जानें, हर जीत के बाद स्टंप क्यों उखाड़ते हैं धौनी

इंसान की उम्र का बढ़ना और उसका कद बढ़ना-दोनों अलग-अलग बातें हैं. इंसान की उम्र संख्या में मापी जाती है, लेकिन उसका कद अनुभवों पर आधारित होता है. जिंदगी में अवस्था के स्तर पर हर कोई एक इंसान के तौर बड़ा होता और समझने लगता है कि जिंदगी के पिछले दशकों में उसने जो कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2014 9:21 AM

इंसान की उम्र का बढ़ना और उसका कद बढ़ना-दोनों अलग-अलग बातें हैं. इंसान की उम्र संख्या में मापी जाती है, लेकिन उसका कद अनुभवों पर आधारित होता है. जिंदगी में अवस्था के स्तर पर हर कोई एक इंसान के तौर बड़ा होता और समझने लगता है कि जिंदगी के पिछले दशकों में उसने जो कुछ भी किया, दुनिया उससे कहीं और बड़ी है. और ऐसा तब महसूस होता है, जब उसका दिमाग शारीरिक उम्र के बंधनों को तोड़, ज्ञान के गहरे और सुंदर समुद्र में गोते लगाता है.

महेंद्र सिंह धौनी के लिए इस चरण की शुरुआत सितंबर, 2007 में हुई, जब उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम की कमान सौंपी गयी थी. सात साल पहले शुरू हुआ यह सफर अभी जारी है. बचपन से ही कुशाग्र माही परिस्थितियों को भांपने में माहिर थे और जानकारियों को जितनी तेजी से इकट्ठा करते थे, उतनी ही तेजी से उसके बीच सही और गलत का अंतर भी कर लेते थे. पिछले सात वर्षों से प्रकृति से मिले इस उपहार से धौनी धीरज, दूरदर्शिता और विलक्षणता के ऊंचे स्तर को छू रहे हैं, जो उनके कम उम्र होने को भी झुठला रहा है. 33वें जन्मदिन पर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में अब तक के अपने सफर को याद किया और हमें उनकी विलक्षणता के भीतर झांकने का मौका दिया जिसने उन्हें एक आसाधारण सेनापति के रूप में स्थापित किया है. प्रस्तुत है भारतीय टीम के कप्तान का बीसीसीआइ डॉट टीवी द्वारा लिया गया विशेष साक्षात्कार:

* भारतीय टीम की कमान संभालते हुए आपको सात साल हो गये और आपने वह सब कुछ देखा, जो देखा जा सकता था. कैसा रहा यह सफर?

पूरे सफर को महज पांच मिनट में बता पाना मुश्किल है, लेकिन निश्चित रूप से यह बेहद शानदार रहा. आप कप्तान बनते हैं तो यह पता नहीं होता कि आप यहां कब तक रह पायेंगे और मुझे तो सात साल हो गये हैं. युवा कप्तान के रूप में टीम की कमान मिली थी और अब संक्रमण के दौर से गुजर रही जोश से भरी टीम का नेतृत्व कर रहा हूं-कुल मिला कर बहुत अच्छा अनुभव रहा है. इस दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा है- न केवल क्रिकेट, बल्कि जिंदगी के भी बारे में.

एक टीम के रूप में हम विभिन्न स्थानों का दौरा करते हैं, बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो कभी हमें बुरे अनुभवों से भी दो-चार होना पड़ता है. क्रिकेट आपको जिंदगी में बहुत कुछ सिखाता है, खासकर बुरे वक्त में. जब आप मुश्किलों में होते हैं, तो यह चरित्र को मजबूत करता है कि लोगों से कैसा बरताव करना है और टीम के साथियों की मदद कैसे करनी है? जो कुछ भी दरकिनार किया जा सकता है, उसे दरकिनार करते हुए यह सुनिश्चित करना होता है कि टीम के साथी दबाव महसूस न करें. एक लीडर के तौर पर टीम को नकारात्मकता से बचाने की जिम्मेवारी होती है. पिछले सात वर्षों में यही मेरी जिंदगी के लिए बड़ी सीख रही है.

* आपने अपने कैरियर में कुछ बड़े दिग्गजों के नेतृत्व में खेला. उन लोगों से आपने क्या हासिल किया और अब कप्तान के रूप में उन सीखों को कितना व्यवहार में लाते हैं?

