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EXCLUSIVE: झारखंड में आदिम जनजाति की दुर्दशा: बेटे-बहू के साथ शौचालय में रहने को मजबूर गुरुवारी सबर

Prabhat Khabar EXCLUSIVE: शौचालय में शरण लेने वाली गुरुवारी के पोते सुकू सबर की सर्पदंश से एक महीने पहले मौत हो गयी. 8 महीने पहले गुरुवारी सबर के पति कंचन सबर की ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) से मौत हो गयी थी.

Prabhat Khabar EXCLUSIVE: झारखंड (Jharkhand Latest News) की राजधानी रांची से 120 किलोमीटर दूर है पूर्वी सिंहभूम का जिला मुख्यालय जमशेदपुर (Jamshedpur News). यहां से महज 21-22 किलोमीटर की दूरी पर आदिम जनजाति सबर का एक टोला है. टोला का नाम तामुकबेड़ा सबर टोला (Tamukbera Sabar Tola) है. यहां 11 परिवार रहते हैं. इसी टोले में गुरुवारी सबर अपने बेटे और बहू के साथ तीन महीने से शौचालय में रह रही है.

सरकारी अनुदान से बना था शौचालय

दलमा की तराई में स्थित तामुकबेड़ा सबर टोला में रहने वाली गुरुवारी सबर के लिए स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyana) के तहत 12 हजार रुपये के सरकारी अनुदान से उसके घर के पीछे शौचालय का निर्माण करवाया गया था. यही शौचालय आजकल गुरुवारी सबर और उसके परिवार का आशियाना बना हुआ है. बेटा बिपिन सबर अपनी पत्नी के साथ शौचालय में रहता है (Sabar Family Lives in Toilet) और गुरुवारी सबर (Guruwari Sabar) उसके बाहर प्लास्टिक टांगकर जीवन बसर कर रही है.

Also Read: पूर्वी सिंहभूम के जिला परिषद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को चाहिए स्कॉर्पियो, लेकिन प्रशासन दे रहा है बोलेरो गुरुवारी के पोते की सर्पदंश से हो गयी मौत

तीन महीने पहले गुरुवारी सबर के पक्का मकान की छत ढह गयी. किस्मत से गुरुवारी और उसके परिवार के सभी लोग तब सुरक्षित बच गये. लेकिन, उसके परिवार की यह खुशी ज्यादा दिन नहीं रही. शौचालय में शरण लेने वाली गुरुवारी के पोते सुकू सबर की सर्पदंश से एक महीने पहले मौत हो गयी. 8 महीने पहले गुरुवारी सबर के पति कंचन सबर की ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) से मौत हो गयी थी.

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गाड़ी से लगी ठोकर, लंगड़ाने लगी गुरुवारी सबर

पिछले दिनों कुछ काम से गुरुवारी सबर टोला से बाहर सड़क पर गयी थी. किसी गाड़ी से ठोकर लग गयी. उसके पैर में गंभीर चोट है. लेकिन, अब तक इलाज नहीं हो पाया. इसलिए लंगड़ाकर चलती है. बड़ी मुश्किल से उठ और बैठ पाती है. शौचालय के सामने कुछ दूर पक्की सड़क है, वहीं बैठी रहती है.

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जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहीं सरकारी योजनाएं

आदिवासियों के कल्याण के लिए राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं हैं. लेकिन, उसका लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा. 1993 में सरकार ने इनके लिए घर बनाया था. उसके बाद से इसकी देखरेख किसी ने नहीं की. कभी इसकी मरम्मत नहीं करवायी गयी. ऐसा सिर्फ गुरुवारी सबर के साथ नहीं है. इस टोले में जितने भी मकान हैं, कमोबेश सभी के छत टूट चुके हैं.

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बीडीओ ने कहा: 6 आवास बनाने के लिए भेजा है प्रस्ताव

बोड़ाम प्रखंड विकास की पदाधिकारी (बीडीओ) नाजिया अफरोज से इस बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि आदिम जनजाति के 6 परिवारों के आवास के संबंध में संबंधित विभाग को पत्र भेजा गया है. उन्होंने कहा कि जर्जर बिरसा आवास की मरम्मत की सरकार की कोई योजना नहीं है. मकान टूटने पर नया आवास बनाने की योजना है. उन्होंने कहा कि आदिम जनजाति के 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को पेंशन देने की व्यवस्था है. डेढ़ माह पूर्व विशेष कैंप लगाया गया था. इस दौरान आदिम जनजातियों को विभिन्न योजनाओं से जोड़ने के लिए पंचायत सचिव ने उनकी सूची बनायी थी.

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रिपोर्ट- दिलीप पोद्दार, बोड़ाम, पूर्वी सिंहभूम

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