Prabhat Khabar Special : झारखंड की आदिम जनजाति सबर के उत्थान को लेकर कई योजनाएं हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड की हलुदबनी बस्ती सबसे बड़ा सबर बहुल गांव है. यहां 65 सबर परिवार निवास करते हैं. यहां के सबरों की जिंदगी सिसक रही है, तो नौनिहालों का बचपन कुम्हला रहा है. इस सबर बस्ती में 14 बिरसा आवास कई दशक पूर्व बने हैं, जो जर्जर हो चुके हैं. सबर परिवार उसी जर्जर आवास में जान जोखिम में डाल कर परिवार और बच्चों के साथ रहते हैं.
जिस बिरसा आवास में सबर रहते हैं, उसी एक कमरे में सोते भी हैं. उसी में चूल्हा जलाकर भोजन भी पकाते हैं. जब तेज बारिश होती है तो सबर परिवार आवास छोड़कर पास के क्लब भवन में शरण लेते हैं. यहां के पोल्टू सबर, गाड़दुम सबर, मुसला सबर, हेपुल सबर, बड़ा लाछु सबर, छोटा लाछु सबर, बुधनी सबर, सुभाष सबर, पलटन सबर, धनंजय सबर, लाल सबर, जुरगुड़ी सबर, बुनटू सबर के बिरसा आवास काफी साल से जर्जर हैं. सबरों ने बताया कि कई बार प्रशासनिक पदाधिकारियों ने जांच की, पर कुछ नहीं हुआ.
हलुदबनी सबर बस्ती में 2019-20 में 65 सबर परिवारों के नाम पर शौचालय बनाये गये. वेंडर ने शौचालय बनाकर सौंप दिया, पर कुछ माह बाद अधिकतर शौचालय की छत गिर गयी. किसी की दीवार टूट गयी. कहीं पेन धंस गया है. इस शौचालय में सबर शौच के लिए नहीं गये. सबरों ने कहा कि छत गिर रही है. शौच करने जायेंगे तो मर जायेंगे. सभी सबर जंगल में शौच के लिए जाते हैं. एक शौचालय 12 हजार की लागत से बनी थी.
हलुदबनी का पोल्टू सबर कई माह से टीबी से पीड़ित है. उसका शरीर कंकाल बन गया है. मंगलवार को हालत ज्यादा बिगड़ी तो गांव के धनंजय गोप समेत कई सबर उसे लेकर घाटशिला अनुमंडल अस्पताल ले गये. पोल्टू अब काम नहीं कर पाता है. उसकी पत्नी किशोरी सबर जंगल से लकड़ी लाकर बेचती है, तब परिवार चलता है. उसके पांच बेटे बाबूलाल सबर (कक्षा आठ) और रतन सबर (कक्षा छह) में गांव के स्कूल में पढ़ता है. बाकी बच्चे रंजीत सबर, बाबूजी सबर, आकाश सबर और बेटी रांगी सबर नहीं पढ़ती है. बच्चे भी मां के साथ जंगल लकड़ी लाने जाते हैं.
हलुदबनी के कई सबर बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इसमें पाल्टू सबर के बेटे, सुभाष सबर के बेटे और एक अन्य सबर बच्चा कुपोषित हैं. आंगनबाड़ी सेविका ने तीनों को चिह्नित कर कुपोषण उपचार केंद्र जाने को कहा, पर कोई जाने के लिए तैयार नहीं है. इस बस्ती में करीब 50 से अधिक सबर बच्चे हैं, कमोवेश सभी बच्चों की जिंदगी कुम्हला गयी है. उचित भोजन, साफ-सफाई के अभाव में अधिकतर सबर बच्चे कमजोर हैं. सबर माता-पिता सुबह होते ही जंगल चले जाते हैं. बच्चे घर पर अकेले रहते हैं. इससे उनका सही पोषण और विकास नहीं हो पाता.
हलुदबनी में भारत सेवाश्रम द्वारा तांत बुनाई केंद्र संचालित होता था, जो सात वर्ष पूर्व बंद हो गया. इससे सबर महिलाओं का रोजगार छीन गया है. इस केंद्र में सबर महिलाएं तांत का गमछा, तौलिया, साड़ी बुनकर रोजगार करती थीं. अब सबर महिलाएं प्रशासन से साल पत्ता से पत्तल-दोना बनाने की मशीन की मांग कर रही हैं. यहां के पांच सबर युवक बिहारी सबर, होतू सबर, छोटू सबर, सुरेंद्र सबर और बीजू सबर रोजगार के लिए तमिलनाडु पलायन कर गये हैं. हलुदबनी सबर बस्ती में बिजली और पानी की सुविधा है. सभी को पेंशन और राशन भी मिलता है. यहां सबसे बड़ी समस्या आवास की है. सड़क भी नहीं बनी है. स्लैग बिछाकर मरम्मत की गयी.
घाटशिला के एसडीओ सत्यवीर रजक ने कहा कि हलुदबनी सबर बस्ती में कई बिरसा आवास जर्जर हाल में हैं. इसकी जानकारी है. 14 सबरों की सूची बनाकर पहले जिला भेजा गया था. कोरोना काल में मामला अटक गया. फिर से पहल करेंगे. वहां बिजली-पानी की सुविधा है. सभी को पेंशन और राशन भी मिलता है. आंगनबाड़ी में नियमित बच्चों की जांच होती है. जल्द प्रशासनिक पहल कर जर्जर आवास के निर्माण की पहल करेंगे.
रिपोर्ट : मो परवेज, गालूडीह, पूर्वी सिंहभूम