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झारखंड : गुवा गोलीकांड के चश्मदीद सुखदेव हेंब्रम बोले- हादसे को याद करने मात्र से कांप उठती है रुह

पश्चिमी सिंहभूम के गुवा गोलीकांड की याद आज भी ताजा है. इसको याद कर लोग आज भी सिहर उठते हैं. आठ सितंबर, 1980 को पुलिस ने आदिवासियों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलायी. इसमें 11 आदिवासी शहीद हुए, वहीं कई भागकर अपनी जान बचाई. इसी में एक हैं सुखदेव हेंब्रम. चश्मदीद सुखदेव ने इससे जुड़ी पूरी कहानी बतायी.

चक्रधरपुर (पश्चिमी सिंहभूम), शीन अनवर : गुवा गोलीकांड झारखंड के इतिहास का काला अध्याय है. निहत्थे आदिवासियों को पंक्ति में खड़ाकर गोलियों से भून देने की इस घटना जलियांवाला बाग की घटना की पुनरावृति मानी जाती है. इस गोलीकांड के कई चश्मदीद आज भी जीवित हैं. इनमें से एक मास्टर सुखदेव हेंब्रम हैं. प्रभात खबर से खास मुलाकात के दौरान श्री हेंब्रम ने बताया कि घटना की स्मरण मात्र से रुह कांप उठती है. इस घटना को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था.

पुलिस ने आदिवासियों पर ढाहे थे कहर

उन्होंने बताया कि उस समय मैं गोइलकेरा में शिक्षक था. अलग झारखंड राज्य की मांग हो रही थी. जल, जंगल और जमीन पर आदिवासी अपना अधिकार मांग रहे थे. गोइलकेरा, चिरिया, गुवा, मनोहरपुर के गांवों में पुलिस आदिवासियों के घरों को अकारण तोड़ रही थी. घर का सारा अनाज भी पुलिस अपने साथ ले जाती थी. आदिवासी बालिकाओं के साथ दुर्व्यवहार आम बात थी. गुवा माइंस से निकलने वाला लाल पानी किसानों के खेतों में जा रहा था. इससे खेती बर्बाद हो रही थी. गुवा माइंस में स्थानीय बेरोजगारों को नौकरी तक नहीं दी जा रही थी. वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा नहीं दिया जा रहा था. बिहार सरकार, वन विभाग और गुवा माइंस के विरुद्ध आदिवासियों में आक्रोश था. आक्रोश की एक वजह गुवा गोलीकांड से पहले ईचाहातु गोलीकांड और सेरेंगदा गोलीकांड की घटना घट चुकी थी. गोइलकेरा हाट में सभा कर रहे आदिवासियों पर लाठी चार्ज किया जा चुका था.

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गुवा में आठ सितंबर को थी आमसभा

जंगल आंदोलन और झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेताओं ने आठ सितंबर, 1980 को गुवा में एक आमसभा करने का ऐलान किया. यह एक ऐसा ऐलान था, जिसे सुनने के लिए हर आदिवासी गुवा की तरफ कूच करने लगे. सुखदेव बताते हैं कि छह और सात सितंबर को भारी संख्या में आदिवासी पैदल घरों से निकल कर गुवा की ओर रवाना हो गये. गुवा जाने वाली सड़कें पैदल चलने वाले आदिवासियों से भर गयी थी. आदिवासियों के इतनी बड़ी भीड़ जमा होते देख जिला व पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया. सुखदेव बताते हैं कि गुवा प्रस्थान से पूर्व गोइलकेरा में आंदोलनकारी साथी दिवंगत शुला पूर्ति, ईश्वर सरदार, जुरा चेरवा, मरियम चेरवा, सुकराम कासरा, सोमा मुंडा, रत्नी पूर्ति के साथ सात सितंबर की सुबह बैठक हुई. इसमें तय हुआ कि दोपहर दो बजे तक गुवा के एरोड्रम में सभी लोग इकट्ठा होंगे. वहां से जुलूस निकाल कर सभा स्थल गुवा बाजार जायेंगे.

आमसभा के लिए रास्ते में ही डीन ने मांगा पत्र

सुखदेव हेंब्रम बताते हैं कि एरोड्रम में 10 हजार से अधिक आदिवासियों की भीड़ जमा हो चुकी थी. जुलूस जब निकला तो तत्कालीन एलआरडीसी फ्रांसिस डीन ने रास्ते में ही मांग पत्र ले लिया. डीन ने कहा आप सभा कीजिए. गुवा बाजार में सभा शुरू हुई ही थी कि पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया. कहा गया कि निषेधाज्ञा लगा है, इसलिए सभा नहीं कर सकते. वापस जाने को कहा गया, इसी बीच धक्का-मुक्की शुरू हो गई, फिर ताबड़तोड़ गोलियां चलने लगी.

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डॉक्टर के घर में घुसकर जान बचायी

सुखदेव बताते हैं कि चार आदिवासी घटनास्थल पर ही शहीद हो गये. एक घायल साथी को लेकर जब अस्पताल पहुंचे, तो वहां नंगी नाच देखने को मिला. एक पंक्ति मे निहत्थे आदिवासियों और मुझे भी पंक्ति में खड़ा कर दिया गया. मेरे दूसरे कोने से गोली मारी जाने लगी. सात आदिवासियों को गोली मार दी गई, एकमात्र मैं दीवार फांदकर एक डॉक्टर के घर में जा घुसा, डॉक्टर की पत्नी ने मेरी मदद की. रात भर डॉक्टर के घर में रहे, फिर अहले सुबह दातून-पत्ता बेचने जाने वालों के साथ हो लिया. सिर पर दातून-पत्ता लादकर भाग निकला, नदी पार कर जामदा पहुंचे. इस बीच देवेंद्र माझी हमें खोजते हुए पहुंचे. उनसे मिला. उनके साथ सीधे पटना गये. पटना में सुखदेव हेंब्रम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया. पूरी घटना की जानकारी दी. इसके बाद मीडिया की सुर्खियों में गुवा गोलीकांड छा गया.

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