Jharkhand News, सरायकेला न्यूज (शचिंद्र दाश/प्रताप मिश्रा) : कोरोना ने हर वर्ग पर कहर ढाया है. झारखंड के सरायकेला जिले के विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य के कलाकार कामेश्वर भोल आजीविका के लिए रसोईया का काम करने पर विवश हैं. इन्हें वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती.
पद्मश्री गुरू केदारनाथ साहु के सानिध्य में छऊ का ककहरा सीखे कामेश्वर सरायकेला छऊ के प्रथम पद्मश्री शुधेंद्र नारायण सिंहदेव की सहयोगी महिला कलाकार के रूप में नृत्य करते थे. कहा जाता है कि कामेश्वर के बिना शुधेंद्र नारायण सिंहदेव नृत्य करने से मना कर देते थे. कामेश्वर की उत्कृष्ट नृत्य शैली ने देश ही नहीं विदेशों में भी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया है. इसके बावजूद कामेश्वर आज रसोईया का काम कर अपनी आजीविका चला रहे हैं.
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उम्र के 64 बसंत पार कर चुके छऊ कलाकार कामेश्वर भोल सरकारी सुविधाओं से महरूम हैं. महज 16 वर्ष की किशोरावस्था में पद्मश्री गुरू केदार नाथ साहु से छऊ का ककहरा सीखा था. इसके बाद उन्होंने सरायकेला छऊ के प्रथम पद्मश्री अवार्डी शुधेंद्र नारायण सिंहदेव (शानलाल) के साथ सहयोगी फीमेल एक्टर के रूप में नृत्य प्रस्तुत करते थे. इसके बाद व नाट्यशेखर वनबिहारी पट्टनायक के साथ नृत्य कर चुके हैं.
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कामेश्वर भोल अब तक रसिया, पनामा, इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, इटली सहित देश के दिल्ली, हरियाणा, कलकत्ता, मुंबई, बेंगलुरु के अलावा कई शहरों में सरायकेला छऊ नृत्य प्रस्तुत कर चुके हैं. छऊ के लिए मिले सम्मान व अवार्ड को आज भी वे अपने घर में सहेज कर रखे हुए हैं. उन्होंने बताया कि पद्मश्री शुधेंद्र नारायण सिंहदेव के साथ रात्रि, नाविक व चंद्रभागा में उन्होंने फीमेल का रोल अदा किया था.
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छऊ कलाकार कामेश्वर भोल ने बताया कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छऊ का परचम लहराने के बावजूद सरकार की ओर से अब तक किसी तरह की सुविधा नहीं मिली है. कोरोना काल से पूर्व उन्होंने वृद्धा पेंशन के लिए आवेदन दिया था, परंतु अब तक वृद्धा पेंशन का आवेदन भी स्वीकृत नहीं हुआ है. इस कारण परिवार चलाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि उनके परिवार में तीन पुत्र व एक पुत्री है.
Posted By : Guru Swarup Mishra