एशियन गेम्स की खुमार में गुम हो गया इंग्‍लैंड में टीम इंडिया की हार, फजीहत से बच गयी ”विराट सेना”

।। अनुज कुमार सिन्‍हा ।। चौथा टेस्ट भारत हारा और साथ में सीरीज भी, लेकिन इस हार की ओर अभी तक बहुतों को ध्यान नहीं गया है. कारण है पूरे देश की निगाह एशियन गेम्स की ओर थी, जहां हमारे खिलाड़ियों ने रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन किया. गोल्ड पर गोल्ड जीते. लेकिन क्रिकेट में चौथे टेस्ट की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2018 4:51 PM

।। अनुज कुमार सिन्‍हा ।।

चौथा टेस्ट भारत हारा और साथ में सीरीज भी, लेकिन इस हार की ओर अभी तक बहुतों को ध्यान नहीं गया है. कारण है पूरे देश की निगाह एशियन गेम्स की ओर थी, जहां हमारे खिलाड़ियों ने रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन किया.

गोल्ड पर गोल्ड जीते. लेकिन क्रिकेट में चौथे टेस्ट की हार ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. अब पांचवां टेस्ट हारे या जीते, कोई फर्क नहीं पड़ता. जैसे 3-1 से हारे, वैसे 4-1 से हारेंगे. ऐसी बात नहीं कि टीम इंडिया चौथा टेस्ट जीत नहीं सकती थी. गेंदबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया और एक समय इंग्लैंड को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया था.लेकिन इंग्लैंड के नंबर छह से लेकर नंबर 10 के खिलाड़ियों ने उसे बचा लिया. फिर भी ऐसा स्कोर नहीं था, जो बन नहीं सकता था. अब चौथी पारी में 245 रन भी नहीं बना पायेंगे तो जीत का सपना भी मत देखिए. कोई भी टीम आपको चौथी पारी में 70-80 रन का लक्ष्य नहीं देगी. रन तो बनाना होगा. 245 का लक्ष्य है और तीन दिग्गज (तोप खिलाड़ी) 22 रन के भीतर आउट हो जायें तो हारना ही है. बार-बार कोहली नहीं बचानेवाले.

इंग्लैंड में सीरीज जीतने का सपना टूटा तो इसके लिए बल्लेबाज दोषी हैं, गेंदबाज नहीं. चौथे टेस्ट की चौथी पारी में धवन, राहुल और पुजारा के जल्दी आउट होने के बाद भी तब तक उम्मीद बनी हुई थी जब तक कोहली और रहाणे मैदान पर थे. इंग्लैंड को सिर्फ इसी जोड़ी को तोड़ना था. उसे पता था कि बाकी के खिलाड़ी आया राम-गया राम वाले हैं. चाहे पांड्या हों या पंत, रन तो इस सीरीज में किसी ने बनाया नहीं. जब शीर्ष खिलाड़ी नहीं बनायेंगे तो ईशांत शर्मा, बुमराह और शमी आपको रन भी नहीं बना कर दे देंगे. यह काम मूलत: बल्लेबाजों का है.

भारत ने अगर सीरीज हारी है तो इसके लिए टीम इंडिया के बल्लेबाज दोषी हैं. गेंदबाज नहीं. बल्लेबाजों में सिर्फ कोहली ही हैं जो लगभग हर मैच में चले. खराब ओपनिंग हार के लिए जिम्मेवार है. सिर्फ एक टेस्ट यानी दूसरे टेस्ट में दोनों पारियों में पहले विकेट के लिए अच्छी शुरुआत हुई और भारत ने सिर्फ वही मैच जीता. बाकी मैचों में 50 रन पहुंचते-पहुंचते तीन-तीन विकेट साफ हो गये. ऐसे में बड़ा स्कोर कैसे बन पाता.पहले और चौथे टेस्ट में भारत की हार लगभग एक तरह की रही. दोनों में जीत के लिए भारत को छोटा लक्ष्य मिला था. पहले टेस्ट में 194 रन का और चौथे टेस्ट में 245 रन का. ये दोनों इतना बड़ा लक्ष्य नहीं था जो हासिल नहीं हो सकता था.

दोनों मैच भारत हारा. एक हारा 31 रन से और दूसरा 60 रन से. दोनों मैचों में चौथी पारी में बहुत घटिया शुरुआत हुई. पहले टेस्ट में 194 का पीछा करते हुए अगर 46 रन पर तीन विकेट चले जायें तो जीतना कठिन होगा. वैसे ही चौथे टेस्ट में 245 का लक्ष्य लेकर उतरी भारतीय टीम के तीन खिलाड़ी 22 रन पर ही लौट आये थे.इसमें कोई राय नहीं कि इस सीरीज में धवन, राहुल और पांड्या का बल्लेबाजी में खराब प्रदर्शन रहा. पहले दो टेस्ट में मुरली विजय थे (दो मैच, चार पारी, रन सिर्फ 26) और बहुत ही खराब खेला था. धवन भी कुछ कर नहीं पाये. राहुल तो बुरी तरह निराश किया. आठ पारियों में उनके स्कोर रहे – 4, 13, 8, 10, 23, 36, 19, 0. एक-दो में नहीं, चार-चार टेस्ट यानी आठ पारियों में राहुल को मौका मिला, लेकिन खेल में सुधार नहीं आया.

