 दिन बाद प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के स्वास्थ्य में सुधार होने लगेगी. नेत्र उत्सव पर महाप्रभु भक्तों को दर्शन देंगे. इस वर्ष 21 जून को नेत्र उत्सव पर प्रभु के दर्शन होंगे.
शरीर का तापमान नियंत्रित रखता है दशमूल हर्ब
दशमूला हर्ब तेज बुखार को ठीक करने के लिए लाभकारी होते हैं. यह शरीर के तापमान को सही रखता है. दशमूल हर्ब को बनाने के लिए इन जड़ी-बुटियों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें अग्निमंथ, गंभारी, बिल्व, पृश्निपर्णी, बृहती, कंटकारी, गोखरू, पटाला हर्ब, शालपर्णी और श्योनाक शामिल है. प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा को दशमूली दवा पिलाने के बाद भक्तों में भी इसे प्रसाद के रूप में वितरण किया गया. क्षेत्र में मान्यता है कि इस दवा के सेवन से लोग एक साल तक रोग-व्याधी से दूर रहते हैं.
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दशमूली की दवा में शामिल किये जाना वाला कृष्ण परणी काफी दुर्लभ औषधीय पौधा माना जाता है. काफी मुश्किल से यह उपलब्ध हो पाता है. जंगलों में वो पौधे बिरले ही मिलते हैं. कभी-कभी तो काफी खोजबीन के बाद भी कृष्ण परणी के पौधे जंगलों में नहीं मिलते. ऐसी स्थिति में सुखे कृष्ण परणी से ही काम चलाया जाता है. इस बार प्रभु को जंगल से ताजा कृष्ण परणी लाकर अर्पित किया गया है.
पीतल के बरतन में सुबह-शाम पिला रहे हैं काढ़ा
बीमार पड़े महाप्रभु के इलाज के क्रम में उन्हें सुबह- शाम काढ़ा बनाकर दिया जा रहा है. यह काढ़ा दालचीनी, सौंठ, काली मिर्च, तुलसी, अजवाइन, पीपली, दशमूला, मधु और घी मिला कर बनाया जा रहा है. दिन में दो बार गरम काढ़ा के साथ- साथ ही उन्हें दो बार मौसमी फलों का रस भी दिया जा रहा है.
राजा- राजवाड़े के समय से हो रहा है आयोजन
सरायकेला और खरसावां में रथयात्रा का आयोजन राजा-राजवाड़े के जमाने से होते आ रहा है. सरायकेला और खरसावां में 17 वीं सदी से रथ यात्रा का आयोजन हो रहा है. 23 जून को रथयात्रा है. कोरोना के कारण इस वर्ष मेले का आयोजन नहीं होगा. सरकार की ओर से रथयात्रा के आयोजन को लेकर अभी तक किसी तरह का निर्देश नहीं मिला है. कोरोना के कारण रथ यात्रा में इस साल सिर्फ रश्म अदायगी होने की ही संभावना है.
Posted By : Samir ranjan.