जिस प्रकार से मैं क्रिकेट खेलता हूं, मेरा अवचेतन दिमाग, चेतन दिमाग की तुलना में ज्यादा काम करता है. और मेरे लिए अपने कप्तान से सचेत होकर सीखने जैसी कोई बात नहीं थी, लेकिन अवचेतन अवस्था में कुछ विशिष्ट लोगों या टीम के किसी अन्य सदस्य की कुछ बातों पर गौर करता था.

जब मैं भारतीय टीम का हिस्सा बना, तो सौभाग्य से अच्छे सीनियर खिलाडि़यों के साथ खेलने का मौका मिला और उनसे सीखा भी. उन लोगों से जो कुछ भी सीखा उसे कप्तानी के दायरे तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता, वह उससे भी कहीं ज्यादा अधिक है. कैसे विनम्र बना जाये, सफलता मिलने पर बरताव कैसा हो और मुश्किल दौर में रास्ते कैसे निकाले जायें, जैसी तमाम बातें सीनियरों से ही सीखने को मिली. एक क्रिकेटर के रूप में कप्तानी मेरे जिंदगी का छोटा हिस्सा है, लेकिन एक इंसान के रूप में उन लोगों का प्रभाव बहुत बड़ा है.

* आपके पास एक अलग प्रकार का अनुभव है. पहले तो आप उनके नेतृत्व में खेले और बाद में उनके कप्तान बने. क्या शुरू से ही सबकुछ सामान्य रहा या फिर आपको नयी स्थिति में खुद को ढालना पड़ा?

मैंने कप्तानी को जवाबदेही के रूप में लिया. टीम में मुझे जो भी भूमिका दी गयी, उसे बखूबी निभाने का प्रयास किया. उनकी मौजूदगी ने मेरे रास्ते को आसान बनाया. क्योंकि आपको सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण या दादा (सौरव गांगुली) को यह बताने की जरूरत नहीं थी कि क्या होना चाहिए या क्या करना चाहिए. कैरियर के अंतिम समय में उन लोगों ने मुझे एक कप्तान के रूप में काफी मदद की.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आनेवाले नये खिलाडि़यों को भी उनसे सीखने का मौका मिला. उन्होंने भी यह समझा कि उन्हें अपनी व्यक्तिगत पहचान के स्तर को बरकरार रखना है क्योंकि वे उसी की वजह से टीम में थे. व्यक्तिगत चरित्र ही टीम के चरित्र को निर्धारित करती है.

* सीनियर खिलाडि़यों की मौजूदगी में आपको कप्तान के रूप में निर्णय लेने में काफी सहूलियतें थीं, लेकिन अब आप युवा टीम का नेतृत्व कर रहे हैं और निर्णय के लिए खुद पर निर्भर होना पड़ता है. आपके लिए यह बदलाव कैसा रहा?

हां, सीनियर खिलाडि़यों की मौजूदगी टीम के लिए अहम थी. अनुभवों के कारण उन लोगों के पास मुझे सलाह देने के लिए कई सुझाव थे. लेकिन, यदि मैं किसी बात पर सहमत नहीं हो पाता था, तो उन्हें साफ कह देता था. इसे लेकर वह लोग सहमत हो जाते थे और 10-15 मिनट बाद फिर से नयी सलाह देते थे और विकल्प सुझाते थे और निर्णय लेने के लिए मुझ पर छोड़ देते थे. वास्तव में उन लोगों ने मुझे बिना किसी भय के अपने काम के प्रति ईमानदार और जवाबदेह बनने में काफी मदद की. एक युवा कप्तान के रूप में ऐसी दशा में आप दबाव महसूस कर सकते हैं, लेकिन मैं भाग्यशाली रहा कि सीनियरों की वजह से ही मैं कप्तानी की अपनी स्टाइल को विकसित कर सका.

अब परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं. भले ही मैं युवा टीम का नेतृत्व कर रहा हूं, लेकिन बॉलरों पर ऐसी योजना थोपना पसंद नहीं करता हूं जिसे वह लागू न कर सकें. निश्चित तौर मैं चाहता हूं कि निर्धारित लेंथ पर बॉलिंग करें, लेकिन उस लेंथ पर बॉलिंग कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिए बॉलरों को अपने तरीके से योजना बनाने, फील्ड सजाने और अपने तरीके से सोचने की आजादी देता हूं. अगर मैं अपनी योजना बताता हूं, तो वे उसी प्रकार से बॉलिंग भी करेंगे, लेकिन इसके लिए वह सोचना जरूरी नहीं समझेंगे. इसलिए उन्हें प्लान को लागू करने की छूट देता हूं, अगर फेल होते हैं तो ही वैकल्पिक सुझाव देता हूं. इससे उनका खेल के प्रति ज्ञान भी बढ़ता है.

