।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
अगर गावस्कर की बात करें तो 1971 में जब उन्होंने टेस्ट क्रिकेट खेलना आरंभ किया, तब से लेकर जब तक संन्यास नहीं लिया, तब तक टीम के महत्वपूर्ण हिस्सा बने रहे. पहले ही सीरीज में, वह भी वेस्ट इंडीज के खिलाफ अगर कोई युवा खिलाड़ी चार टेस्ट में 774 रन बना ले, चार-चार शतक जमा ले, तो वह मामूली खिलाड़ी तो होगा नहीं.
गावस्कर ने ही यह करिश्मा दिखाया था. उनका यह करिश्मा आगे भी जारी रहा था. लगभग 16 साल तक टीम इंडिया में ओपनिंग बल्लेबाजी का एक छोर गावस्कर ने संभाले रखा था और दूसरी ओर उनकी जोड़ी बदलती रही. याद रखना मुश्किल है कि उनके साथ किन-किन खिलाड़ियों ने पारी की शुरुआत की. अगर ब्रेडमैन के 29 शतकों का रिकॉर्ड सबसे पहले किसी ने तोड़ा तो वह गावस्कर ही थे.
पहली बार किसी ने टेस्ट में दस हजार रन बनाने का रिकॉर्ड बनाया तो वह सुनील गावस्कर ही थे. न जाने कितने रिकॉर्ड. वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजों का बिना हेलमेट पहले अगर किसी खिलाड़ी ने सामना किया तो गावस्कर ही तो थे.
न सिर्फ एक बेहतरीन खिलाड़ी बल्कि बेहतर इंसान, खिलाड़ियों के लिए बोर्ड से टकराने की बात आती तो गावस्कर ही होते थे. बड़ा कद. हर वर्ग में लोकप्रिय. सभी के लिए आदर के पात्र गावस्कर सचमुच ध्यानचंद लाइफ टाइम अवार्ड के हकदार हैं. उनके बाद के दौर के बड़े खिलाड़ी बने सचिन. उनके भी आदर्श गावस्कर ही रहे. सचिन ने रिकॉर्ड भी तोड़ा तो गावस्कर का ही.
सचिन को आगे बढ़ाया तो गावस्कर ने ही. जब सचिन ने एक से एक रिकॉर्ड बना कर क्रिकेट को अलविदा कहा, शतकों का शतक लगाया (वनडे और टेस्ट दोनों में सर्वाधिक शतक, सर्वाधिक टेस्ट, वनडे रन आदि) तो लगा कि शायद ही कोई खिलाड़ी सचिन से आगे निकल पायेगा.
सचिन ने आगे की यात्रा के लिए जिम्मेवारी सौंपी कोहली को. ठीक वैसे ही जैसे गावस्कर ने उन्हें (सचिन को) सौंपी थी. वही कोहली आज बल्लेबाजी में धूम मचा रहे हैं, सचिन के रिकॉर्ड के करीब जा रहे हैं. अगर सचिन से कोई खिलाड़ी आगे निकल सकता है तो वह विराट कोहली ही हो सकते हैं.
अब तक के खेल ने यही संकेत दिया है. कम समय में बड़ी उपलब्धि. एक जुनूनी खिलाड़ी, जिसके लिए क्रिकेट ही सब कुछ है. याद कीजिए, वह दिन जब कोहली रणजी मैच खेल रहे थे. रात में मालूम हुआ कि पिता की तबीयत खराब है. घर गये तो रात में पिता की मौत हो गयी. जिस टीम से वे खेल रहे थे, वह संकट में थी. असमंजस में थे कि पिता का अंतिम संस्कार करें या टीम को हार से बचाये.
कोहली ने दूसरा रास्ता चुना. पहले टीम को हार से बचाया. फिर घर आये और पिता का अंतिम संस्कार किया. ऐसा जुनून और कमिटमेंट है इस कोहली में. इसलिए खेल रत्न के सबसे बड़े दावेदार तो कोहली ही हैं. टीम इंडिया को अगला वर्ल्ड कप जिताने की जिम्मेवारी भी कोहली के कंधे पर ही है. पहले ही कोहली को यह सम्मान मिल जाना चाहिए था.
तीसरा नाम है द्रविड का. टीम इंडिया की दीवार वे थे. क्या मजाल कि कोई आसानी से उनकी विकेट ले ले. विकेट पर खड़ा हो गये तो समझ लीजिए गेंदबाजों की सामत आ गयी. विकेट के लिए तरसते थे गेंदबाज. गजब का धैर्य. तकनीक में सौ फीसदी परफेक्ट. चुपचाप क्रिकेट को अलविदा कह दिया था. तब फार्म में चल रहे थे. कोई स्वार्थ नहीं.
टीम इंडिया को दुनिया की नंबर वन टीम बनाने में बड़ा योगदान. कई मैचों में टीम को निश्चित हार से बचाया, वहीं कई बार असंभव जीत दिलायी. जब क्रिकेट से संन्यास लिया तो उन्हें टीम इंडिया के लिए कई ऑफर आये लेकिन उन्होंने युवा टीम को प्रशिक्षित करना बेहतर समझा. बड़ी चुनौती ली. यह उन्हीं की मेहनत का फल है कि टीम इंडिया (अंडर 19) वर्ल्ड चैंपियन बनी.
बेहतर खिलाड़ी तो थे ही, बेहतर कोच भी साबित हुए. ऐसे कोच-खिलाड़ी यानी द्रविड़ का नाम द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए भेजा जाये तो उनके मुकाबले कोई और नाम याद भी नहीं आता.