पांड्या की तुलना किसी ने कपिल देव से क्या कर दी, माथे पर चढ़ गये. तीसरे टेस्ट में 52 रन की एक पारी को छोड़ कर किसी भी मैच में 30 रन भी नहीं बना पाया. आप रन बनायेंगे नहीं, विकेट नहीं लेंगे तो काहे का बेहतरीन ऑलराउंडर. पुजारा ने दो बेहतरीन पारी खेली और अपनी इज्जत बचा ली. एक शतक लगाया. रहाणे से बड़ी उम्मीद थी लेकिन सिर्फ एक थोड़ी अच्छी पारी (51 रन) खेली. बाकी में उनका भी वही हाल रहा जो हाल पांड्या का रहा.

हां, सभी मैच में बल्लेबाजी का पूरा भार अपने कंधे उठा कर रखा है कोहली ने. दो-दो शतक लगाया (तीसरा भी होता अगर तीन रन से चूक नहीं गये होते), लेकिन एक खिलाड़ी से मैच नहीं जीता जा सकता. भारत की हार का दूसरा बड़ा कारण है इंग्लैंड के शीर्ष खिलाड़ियों को पैवेलियन लौटाने के बाद नीचे के खिलाड़ियों को आउट नहीं कर पाना. जो पहला टेस्ट भारत 31 रन से हारा, उसमें इंग्लैंड के सात विकेट तो 87 रन पर ही गिर गये थे लेकिन उसने 180 रन बना दिये.दूसरे टेस्ट में भारत भले ही बुरी तरह हार गया लेकिन यह मैच भारत जीत सकता था. इंग्लैंड के पांच विकेट 131 रन पर चटका देने के बाद अगले दो विकेट ने स्‍कोर को सात विकेट पर 396 तक पहुंचा दिया था. चौथे टेस्ट में भी इंग्लैंड 86 रन पर छह विकेट खो चुका था लेकिन मोइन अली और करन ने स्‍कोर को 246 तक पहुंचा दिया. दूसरी पारी में भी इंग्लैंड 122 पर पांच विकेट गवां बैठा था लेकिन बटलर और करन ने 271 तक स्‍कोर को पहुंचा दिया. अगर भारत इंग्लैंड के पुछल्ले खिलाड़ियों को नियंत्रित कर लिया होता तो भारत इस सीरिज में 4-0 से आगे होता. सीरीज हमारी होती और भारतीय खिलाड़ी इतिहास रच कर लौटते.

रहा-सहा कसर पूरा किया विकेटकीपर ने. धौनी के टेस्ट से संन्यास लेने के बाद बहुत प्रयोग हुए. इस बार दिनेश कार्तिक गये. इंग्लैंड के विकेटकीपर रन बना रहे हैं और हमारे विकेटकीपर मुंह ताकते हैं. दो मैच में कार्तिक का स्‍कोर था- 0, 20, 1, 0 यानी चार पारियों में 21 रन. ऐसा खेलेंगे तो कप्तान निकालेगा ही. कार्तिक की जगह पंत को लाया गया. पंत ने घरेलु क्रिकेट में काफी रन बनाये हैं. हालांकि वे अनुभवहीन हैं, इसलिए बहुत दोष नहीं दिया जात सकता.

लेकिन बाद के दो टेस्ट में पंत को जब मौका मिला तो उन्‍होंने भी निराश किया. स्‍कोर रहा 24, 1, 0, 18 यानी चार पारियों में सिर्फ 43 रन. विकेट के पीछे भले ही चार-पांच कैच पकड़ लें लेकिन विकेटकीपर को रन बनाना ही पड़ेगा. अब भारत के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. इसलिए जम कर प्रयोग करे.

पांड्या, राहुल जैसे खिलाड़ी को बाहर करे. मौका थे नये खिलाड़ियों को. इंग्लैंड अपने विकेट पर चौथे टेस्ट में दो स्पिनर (मोइन) के साथ उतरा जबकि भारत सिर्फ अश्विन के साथ. इसी मोइन ने मैच में नौ विकेट लेकर और अच्छी बल्लेबाजी कर भारत का सारा खेल बिगाड़ दिया. इसलिए सवाल तो उठेंगे ही.सवाल उठेंगे कप्तानी पर भी, खिलाड़ियों के चयन पर भी. क्‍यों पांड्या को इतना मौका पर मौका दिया गया. एक टेस्ट बचा है. जीतेंगे तो कुछ इज्जत बचेगी, वरना 4-1 से हार कर टीम लौटेगी ही.

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