* अभी आप कप्तानी के जिस दौर से गुजर रहे हैं, ठीक ऐसा ही रिकी पॉन्टिंग ने अनुभव किया था- उन्होंने भी दिग्गजों की टीम का नेतृत्व किया और फिर बाद में संक्रमण के दौर से गुजर रही टीम की अगुवाई करनी पड़ी. क्या आप ऐसा महसूस करते हैं?

हमारी संस्कृति उनसे अलग है, जिससे कप्तान के रूप से चुनौतियां भी बिल्कुल दूसरे प्रकार की हैं. भारतीय क्रिकेट का हिस्सा होने या भारतीय क्रिकेट को मैनेज करते हुए मैं महसूस करता हूं कि यहां क्रिकेट सौ प्रतिशत प्रोफेशनल और व्यावहारिक नहीं है. अन्य देशों की तुलना में हम भारतीय लोग ज्यादा भावुक होते हैं. यह मेरे लिए अच्छा है कि किसी व्यक्ति विशेष के पास जाकर और सख्त लहजे में यह कहने की जरूरत नहीं होती कि हमें क्या करना है?

* टीम का नेतृत्व करते हुए कप्तान के ऊपर कोच का कितना प्रभाव रहता है?

मैं मानता हूं कि कप्तान और कोच एक-दूसरे के काम करने और सोचने के तरीकों को प्रभावित करते हैं. लेकिन मैं ऐसा महसूस करता हूं कि कोच और कप्तान का एक-मत होना चाहिए. मेरा मतलब यह नहीं है कि दोनों के मतों में अंतर नहीं हो सकता-दोनों के विचार व प्लानिंग अलग-अलग हो सकते हैं, किसी खिलाड़ी को लेकर दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं. अगर ऐसा है तो बैठ कर आपसी बातचीत से इसे सुलझाया जा सकता है. अमूमन कप्तान कुछ बातों को लेकर स्पष्ट नहीं होता है, ऐसे में उसे कोच के अनुभवों का सहारा लेना पड़ता है. इसी प्रकार कोच को भी कप्तान के आत्मविश्वास पर भरोसा करना होता है. दिन के अंत में टीम कोच और कप्तान के अंतर को नहीं समझ पाती. कमरे से केवल एक योजना बाहर आनी चाहिए, जो सबको दिखे.

* कप्तानी को दो बड़े दृष्टिकोण से देखा जा सकता है- नीतिगत और व्यक्ति-प्रबंधन. इसमें आपके लिए मुश्किल कौन सा है?

व्यक्ति-प्रबंधन थोड़ा मुश्किल काम है, क्योंकि आपको विभिन्न मनोभावों वाले लोगों से निपटना होता है. अमूमन देखा जाता है कि कोई दूसरा यदि क्षमता पर सवाल उठाये, इससे पहले व्यक्ति को ही अपनी काबिलियत पर शक होने लगता है. ऐसी दशा में आपको खिलाड़ी से बात करनी होती है, सही समय का इंतजार करना होता है और शब्दों के चयन पर तो विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है. जब मानसिक रूप से परेशान होते हैं, तो आप सही बातों को भी नकारात्मक तरीके से लेने लगते हैं. ऐसे में कम्युनिकेशन की प्रक्रिया जटिल हो जाती है. इन परिस्थितियों से निपटने के लिए आपको उस व्यक्ति को बारीकी से जानना-समझना होता है. ड्रेसिंग रूम में अन्य खिलाडि़यों के साथ उसके बरताव से आप उसके व्यवहार को परख सकते हैं. यह सब आप अपने अवचेतन निष्कर्षों के माध्यम से ही भांप पायेंगे. ऐसी जानकारियां डाटाबेस में इकट्ठा होती रहती हैं और जब जरूरत पड़ती है तो उनका इस्तेमाल किया जाता है.

* आपने बताया कि किसी व्यक्ति विशेष से अच्छा कराने के लिए व्यक्तिगत तौर पर बात करनी होती है. हर खिलाड़ी के बारे में जानते हुए इस प्रक्रिया में किस प्रकार की कठिनाइयां आती हैं?

