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Microsoft CEO नडेला से मिले कुंबले, कहा- करियर के आखिरी दिनों में मिला ”हेडमास्टर” का तमगा

नयी दिल्ली : मैदान पर अपना सब कुछ झोंकने के लिये मशहूर रहे पूर्व भारतीय कोच अनिल कुंबले ने कहा कि बेहद अनुशासित परवरिश से वह अपने जीवन में अनुशासन प्रिय बने जिसकी वजह से उन्हें अपने चमकदार करियर के आखिरी दिनों में हेडमास्टर का अप्रिय तमगा भी मिला. कुंबले ने माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2017 7:01 PM

नयी दिल्ली : मैदान पर अपना सब कुछ झोंकने के लिये मशहूर रहे पूर्व भारतीय कोच अनिल कुंबले ने कहा कि बेहद अनुशासित परवरिश से वह अपने जीवन में अनुशासन प्रिय बने जिसकी वजह से उन्हें अपने चमकदार करियर के आखिरी दिनों में हेडमास्टर का अप्रिय तमगा भी मिला.

कुंबले ने माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला के साथ अपने बचपन की सीख के बारे में बातचीत की जिसने उन्हें सफल क्रिकेटर बनने में काफी मदद की. हैदराबाद में जन्में और खुद को क्रिकेट प्रेमी कहने वाले नडेला ने उनकी बातों को गौर से सुना. नडेला ने जब कुंबले से पूछा कि उन्हें अपने माता पिता से क्या सीख मिली, उन्होंने कहा, आत्मविश्वास.

यह उन संस्कारों से आता है जो आपको अपने माता-पिता और दादा-दादी, नाना-नानी से मिलते हैं. कुंबले ने कहा, मेरे दादा स्कूल में हेडमास्टर थे और मैं जानता हूं कि यह शब्द (हेडमास्टर) मेरे करियर के अंतिम दिनों में मुझसे जुड़ा. इनमें से कुछ समझ जाएंगे (कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं. ) एक कड़क कोच की प्रतिष्ठा बनाने वाले कुंबले ने इस साल जून में विवादास्पद परिस्थितियों में भारतीय कोच पद छोड़ दिया था.
उन्होंने इसके लिये भारतीय कप्तान विराट कोहली के साथ अस्थिर रिश्तों को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद से ही भारत की तरफ से सर्वाधिक विकेट लेने वाले इस गेंदबाज ने चुप्पी साध रखी है. कुंबले और नडेला के बीच बातचीत माइक्रोसॉफ्ट सीईओ की हाल में जारी की गयी किताब हिट रिफ्रेश के ईद गिर्द घूमती रही. दोनों ने अपनी जिंदगी के हिट रिफ्रेश क्षणों के बारे में काफी बात की.
कुंबले ने कहा कि 2003-04 का ऑस्ट्रेलिया दौरा वह समय था जब उनके सामने खुद का करियर पुनर्जीवित करना चुनौती थी. भारत ने चार टेस्ट मैचों की यह श्रृंखला ड्रॉ करायी थी. उन्होंने कहा, एक क्रिकेटर होने के नाते आपको हर श्रृंखला की समाप्ति पर खुद को अगली चुनौती के लिये तैयार करना होता है. एक श्रृंखला से दूसरी श्रृंखला के लिये चुनौतियां भिन्न होती है. लेकिन मैं 2003-04 के ऑस्ट्रेलिया दौरे का जिक्र करना चाहूंगा जब मैं अपने करियर को लेकर दोराहे पर खड़ा था.
कुंबले ने कहा, मैं अंतिम एकादश में जगह बनाने के लिये प्रतिस्पर्धा (हरभजन सिंह के साथ) कर रहा था. मैं 30 की उम्र पार कर चुका था और लोग मेरे संन्यास को लेकर बातें करने लगे थे. मुझे एडिलेड टेस्ट में मौका मिला जिसे हमने जीता था. उन्होंने कहा, मैंने पहले दिन काफी रन लुटाये लेकिन दूसरे दिन पांच विकेट लेने में सफल रहा.
मुझे कुछ अलग करने की जरुरत समझ में आयी. इसलिए मैंने अलग तरह की गुगली फेंकनी शुरू की जो मैंने तब सीखी थी जब मैं टेनिस बॉल से क्रिकेट खेला करता था. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं अपने खेल में सुधार करने के लिये थोड़े बदलाव कर सकता हूं. भारतीय क्रिकेट के महत्वपूर्ण मोड के बारे में पूछे जाने पर कुंबले ने 1983 की विश्व की जीत और ऑस्ट्रेलिया के 2001 के दौरे का जिक्र किया जब भारत ने पिछड़ने के बाद वापसी करके 2-1 से जीत दर्ज की थी.
उन्होंने कहा, नब्बे के दशक की सबसे अच्छी बात यह रही है कि हमने घरेलू सरजमीं पर लगभग हर मैच जीता. लेकिन अगर आप एक महत्वपूर्ण मोड़ की बात करना चाहते हो तो वह 2001 की भारत -ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला थी. मैंने चोटिल होने के कारण उसमें हिस्सा नहीं लिया था. कुंबले ने कहा, यह वह समय था जबकि टीम को अपनी असली क्षमता का पता चला. इसके बाद भारतीय क्रिकेट लगातार मजबूत होता रहा और हम नंबर एक भी बने.

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