सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : सरायकेला-खरसावां समेत कोल्हान में बुधवार से ओडिया समुदाय का रजो पर्व शुरू होने वाला है. इसको लेकर पूरे कोल्हान में बनस्ते डाकिला गजो, बरसकु थोरे आसिछी रजो, आसिछी रजो लो घेनी नुआ सजो बाजो… लोकगीत गुंजायमान है. ओडिया पंचांग के अनुसार, साल का पहला महत्वपूर्ण पर्व रजत्सला संक्रांति है. जिसे रजो संक्रांति के नाम से जाना जाता है. यह लोक पर्व कहीं दो, तो कहीं तीन दिनों तक मनाया जाता है. यह पर्व विशुद्ध रूप से महिलाओं को समर्पित है. इस पर्व में महिलाओं के झूला झूलने की वर्षों पुरानी परंपरा है. सरायकेला-खरसावां जिले के ओडिया बहुल गांवों में यह परंपरा अब भी कायम है. पेड़ों में रस्सी लगाकर झूला बनाने एवं झूले को विभिन्न तरह के फूलों से सजा कर झूलाने की परंपरा है.
रजो गीत गाकर झूला झूलती हैं महिलाएं
रजो पर्व पर झूला झूलने के दौरान महिलाएं सामूहिक रूप से रजो गीत गाती हैं. इसमें पाचिला इंचो कली, बेकोरे नाइची गजरा माली, गजरा माली लो झुलाओ रजो र दोली…, दोली हुए रट रट, मो भाई मुंडरे सुना मुकुटो…आदि शामिल हैं.
रजो पर्व पर पान खाने की परंपरा
रजो पर्व पर घरों में कई तरह के पकवान बनाये जाते हैं. इसमें सबसे पहले चावल को ढेंकी से कूट कर पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद इस चावल के पाउडर से तरह-तरह के पीठा तैयार किया जाता है. पीठा को प्रसाद चढ़ाने के साथ-साथ लोग बड़े ही चाव से खाते हैं. वहीं, रजो संक्रांति के दौरान पान खाने की भी परंपरा है.
तीन दिनों तक नहीं होते हैं कृषि कार्य
आषाढ़ माह के आगमन पर मॉनसून के स्वागत में ओडिया समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, रजो पर्व के दौरान धरती माता का विकास होता है. किंवदंती के अनुसार, रजोत्सला संक्रांति पर धरती मां विश्राम करती हैं. इस दौरान किसी तरह का कृषि कार्य नहीं होते हैं. रजो पर्व के बाद धरती माता की पूजा की जाती है, ताकि खेतों में फसल की अच्छी पैदावार हो. पर्व के दो दिनों तक जमीन पर न तो हल चलाया जाता है और न ही खुदाई की जाती है.
खरसावां में मेला व छऊ नृत्य का होगा आयोजन
खरसावां-सरायकेला में रजोत्सला संक्रांति पर देहरीडीह, रामपुर, देउली, काशीपुर, गितीलोता, कुचाई के मरांगहातु व जुगीडीह समेत आधा दर्जन से अधिक गांवों में छऊ नृत्य व मेला का भी आयोजन किया जायेगा.
क्या कहती हैं महिलाएं
खरसावां की मानसी नायक का कहना है कि रजो पर्व का साल भर से बेसब्री से इंतजार रहता है. रजो पर्व के दौरान दो दिनों तक मौज-मस्ती से गुजरता है. वहीं, सरायकेला की अंजलि कुमारी का कहना है कि रजो पर्व में महिलाओं के झूला झूलने की परंपरा है. इस दौरान महिलाएं सामूहिक रूप से रजो गीत गाती हैं.
समय के साथ रजो पर्व के स्वरूप में हुआ बदलाव
खरसावां के सुकांति बेहरा का कहना है कि समय के साथ-साथ रजो पर्व के स्वरूप में भी बदलाव आया है. वर्तमान समय में लकड़ी से बने पारंपरिक झूला का प्रचलन कम होने लगा है. वहीं, मनोज गोप का कहना है कि ओड़िया समुदाय से जुड़े किसान रजो पर्व के दौरान किसी तरह का कृषि कार्य नहीं करते हैं.