Papaya Cultivation, West Singhbhum News, पश्चिमी सिंहभूम (रवींद्र यादव) : भारत सरकार के रुर्बन मिशन के तहत टाटा स्टील फाउंडेशन पपीते की खेती परियोजना से नोवामुंडी के 50 किसानों की मदद कर रहा है. इन किसानों को अगले तीन वर्षों तक आय का निरंतर स्रोत प्रदान करेगा. पिछले साल मार्च में शुरू हुई यह परियोजना खेती के पहले चरण में है. 50 से अधिक किसान 25 एकड़ से अधिक भूमि पर पपीता की खेती कर रहे हैं. इन्हें खेती के लिए पपीता की सबसे अच्छी किस्मों में से एक ‘रेड लेडी’ प्रदान किया गया है.
नोवामुंडी और आस-पास के गांवों से 20-40 वर्ष के अधिकतर किसान इस परियोजना से जुड़े हैं. इस परियोजना में शामिल सबसे कम उम्र के किसानों में से एक कुचीबेड़ा गांव के करण पूर्ति केवल 19 वर्ष के हैं. पहले खेती में अपना करियर बनाने और एक टिकाऊ आय के लिए सही प्रकार की फसलों का पता लगाने के लिए संघर्ष करने वाले करण अब इस परियोजना का हिस्सा बन कर बेहद खुश हैं.
करण कहते हैं कि जब मैंने खेती में पूर्णकालिक गतिविधि के रूप में उद्यम किया, तो मुझे पपीते की खेती से होने वाले फायदे के बारे में जानकारी नहीं थी. जब टाटा स्टील फाउंडेशन ने मुझसे संपर्क किया और मेरी जमीन में पपीते की खेती करने में मदद की पेशकश की, तो मैं काफी उत्साहित था. पहली फसल अगले कुछ महीनों में तैयार हो जायेगी और मुझे खुशी है कि इससे मुझे आगे परिवार के लिए अगले तीन वर्षों तक स्थिर आय का एक स्रोत मिल गया है.
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इस खेती के पहले वर्ष में 30 हजार रुपये से ऊपर आय की संभावना है. यहां से यह संख्या और बढ़ेगी तथा खेती के अंतिम वर्ष में आय का यह आंकड़ा 80 हजार रुपये से अधिक हो सकता है. इस प्रकार यह किसानों को आय बढ़ाने में बेहतरीन रिटर्न देती है. इसके अलावा, चूंकि पपीते की खेती के लिए पूरी भूमि का उपयोग करने की जरूरत नहीं होती है. इसलिए ये किसान अपनी आय को कई गुना बढ़ाने के लिए अन्य फसलों की खेती भी कर सकते हैं.
Posted By : Guru Swarup Mishra