Prabhat Khabar Explainer : झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड क्षेत्र के सूअर (सूकर) पालक काफी परेशान हैं. अज्ञात बीमारी की चपेट में आकर प्रखंड में सैकड़ों की संख्या में सूअरों की मौत हो गयी. लगभग एक माह में क्षेत्र के सूअरों में यह बीमारी फैली है. प्रखंड पशुपालन विभाग के मुताबिक सूअरों में फैली इस बीमारी का नाम अफ्रीकन स्वाइन फीवर है. इस बीमारी की चपेट में आने से प्रतिदिन सूअरों की मौत हो रही है. जमुआ पंचायत के मुखिया फूलमनी मांडी तथा सोनाहातु पंचायत के मुखिया मोहन सोरेन ने बताया कि 2 पंचायतों में अब तक 700 से अधिक सूअरों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा लोधाशोली, कालापाथर, सरडीहा, बड़ामारा आदि पंचायतों से भी सूअरों के मरने की सूचना मिल रही है.
अफ्रीकन स्वाइन फीवर सिर्फ सूअर में फैलता है : मनोज
प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी मनोज महंता ने बताया कि चाकुलिया के कई स्थानों पर अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सूअरों के मरने की सूचना मिली है. रांची में भी इस बीमारी से बड़ी संख्या में सूअर मर रहे हैं. हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज लैब भोपाल में जांच के लिए मृत सूअरों के नमूनों को भेजा गया था. संस्थान द्वारा भेजे गए नमूनों से स्पष्ट हुआ है कि यह अफ्रीकन स्वाइन फीवर है, जो सिर्फ सूअरों में फैलता है. यह बीमारी जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है. उन्होंने कहा कि मनुष्य एवं दूसरे जानवर इस बीमारी के वाहक बनकर स्वस्थ सूअरों को संक्रमित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अब तक इस बीमारी का वैक्सीन नहीं बना है.
30 रुपये किलो बिक रहा मांस
चाकुलिया प्रखंड में अधिकतर संथाली समुदाय के लोग सूअर पालन से जुड़े हैं. जमुआ पंचायत के मुखिया पति डोमन मांडी ने बताया कि केरुकोचा में सबसे बड़ी साप्ताहिक हाट लगती है. आम दिनों इस साप्ताहिक हाट में सूअर का मांस 120 से 130 प्रति किलो बेची जाती है. हाल के दिनों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सूअरों की हो रही मौत के कारण अब महज 25 से 30 प्रति किलो सूअर मांस की बिक्री की जा रही है.
विषाणु जनित रोग है अफ्रीकन स्वाइन फीवर
यह विषाणु जनित रोग है. यह छुआछूत का रोग है. यह रोग बीमार सूअर के सम्पर्क से फैलता है. साथ ही सूअर के मलमूत्र एवं दूषित दाना-पानी से रोग फैलता है. सूअरों की देखभाल करने वालों के माध्यम से भी यह रोग फैलता है. यह रोग सिर्फ सूअरों को संक्रमित करता है.
रोग के प्रमुख लक्षण
तीव्र ज्वर, भूख न लगना या खाना छोड़ देना. उल्टी एवं दस्त (कभी-कभी खूनी दस्त), कान, छाती, पेट एवं पैरों में लाल चकत्तेदार धब्बा, लड़खड़ाते हुए चलना, 1 से 14 दिनों में मौत, किसी-किसी में मृत्यु के उपरांत मुख एवं नाक से रक्त बहना. इस रोग का कोई इलाज या टीका नहीं है. सतर्कता ही इस रोग से बचाव है.
क्या ना करें : संक्रमित क्षेत्र में सूअरों की खरीद-बिकी ना करें. सूअर फर्म में अनावश्यक आवाजाही पर रोक लगाएं. संक्रमित क्षेत्र में सूअर मांस की बिक्री पर रोक लगाएं. सूअर के बाड़े में अन्य जाति के पशुओं की आवाजाही पर रोक लगाएं.
क्या करें: पशुपालक सूअरों को होटल का जूठन अवशेष भोजन के रूप में देते हैं, तो वैसी स्थिति में भोजन को 20 मिनट उबालकर दें. असामान्य या अत्यधिक संख्या में मौत होने पर निकटतम पशु चिकित्सालय में सूचना दें.
रिपोर्ट: राकेश सिंह, चाकुलिया, पूर्वी सिंहभूम