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Olympics: लवलीना के पदक जीतने के बाद गांव का होगा कायाकल्प, भारत लौटने पर चकाचक मिलेगी कभी कीचड़ से भरी सड़क

Lovlina medal, Olympics 2020, native village, Assam, new road लवलीना के ओलंपिक पहुंचने और पदक पक्का करने के साथ ही उनके गांव की सूरत भी बदलने लगी है. दरअसल लवलीना असम के गोलाघाट जिले की एक सुदूर गांव बारोमुखिया की रहने वाली हैं. लवलीना का गांव मुख्य सड़क से करीब 3.5 किलोमीटर दूर है.

टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में बुधवार को भारत की झोली में एक और मेडल आना तय है. जब बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain ) 69 किग्रा वर्ग में फाइनल में क्वालीफाई के लिए रिंग पर उतरेंगी. पहले से ही मेडल अपने नाम कर चुकीं लवलीना अगर फाइनल में पहुंच जाती हैं, तो यह बॉक्सिंग इतिहास में बड़ा रिकॉर्ड होगा. बुधवार 4 अगस्त को लवलीना का मुकाबला तुर्की की मौजूदा विश्व चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली से है.

इधर लवलीना के ओलंपिक पहुंचने और पदक पक्का करने के साथ ही उनके गांव की सूरत भी बदलने लगी है. दरअसल लवलीना असम के गोलाघाट जिले की एक सुदूर गांव बारोमुखिया की रहने वाली हैं. लवलीना का गांव मुख्य सड़क से करीब 3.5 किलोमीटर दूर है. लेकिन गांव पहुंचने के लिए लवलीना के माता-पिता और गांव वालों को काफी दिक्कत होती थी. बरसात शुरू होते ही सड़क कीचड़ और गड्ढों में बदल जाती थी. लेकिन लवलीना के ओलंपिक सफर के साथ ही गांव का नजारा भी अब बदलने लगा है.

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कभी कीचड़ से सनी सड़क का कायाकल्प होने लगा है. ऐसी संभावना है कि जब लवलीना मेडल जीतकर अपने गांव लौटेंगी तो, उनकी गाड़ी सरपट सड़क पर दौड़ेगी. पीडब्ल्यूडी की ओर से सड़क निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है. खबर है कि मानसून खत्म होते ही कच्ची सड़क को पक्का कर दिया जाएगा.

गौरतलब है कि लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) बुधवार को तुर्की की मौजूदा विश्व चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली के खिलाफ जीत दर्ज करके ओलंपिक फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय मुक्केबाज बनने की कोशिश करेगी. असम की 23 वर्षीय लवलीना इतिहास रचने की दहलीज पर खड़ी है. वह पदक पक्का करके पहले ही विजेंदर सिंह (2008) और एम सी मैरीकॉम (2012) की बराबरी कर चुकी है. लवलीना का पदक पिछले नौ वर्षों में भारत का मुक्केबाजी में पहला पदक होगा. उनका लक्ष्य फाइनल में पहुंचना है, जहां अभी तक कोई भारतीय नहीं पहुंचा है.

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