15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Tusu Festival: गांव से शहर तक फैलने लगी टुसू की खुशबू, गूंजने लगे गीत, चलने लगी ढेकी

टुसू की खुशबू गांव से लेकर शहर में फैलने लगी है. बाजारों में भी खरीदारी के लिए भीड़ बढ़ने लगी है. वहीं, टुसू गीतों से इलाका गुंजयमान हो रहा है. ग्रामीण आज भी परंपरागत ढेकी में चावल कूटने लगे हैं. कई तरह का पीठा बनाने का भी चलन है.

पटमदा, पूर्वी सिंहभूम, दिलीप पोद्दार : झारखंड, बंगाल एवं ओडिशा का मुख्य पर्व मकर संक्रांति (टुसू) की खुशबू गांव से लेकर शहर तक फैलने लगी है. टुसू पर्व की खरीदारी को लेकर बाजार में चहल-पहल बढ़ गयी है. टुसू पर्व को लेकर बाजारों में भीड़ बढ़ने लगी है. बता दें कि धनकटनी (धान की फसल कटने) के बाद झारखंड एवं सीमावर्ती क्षेत्र के लोग 15 दिसंबर (अगहन संक्रांति ) से लेकर 15 जनवरी तक पौष संक्रांति धूमधाम से मनाते हैं.

Undefined
Tusu festival: गांव से शहर तक फैलने लगी टुसू की खुशबू, गूंजने लगे गीत, चलने लगी ढेकी 4

धान ही है टुसू

बस्ती पटमदा निवासी फनी महतो बताते हैं कि टुसू मूल रूप से धान महाशक्ति की आराधना का मास व्यापी परब है. टुसू पर्व झारखंड में रहने वाली कई जनजातियां मनाती है. उनमें कुड़मी, संताल, मांझी, भूमिज, कोल, भुइयां आदि शामिल हैं. लेकिन, कुड़मी जनजाति में इसका महत्व और उत्साह कुछ अधिक ही देखने को मिलता है. टुसू का मूल स्वरूप धान है जिसे मातृशक्ति डिनी टुसुमनी कहा जाता है. टुसू शब्द की उत्पत्ति टुइ से हुई है जिसका अर्थ होता है शिखर. अर्थात सबसे बड़ा जीवनयापन का माध्यम जिसे मनुष्य ने इस छोटानागपुर में पाया. धान ही टुसू है. वर्तमान में टुसू का अलिखित इतिहास होने के कारण कहीं राज कन्या, तो कहीं कुड़मी कन्या, तो कहीं सती, तो कहीं देवी के रूप में पूजा की जाती है.

Undefined
Tusu festival: गांव से शहर तक फैलने लगी टुसू की खुशबू, गूंजने लगे गीत, चलने लगी ढेकी 5

महीने भर का पर्व है टुसू

इस परब के अंतिम सप्ताह यानि पौष माह के अंतिम सप्ताह को आउड़ी, चाउड़ी, बाउड़ी और मकर के नाम से जाना जाता है. मकर के दिन ही इस त्योहार का समापन ‘टुसू विसर्जन’ के साथ होता है. टुसू को पालकी रूपी चौड़ल में घर से निकाल कर नदी या बहते पानी में विदा कर दिया जाता है, ताकि धान किसी दूसरे स्थान पर किनारे लगकर फिर से पौधा बन किसी के पेट भरने का साधन बन सके. इसी दिन सूर्य कर्क रेखा की ओर लौटते क्रम में मकर रेखा पर होता है. अगला दिन कुड़मी जनजाति कुड़मालि कृषि नववर्ष ‘अखाइन जातरा’ के रूप में मनाते हैं.

