गौरव पाल, पूर्वी सिंहभूम (बरसोल). देश की आजादी को 75 वर्ष व झारखंड राज्य बने 22 वर्ष बीत जाने के बाद भी बहरागोड़ा प्रखंड अंतर्गत मालकुंडा, प्रतापपुर, फूलकुड़िया, गांव सुविधाओं के लिए तरस रहा है. यह सब गांव प्रखंड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. प्रतापपुर गांव में दो सौ लोग निवास करते हैं. गांव में दलित पिछड़ी जाति वर्ग के लोग रहते हैं. जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक उपेक्षा के कारण सड़कविहीन प्रतापपुर व फूलकुड़िया गांव बरसात में टापू बन जाता है.
बरसात आते ही गांव टापू बन जाता है
बरसात आते ही गांव टापू बन जाता है. गांव के अधिकांश लोग मजदूरी व खेती कर जीविकोपार्जन करते हैं. गांव में एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय, सरकारी कूप, बिजली के अलावे कुछ भी सुविधा नहीं है. लोगों को जीने के लिए सबसे पहले सड़क की आवश्यकता होती है जो अब तक नहीं मिल पाया है. गांव के लोग खेतों की मेढ़ के सहारे चलकर गांव से निकलते और पहुंचते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक, चुनाव में जैसे-तैसे उस गांव में नेता पहुंचते हैं और बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर चले आते हैं.
केवल खेती व मजदूरी ही आय का जरिया
इस गांव के लोग खेती व मजदूरी कर जीविकोपार्जन करते आ रहे हैं. लोगों को घर आने के लिए पक्की सड़क तो दूर, कच्ची सड़क भी ठीक से नसीब नहीं है. बरसात आते ही ग्रामीण करीब तीन माह तक कीचड़मय पगडंडी से आना-जाना करने को विवश हो जाते हैं. गांव में शादी, विवाह, यज्ञ या अन्य कार्यक्रम होता है तो उसमें भाग लेने के लिए बाहर से आनेवाले अतिथि दो किलोमीटर पगडंडी रास्ते से पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं.
Also Read: गुमला जिले को मिलेगा पीएम अवॉर्ड, पहली बार झारखंड के किसी जिले का हुआ चयन
कोई रिश्ता करने के लिए नहीं पहुंचता
ग्रामीणों सुबल सिंह, भरत सिंह, बिसु सिंह, सपन सिंह, हेमन्त सिंह, गोपाल धुली, निताई धुली, गौरंग धुली, शामापद धुली, सुबल बैठा, मिथुन बैठा, भूपति बैठा, मुकुंद धुली, रॉबिन धुली, पुलिन बैठा, जगत बैठा आदि ने बताया कि यहां दलित व पिछड़ी जाति के ही लोग रहते हैं. गांव को सभी जनप्रतिनिधि अब तक उपेक्षित करते आ रहे हैं अन्यथा कब की सड़क बन गई होती. साथ ही कहा कि इस गांव में कोई रिश्ता करने के लिए नहीं पहुंचता है.
एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में यदि किसी की अचानक तबीयत खराब हो जाती है तो एंबुलेंस भी गांव में नहीं पहुंच पाती है. वह भी दो किलोमीटर की दूरी पर ही रुक जाती है. मरीज किसी तरह वहां तक पहुंचते हैं और तब एंबुलेंस पर चढ़ते है. बरसात में सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ती है. बरसात खत्म होने के बाद ग्रामीणों को कुछ राहत मिलती है.