Women’s Day 2021, Jharkhand News, Saraikela News, सरायकेला न्यूज (शचिंद्र कुमार दाश) : झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिला की महिलाओं ने कला-संस्कृति के क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. सरायकेला- खरसावां जिला के विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य में महिलाओं के प्रवेश से एक ओर जहां पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती मिल रही है, वहीं दूसरी ओर इस नृत्य को नया आयाम देने का भी प्रयास किया जा रहा है. छऊ नृत्य में शुरू से ही पुरुषों का वर्चस्व रहा है. पूर्व में इस नृत्य में महिलाओं की भागीदारी नहीं थी, लेकिन अब यह नृत्य महिलाओं में भी खासा लोकप्रिय होते जा रहा है. पिछले कुछ सालों से इस नृत्य में महिलाओं की काफी भागीदारी बढ़ी है.
सरायकेला- खरसावां की महिलाएं न सिर्फ नृत्य सिख रही है, बल्कि मुखौटा और पोषाक बनाने का कार्य भी सिख रही है. छऊ नृत्य में महिलाओं के झुकाव से इस कला को नया आयाम मिलने की बात कही जा रही है. खरसावां की ज्योति मोदक, भूमि केसरी, सुलोचना मोहंती, एंजेल केसरी, मीना दिग्गी, सागरिका राउत, संतोषी विषय, मीनू नंदा, संतोषी विशेई, पिंकी गागराई, सोनी रविदास, आशा सोय, काजल हेंब्रम, सरायकेला की कुशमी पटनायक, बबिता राणा, अनिता कांडेयबुरु, सरिता सामल, बेबी सामल, रेखा सामल, नुपुर आचार्या आदि महिला कलाकार छऊ नृत्य कर रही है. छऊ नृत्य करने वाली महिलाएं इसमें अपना भविष्य तलाश रही है.
छऊ नृत्य में शामिल इन महिलाओं को उम्मीद है कि इस कला में बेहतर भविष्य निर्माण किया जा सकता है. गुरु तपन पटनायक के अनुसार, छऊ नृत्य में महिला के प्रवेश से इस नृत्य के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है. समय के साथ छऊ नृत्य में आये बदलाव से छऊ को एक नया आयाम भी मिला है.
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समय के साथ छऊ के स्वरूप में भी बदलाव आया है. जानकार बताते हैं कि शुरुआत के दिनों में छऊ नृत्य में सिर्फ पौराणिक तथ्यों पर आधारित नृत्य होते थे. उस समय रामायण, महाभारत, शिव पुराण समेत अन्य पुराणों से थीम लिए जाते थे. बाद में राजघरानों के संरक्षण में जब छऊ नृत्य आगे बढ़ा, तो इसके पोषाक में कुछ परिवर्तन आया. इसके बाद इस नृत्य में आधुनिकता जोड़ कर इसे ओर व्यापक बनाने का प्रयोग किया गया. छऊ में दैनिक जीवन शैली से जुड़े तथ्यों से लेकर प्रकृति को भी जोड़ा गया. प्रयोग सफल हुआ.
छऊ नृत्य में वर्तमान में कृषि पर आधारित कृषि कला, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े नेताजी सुभाष चंद्र बोस की चलो दिल्ली, आदिवासी परंपरा पर आधारित शिकार (सबर), कारगिल युद्ध पर आधारित ऑपरेशन कारिगल, कालिदास की अमर कृत्य मेघदूत पर में यक्ष- यक्षणयिों के प्रेम पर आधारित नृत्य, नाभिक पर आधारित नौका नृत्य भी जोड़ा गया.
महिला कलाकार ज्योति मोदक कहती हैं कि महिलाओं को भी अब घर से बाहर निकल कर अपनी रुचि के अनुसार कार्य करना चाहिए. कला के क्षेत्र में काफी शोहरत कमाया जा सकता है. नृत्य कला के क्षेत्र में भी महिलाओं को करियर की तलाश करनी चाहिए.
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महिला कलाकार भूमि केशरी कहती हैं कि कला के क्षेत्र में भी बेहतर भविष्य बनाया जा सकता है. इसके लिए सीखने की ललक और समर्पण की भावना होनी चाहिए. वहीं, महिला कलाकार एंजेली केशरी बताती हैं कि छऊ नृत्य में पहले पुरुष वर्ग के कलाकार ही नृत्य करते थे. अब महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला कर नृत्य कर रही है. महिलाएं कहीं भी किसी से कम नहीं है.
एंजेली बताती हैं कि विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य कला में महिलाओं के प्रवेश से नृत्य ओर भी आकर्षक हुआ है. लोग छऊ नृत्य को काफी पसंद रहे हैं. छऊ नृत्य को नया आयाम मिल रही है. वहीं, महिला कलाकार बोंचिका मोदक कहती हैं कि विगत कुछ वर्षों से इस नृत्य में महिलाओं की काफी भागीदारी बढ़ी है. सरायकेला और खरसावां की महिलाएं न सिर्फ नृत्य सिख रही है, बल्कि मुखौटा और पोशाक बनाने का कार्य भी सिख रही है.
Posted By : Samir Ranjan.