शचिंद्र कुमार दाश, सरायकेला
Prabhat Khabar Special Story : सरायकेला-खरसावां जिले के विभिन्न क्षेत्रों में निर्मित हस्तकरघा से जुड़े सामानों की मांग अब देश के विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है. खास कर जिले में उत्पादित तसर कोसा से तैयार सिल्क के साड़ी व कपड़ों की मांग देश के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ी है. सिल्क उद्योग से जुड़े लोगों का मानता है कि, सरकार से विशेष आर्थिक सहायता मिले तो हस्तकरघा के जरिये न सिर्फ स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सकेगा, बल्कि क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी.
खरसावां-कुचाई समेत पूरे राज्य में पिछले दो साल में तसर की खेती प्रभावित हुई है. खरसावां-कुचाई क्षेत्र में हर वर्ष करीब छह से सात करोड़ के बीच तसर कोकून का उत्पादन होता है. लेकिन पिछले वर्ष मौसम की बेरुखी के कारण सिर्फ 70-80 लाख तसर कोसा का ही उत्पादन हो सका. इससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा. इस साल किसानों को तसर की खेती में भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में किसानों को राज्य सरकार से काफी उम्मीदें हैं.
पिछले एक साल से खादी बोर्ड की ओर से खरसावां व चांडिल में तसर (रेशम) की खूबसूरत साड़ियां तैयार होने लगी है. इन साढ़ियों की भारी मांग है. ये साड़ियां गुणवत्ता में काफी अच्छी होती हैं. चांडिल के केंद्र में तसर धागों की बुनाई और फिर उसकी डिजाइनिग तक का काम किया जा रहा है. अभी उत्पादन सीमित मात्रा में है, पर धीरे-धीरे इसका उत्पादन बढ़ाने की योजना है. बोर्ड अब खरसावां के आमदा और कुचाई के प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्रों में भी साड़ियों के उत्पादन पर फोकस कर रहा है. राजनगर के खादी पार्क में भी साढ़ियों की बुनाई करने की तैयारी चल रही है. इससे राज्य के बुनकरों को रोजगार और साड़ियों को बाजार मिलेगा.
जिले के चार उत्पादन केंद्रों में उत्पादित तसर तानी (सुता) राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में आपूर्ति हो रही है. पश्चात उत्पादन केंद्रों में तसर कपड़ा का उत्पादन हो रहा है. पूर्व में पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार आदी राज्यों से तसर तानी के लिए निर्भर रहना पड़ता था. दूसरे राज्यों से तसर तानी ला कर यहां कपड़ों की बुनाई होती थी. परंतु अब खरसावां की खादी पार्क से उत्पादित तसर तानी सभी केंद्रों में भेजा जा रहा है.
झारखंड सरकार (उद्योग विभाग) के उपक्रम ‘झारक्राफ्ट’ की ओर से खरसावां-कुचाई जिले में पूर्व में खोले गये करीब 34 में से 28 सामान्य सुलभ केंद्र पिछले चार-पांच साल से बंद पड़े हुए हैं. बंद पड़े सामान्य सुलभ केंद्रों को फिर से चालू करने की स्थिति में गांव की महिलाओं को हस्तकरघा के जरिये रोजगार मिल सकेगा. चार साल पहले तक खरसावां व कुचाई के 34 सीएफसी में करीब 11 सौ महिलाएं तसर कोसा से सुत कताई का कार्य करती थीं, परंतु अब सिर्फ 6 सीएफसी ही संचालित हैं. इन 6 सीएफसी में सौ से भी कम महिलाएं कार्य कर रही हैं. खरसावां सीएफसी में कार्य कर रहीं कंचन बेहरा, निर्मला तैवर्त व सुरभी दत्ता ने बताया कि वह पिछले एक दशक से हैंडलुम के कार्य से जुड़ी हुई हैं. दिन भर कार्य करने के बाद दो से तीन सौ रुपये ही रोजगार मिल पाता है. उन्होंने सरकार ने हस्तकरघा के क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं को मजदूरी बढ़ाने की मांग की है. कंचन ने बताया कि हस्तकरघा में कार्य करने वाली महिलाओं को मजदूरी बढ़ाई गयी, तो निश्चित रूप में इससे कार्य से महिलाएं जुड़ेंगी.
सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है. इस दिन का भारत के इतिहास में विशेष महत्व है. घरेलू उत्पादों और उत्पादन इकाइयों को नया जीवन प्रदान करने के लिए 7 अगस्त 1905 को देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था. स्वदेशी आंदोलन की याद में ही 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. सरकार ने 29 जुलाई, 2015 को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में अधिसूचित किया था.