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विश्व रंगमंच दिवस : डुमरिया के रघुनाथ मुर्मू ने संताली ड्रामा को दी ऊंचाई, 16 साल की उम्र में लिखे संताली नाटक

पूर्वी सिंहभूम के बारेडीह गांव में जन्मे रघुनाथ मुर्मू ने संताली ड्रामा को नया आयाम दिया है. वे लेखन, संचालन और निर्देशन में अमिट छाप छोड़ चुके हैं. रघुनाथ मुर्मू 15 से 20 संताली नाटक और एकांकी लिख चुके हैं.

डुमरिया (पूर्वी सिंहभूम), अनूप साव : पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत डुमरिया प्रखंड में प्रतिभा की कमी नहीं है. ऐसा ही एक नाम रघुनाथ मुर्मू है. डुमरिया की कांटाशोल पंचायत के बारेडीह गांव के गरीब घर में जन्मे रघुनाथ मुर्मू ने संताली ड्रामा को नया आयाम दिया है. वे लेखन, संचालन और निर्देशन में अमिट छाप छोड़ चुके हैं. वर्तमान में पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदनीपुर के पांसकुड़ा वनमाली कॉलेज में संताली भाषा के लेक्चरर हैं.

16 साल की उम्र में संताली नाटक लिखे

रघुनाथ मुर्मू बताते हैं कि लेखन की ओर झुकाव सातवीं कक्षा से था. एक बार पिता वासुदेव मुर्मू कोलकाता से मुसाबनी लेकर आये. यहां संताली ड्रामा देखकर प्रेरणा मिली. 16 साल की उम्र में वर्ष 1985 में संथाली नाटक आकोथावन हाहाड़ा कुकमु (किनका विचित्र सपना) लिखा. इस नाटक का मंचन डुमरिया के दामदी गांव में हुआ. यहीं से जिंदगी में लेखनी के क्षेत्र में नया मोड़ दिया. उस समय रघुनाथ मुर्मू 10वीं कक्षा में थे.

रघुनाथ मुर्मू द्वारा लिखित प्रमुख नाटक

नाटक : वर्ष

ओकोमाञ हाहाड़ा कुकम् (किनका विचित्र सपना) : 1985

आलोम ताड़ाम पारोमा गाडाडे (चौसट पार मत करो) : 1988

ओलो रेबाड् बारडू (वक्त की आंधी) : 1992

लाहांती (विकास) : 1995

आखरिञ एना दूलाड़ टाकाते (प्यार का सौदा) : 1996

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बोंगा माईया : सिंदुर गुलाछी (विधवा के मांग में सिंदूर) : 1997

तोपाक् ऐना तोल गिरा(मंगनी टूट गई) : 1997

रघुबाबु कारबार मोदोरमुली रायबार (रघुबाबु का कारनामा और मोदोमुली घटकदारी) : 1997

बिर चेंडे को उड़ार एन, नित दो जुरी आँगा एन (जंगल के पंक्षी उड़ चले, साथी अब सबेरा हुआ) : 1998

इञ दञ चालाक् काना जाॅवाय ओड़ाक् (मैं तो चली ससुराल) : 2008

साद रेया : माला मुदाम (शौक का माला व अंगूठी) : 2009

हाड़ाम हाडूम दिलवाडओककान सोनेर ढिलेवाडःओक कान सोनेर ढिलेवाड रे (बुढ़े लंगूर झूल रहा है सोने के झूले पर) : 2014

हुरूम जिगिर जिवीलोःकान सारा सेंगेल रे (दिल जल रहा है जलती चिता से) : 2015

विदाई इमाञ मेरे गाते ,जोहा पेरेच चोः काते (विदाई दे मुझे साथी गालों को चुमकर) : 2015

आम किरिंञ किया सिंदुर, इञाक् आतूड़ सेपेञ तिरे (आपका खरिदा सिंदूर मेरे हाथ में) : 2016

सात रे तिरयो आकारे बानाम आकारे ताहे एन तिञ (घर के छावनी के नीचे बांसुरी टांगा, केंद्री टांगा ही रह गया) : 2017

एकांकी : बाडं बाडं ते (ना ना करते) और साड़ बाहा रे सांगे भांवर (एक फूल पर कई भंवरे).

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