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झारखंड गुवा गोलीकांड : तिल-तिल कर मर रहा शहीद परिवार, बहादुर उरांव को 2 बेटों को खोकर चुकानी पड़ी कीमत

चक्रधरपुर : आठ सितंबर आते ही गुवा गोलीकांड के शहीदों के परिवार के जख्म ताजा हो जाते हैं. बीते 42 साल से शहीदों का परिवार तिल-तिल कर मर रहा है. 8 सितंबर, 1980 को गुवा गोलीकांड में 10 आदिवासियों की शहादत हुई थी. आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में शामिल बहादुर उरांव ने अपने जुड़वां बेटों को खो दिया था.

चक्रधरपुर : आठ सितंबर आते ही गुवा गोलीकांड के शहीदों के परिवार के जख्म ताजा हो जाते हैं. बीते 42 साल से शहीदों का परिवार तिल-तिल कर मर रहा है. 8 सितंबर, 1980 को गुवा गोलीकांड में 10 आदिवासियों की शहादत हुई थी. आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में शामिल बहादुर उरांव ने अपने जुड़वां बेटों को खो दिया था. इसकी टीस उन्हें, उनकी पत्नी लखीमुनी उरांव समेत पूरे परिवार को आजीवन रहेगी. गुवा में संघर्ष के बाद पुलिस अधिकारियों ने आंदोलनकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिये थे. इससे बचने के लिए बहादुर किसी तरह वहां से निकल गये. रेलवे में नौकरी के बावजूद बहादुर उरांव ने गुवा व अलग राज्य आंदोलनों में हिस्सा लिया.

घटना के बाद फरार बहादुर के घर की कुर्की-जब्ती हुई

गोलीकांड के बाद पुलिस बहादुर उरांव को तलाश कर रही थी. वह जंगलों में छिपते फिर रहे थे. महीनों तक फरारी की सजा काटते रहे. उनके घर के बाहर पुलिस की घेराबंदी कर दी गयी. पुलिस ने थक-हार कर चक्रधरपुर राखा आसनतलिया उरांव बस्ती स्थित बहादुर उरांव की घर की कुर्की जब्ती की. बर्तन, अनाज, बिस्तर समेत घर का हर सामान जब्त कर लिया. मकान का खपड़ा तक उतार लिया. दरवाजे-खिड़कियां ले गये. पत्नी लखीमुनी उरांव ने भोजन के लिए बर्तन और बच्चों को सुलाने के लिए बिस्तर की मांग की, लेकिन पुलिस वालों ने कुछ नहीं छोड़ा.

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इलाज के बिना जुड़वां बच्चों की हो गयी मौत

गुवा गोलीकांड के दिन लखीमुनी उरांव गर्भ से थी. जब घर की कुर्की जब्ती हुई, तो जुड़वां बेटों का जन्म हो चुका था. पुलिस द्वारा बिस्तर जब्त कर लेने से वह जुड़वां बच्चों को विवश होकर जमीन पर सुलाती थी. ठंड लगने के कारण दोनों बच्चे निमोनिया के शिकार हो गये. लखीमुनी बच्चों का इलाज नहीं करा पायी और दोनों मासूम की मौत हो गयी. बहादुर उरांव की तीन पुत्रियां सावित्री उरांव, सरिता उरांव व सीमा उरांव हैं. जुड़वां बेटों में एक का नाम बहादुर उरांव के पिता के नाम पर सखुवा उरांव व दूसरे का नाम दादी करमी उरांव के नाम पर करम उरांव रखा गया था.

जेल से छूटने पर दो साल तक पत्नी ने बात नहीं की

बाद में बहादुर उरांव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. वह जेल से रिहा हुए, तो पत्नी लखीमुनी ने 2 साल तक बेटों को खोने के कारण माफ नहीं की थी. दोनों में मतभेद रहा. अब बहादुर 82 और लखीमुनी 72 साल की हो गयी हैं, लेकिन आज भी उन्हें जुड़वां बेटों को खोने और एक भी बेटा नहीं होने की कमी खलती है.

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