Undefined
Tusu festival: गांव से शहर तक फैलने लगी टुसू की खुशबू, गूंजने लगे गीत, चलने लगी ढेकी 6
Also Read: Tusu Festival in Jharkhand: मकर संक्रांति के साथ मनाया जाता है टुसू पर्व, जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

गांवों में गूंजने लगे टुसू गीत, चलने लगी ढेकी

कोल्हान के ग्रामीण क्षेत्रों में ढेकी की आवाज गूंजने लगी है. टुसू पर्व में पीठा बनाने के लिए ढेकी में नये चावल की गुंडी (पाउडर) तैयार की जा रही है. ढेकी में चावल कूटते समय लोग टुसू गीत- टुसू के आनिते जाबो, चंदन काठेर चौड़ले.., ज्योति टुसू तुमि दया करो, तुमाय राखबो सोनार मंदिरे.. गुनगुनाते नजर आते हैं. हालांकि, आधुनिक युग में अब ढेकी का प्रचलन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है. गांव हो या शहर गिने-चुने घरों में ही अब ढेकी बची है, जहां आपको इसकी आवाज सुनाई दे रही है.

कुमारी कन्याएं करती हैं पूजा

एक माह तक मनाये जाने वाले टुसू पर्व को लेकर गांव-गांव में कुमारी कन्याएं तुलसी देवी को स्थापित कर प्रतिदिन संयुक्त रूप से आराधना करती हैं. टुसू खानपान एवं मनोरंजन का सबसे बड़ा पर्व है. घरों में स्थापित टुसू देवी की प्रतिदिन शाम में गीत-संगीत एवं अलग-अलग फूलों से पूजा की जाती है. देवी को चढ़ाये जाने वाले मुख्य प्रसाद गुड़, चूड़ा, लड्डू एवं बताशा हैं. टुसू पर्व के दौरान गुड़ पीठा, मांस पीठा, दाल पीठा, गॉडगोड़ा पीठा, लाव पीठा, बाउड़ी पीठ, तिल पीठा, छाका पीठा, मुढ़ी लड्डू, चूरा लड्डू, तिलकुट अर्पित किया जाता है.

खत्म हो गयी फूल पटाने की परंपरा

बस्ती पटमदा के फनी महतो ने बताया कि अब टुसू में फूल पटाने (नया रिश्ता जोड़ने) की परंपरा लगभग खत्म सी हो गयी है. दो दशक पूर्व जब गांव में टुसू मेला का आयोजन होता था, तो एक-दूसरे समुदाय के साथ फूल पटाने की परंपरा निभाते थे. इसके तहत मेले में कोई पुरुष किसी पुरुष को और महिला किसी महिला को माला पहना कर फूल पटाने की रस्म निभाते थे. उनसे रिश्ता बनाते थे. इस रिश्ते को वे आजीवन निभाते थे. दोनों अपने घर में हुए किसी भी आयोजन, शादी-विवाह, सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देते थे. अब गांवों में भी फूल पटाकर रिश्ता जोड़ने की परंपरा देखने को नहीं मिलती.

Also Read: Tusu Festival: रांची के DSPMU में ढोल-नगाड़े की थाप पर मना टुसू महोत्सव, कुलपति ने बताया पर्व का महत्व

चौड़ल बनाकर आजीविका चलाते हैं कालीपद

बोड़ाम के भुला गांव निवासी कालीपथ सहिस चौड़ल बनाकर एक ओर जहां संस्कृति को बचाये हुए हैं. वहीं दूसरी ओर यह इनके रोजगार का साधन भी है. जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. टुसू चौड़ल बनाने के इस कार्य में उनके साथ उनकी पोती बास्की सहिस एवं सुलोचना सहिस भी हाथ बटाती हैं. कालीपथ सहिस बताते हैं कि झारखंडी लोग अब अपनी संस्कृति व परंपरा को धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं. अब चौड़ल बनाने में पहले की तरह आमदनी नहीं होती. क्षेत्र में टुसू प्रतिमा एवं चौड़ल बनाने वाले अब गिने-चुने कारीगर ही बचे हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें