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‘हो’ भाषा को 8वीं अनुसूची में करें शामिल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से आदिवासी हो समाज महासभा ने की मांग

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से आदिवासी हो समाज महासभा का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय अध्यक्ष कृष्ण चंद्र बोदरा के नेतृत्व में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में मिला. इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंपकर ‘हो’ भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की.

सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से आदिवासी हो समाज महासभा ने ‘हो’ भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है. इस मांग को लेकर आदिवासी हो समाज महासभा का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय अध्यक्ष कृष्ण चंद्र बोदरा के नेतृत्व में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिला. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि आदिवासी हो समाज महासभा पिछले कई वर्षों से वारंड़ क्षिति (हो भाषा की लिपि) के संरक्षण व संवर्धन का कार्य कर रही है. आदिवासी हो समाज महासभा ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राष्ट्रहित में हो भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग की है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिला हो समाज महासभा का प्रतिनिधिमंडल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से आदिवासी हो समाज महासभा का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय अध्यक्ष कृष्ण चंद्र बोदरा के नेतृत्व में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में मिला. इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंपकर ‘हो’ भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की.

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ज्ञापन सौंपने वालों में ये थे शामिल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंपने वालों में मुख्य रूप से आदिवासी हो समाज महासभा के केंद्रीय अध्यक्ष कृष्ण चंद्र बोदरा, केंद्रीय महासचिव तिरिल तिरिया, ओडिशा प्रभारी मनोरंजन तिरिया, बिरसा कोंडांकल, पुरुषोत्तम गागराई व बुधलाल कुडू शामिल थे.

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आदिवासी हो समाज महासभा की क्या है मांग

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि आदिवासी हो समाज महासभा पिछले कई वर्षों से वारंड़ क्षिति (हो भाषा की लिपि) के संरक्षण व संवर्धन का कार्य कर रही है. हो भाषा वारंड़ क्षिति में भारत के अतिथि की गरिमा को प्रतिध्वनित करने के साथ ही मानव सभ्यता के भविष्य की इमारत को साहित्य की कसौटी में कसने की क्षमता है. किंवदंती है कि 600 ईसा पूर्व प्राग्वैदिक काल में धन्वतरी (देवा तुरी) पुस्तक की रचना इसी लिपि में की गयी थी. इस काल का अनुमान मोहनजोदड़ो की सभ्यता से पूर्व प्राग्वैदिक काल लगता है. इसकी प्राचीनता का आभास अगस्त ऋषि के विंध्याचल पर्वत पार करने के कई हजार वर्ष पूर्व जब जंबुडिपा (जंबुद्वीप) में टुअर कसर कोड़ा का अवतार हुआ था. यही भारतीय सभ्यता का मूल आधार है.

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आदिवासी हो समाज महासभा की ये है मांग

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि भाषा विज्ञान की दृष्टि से यह भाषा आग्नेय परिवार की भाषा है, जो हमें उस भारत की ओर ले जाता है. जहां वेद-उपनिषेदों के पूर्व की समृद्ध साहित्य का दर्शन कराता है. वर्तमान समय में प्राचीनकालिन भाषा के अवशेष व धातु की समरूपता का पाया जाना प्रमाणित करता है कि प्राग्वैदिक काल की भाषा अग्नेय परिवार की भाषा रही होगी. पृथ्वी के विभिन्न भू-भागों की खुदाई से प्राप्त लिपि को पढ़ने एवं प्राग्वैदिक काल की सभ्यता को आसानी से समझ सकेंगे, जिसका श्रेय भारत को मिलेगा. आदिवासी हो समाज महासभा ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राष्ट्रहित में हो भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग की है.


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