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दम तोड़ रही सबर आदिम जनजाति, जानिए कैसे हो गयी पांच आदिम जनजाति सबरों की मौत ?

पटमदा : विलुप्तप्राय आदिम जनजाति सबर (Sabar primitive tribe) समुदाय के लोग सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. पूर्वी सिंहभूम जिले में प्राकृतिक सुंदरता के बीच दलमा की तराई स्थित गोबरघुसी पंचायत के रानी झरना गांव में आठ सबर (Sabar) परिवार के लोग आदिकाल से रहते आ रहे हैं. बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव में बीते सात माह में बीमारी से पांच लोगों की मौत (Death) हो गयी. इनमें तीन एक ही परिवार के थे. पढ़िए दिलीप पोद्दार की रिपोर्ट.

पटमदा : विलुप्तप्राय आदिम जनजाति सबर (Sabar primitive tribe) समुदाय के लोग सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. पूर्वी सिंहभूम जिले में प्राकृतिक सुंदरता के बीच दलमा की तराई स्थित गोबरघुसी पंचायत के रानी झरना गांव में आठ सबर (Sabar) परिवार के लोग आदिकाल से रहते आ रहे हैं. बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव में बीते सात माह में बीमारी से पांच लोगों की मौत (Death) हो गयी. इनमें तीन एक ही परिवार के थे. पढ़िए दिलीप पोद्दार की रिपोर्ट.

पांच सबरों की मौत

मृतकों में फुलफुली सबर (45), छोटा बेटा भूपेन सबर (21) के अलावा मोनी सबर (45), गोवर्धन सबर (35), गोपाल सबर (19) शामिल हैं. इस गांव में आज भी स्वच्छ पेयजल, आवास, सड़क, चिकित्सा आदि सुविधाओं का अभाव है. गांव के बुजुर्ग लोबिन सबर ने बताया कि उनकी पत्नी फुलफुली सबर व बेटे मोतीलाल सबर व भूपेन सबर के बाद उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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चावल के सिवा कुछ नहीं मिलता

मोतीलाल की तीन बेटियां जो सात, पांच व दो वर्ष की हैं. उनके लालन-पालन की जिम्मेदारी अब लोबिन सबर पर ही है. सरकार द्वारा उन्हें चावल के अलावा कुछ भी नहीं मिलता है. वर्षों पूर्व बने आवास अब जर्जर हो चुके हैं. छत से कंक्रीट गिरता रहता है और बारिश के दिनों में पानी रिसता रहता है.

अब तक नहीं मिली पेंशन

भीम सबर ने बताया कि रानी झरना के सबर परिवारों को आज तक पेंशन की सुविधा नहीं मिल पायी है. बांस का झाड़ू बनाकर एवं जंगल से सूखी लकड़ी एवं पत्ता हाट बाजारों में बेच कर किसी तरह से परिवार चलाते हैं. उन्होंने कहा कि गांव में आठ परिवारों में 32 लोग थे, जिसमें से अधिकतर पुरुष व महिलाओं की बीमारी के कारण मौत हो चुकी है. अब गांव में अधिकतर बच्चे ही रह गये हैं. शांति सबर ने बताया कि दो बच्चे उनके साथ रहते हैं और दो बच्चों को मायके भेज दी हैं.

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ऐसे हुई इन सबरों की मौत

फूलफूली सबर : फूलफूली सबर (45) कई दिनों तक खांसी और बुखार से पीड़ित थीं. नवंबर 2019 में बीमारी से एक दिन अचानक तबीयत बिगड़ गयी और मौत हो गयी. इसके बाद परिजनों ने अंतिम संस्कार कर दिया. मोनी सबर (45) भी अक्सर बीमार रहती थीं. दिसंबर 2019 में अचानक किसी रात अधिक बीमार हो गयीं. पेट में दर्द और उलटी होने लगी. सुबह होते-होते उनकी भी मृत्यु हो गयी. भूपेन सबर (21) मोतीलाल का छोटा भार्इ था. फरवरी 2020 की एक रात घर में सोये भूपेन की अचानक छाती में दर्द होने लगी. उसकी भी सुबह में मृत्यु हो गयी. गोवर्धन सबर (35) मार्च 2020 में परिवार के साथ सोये हुए थे कि अचानक रात के वक्त पेट व छाती में दर्द होने लगी. रात में उलटी हुई, सुबह मौत हो गयी. गोपाल सबर (19) ने भी मार्च 2020 में छाती दर्द से तड़प कर दम तोड़ दिया.

सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं सबर : मुखिया खगेंद्रनाथ

मुखिया खगेंद्रनाथ सिंह ने कहा कि बीहड़ जंगल क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर आदिम जनजातियों के सबर, बिरहोर, पहाड़िया व खड़िया लोगों की उचित खान-पान एवं चिकित्सा के अभाव में समय से पहले मौत हो जाती है. इससे आदिम जनजातियों की संख्या घटती जा रही है. चिकित्सा के अभाव में कभी बच्चे, तो कभी बड़े लोगों की मौत हो जाती है. गोबरघुसी के रानी झरना, ओपो, सारी क्षेत्र में तीन चार वर्ष पूर्व भी मलेरिया से कई बच्चों की मौत हो गया थी.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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