यहां, टीम के साथियों के बारे में जानना अहम है, इसलिए नहीं कि आप उनसे अच्छा प्रदर्शन करवाना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि आपको उनसे एक इंसान के रूप में रू-ब-रू होना है. हम अपने परिवारों से ज्यादा एक-दूसरे साथ समय को व्यतीत करते हैं. हमें इंसान के रूप में एक-दूसरे को जानना- समझना ज्यादा महत्वपूर्ण है. एक बार आप घुल-मिल गये तो आप आसानी से भांप लेंगे कि अगर उसने पारियों में रन नहीं बना पाये या विकेट नहीं ले पाया, तो वह कैसा महसूस कर रहा है.

* क्या अलग-अलग शख्सियत के लोगों को संवाद से जोड़ना ट्रायल एंड एरर प्रणाली है?

हां, लगभग ऐसा ही है. एक बार के लिए अगर आपने के लिए किसी के साथ संवाद के माध्यम से तालमेल बिठा लिया है, तो ऐसी ही शख्सियत वाले दूसरे लोगों पर भी इसे फॉर्मूले को सेट करेंगे. संभव है कि सफलता न मिले. इसके लिए आपको इस व्यक्ति से बेहतर कराने के लिए नये तरीके अपनाने होंगे. शुरुआत में मैं संवाद स्थापित करने के तीन रास्ते चुनने का प्रयास करता हूं, लेकिन जब मैं ज्यादा लोगों से मुखातिब होता हूं, तो उसके बारे में ज्यादा जानकारियां मिलती हैं. हो सकता है कि मैं उसी बात को समझाने के लिए 15 नये रास्तों को अख्तियार करूं. एक मानव के रूप में हमें ज्यादा खुला होना चाहिए, लेकिन कुछ बातों को लेकर हम ज्यादा सतर्क होते हैं. इसलिए यह ट्रायल एंड एरर जैसी बात हो सकती है.

* माना जाता है कि आप अपनी स्वाभाविक प्रकृति से हिसाब से निर्णय लेते हैं. प्लानिंग और अपनी स्वाभाविक प्रकृति के बीच संतुलन बनाने के लिए आपने क्या काम किया है?

मैं ज्यादा प्लान तैयार करने के बजाय अपने आत्मबल पर ज्यादा विश्वास करता हूं. लेकिन ज्यादातर लोगों को खुद पर विश्वास नहीं होता. इसके लिए आपको अनुभव की जरूरत होती है. मान लें, आप बाइक के बारे में कुछ नहीं जानते हैं. अगर मैं अपनी एक बाइक का इंजन खोल कर आपके सामने रख दूं और आप से पूछूं कि आत्मविश्वास के साथ बताइये कि यह इंजन किस मॉडल का है? आप कुछ नहीं बता पायेंगे. मेरा आत्मविश्वास अपनी जिंदगी में जितना क्रिकेट खेला हूं या जितनी चुनौतियों का सामना किया हूं, उसकी वजह से है. बिल्कुल ऐसा नहीं है कि एक क्षण के लिए बिना लॉजिक के आप महसूस करें. मेरा मानना है कि यह पिछले अनुभवों और ज्ञान से ही आता है.

* क्या इन परिस्थितियों में एक्टिव से रिएक्टिव होने जैसी बात तो नहीं है?

हमारे खेल में बल्लेबाज का प्रदर्शन कई कारकों पर निर्भर करता है-खासकर मौसम, विकेट, बॉल की स्थिति, बॉलर कैसा है, यहां तक कि खुद फार्म का काफी महत्वपूर्ण होता है. आंकड़ों और वीडियो फुटेज के आधार पर आप एक हद तक प्लानिंग बना सकते हैं, मैं मानता हूं कि बॉलरों की मीटिंग में इन बातों पर ज्यादा काम किया जा सकता है. हालांकि इन सब चीजों के खुद को दूर रखता हूं और जब मैदान पर होता हूं तो कोई पूर्वाग्रह नहीं रखता हूं. मैं गौर करता हूं कि उस दिन बैट्समैन बैटिंग कैसे कर रहा है, बॉलर कैसी बॉलिंग कर रहा है और इसके पीछे कारण क्या हो सकता है. इन्हीं जानकारियों के आधार पर अपनी प्रकृति हिसाब से योजनाओं को तैयार करता हूं.

* माना जाता है कि आप ऐसे कप्तान हैं, जो खिलाडि़यों का पक्ष लेते हैं. सपोर्ट करना कितना मुश्किल होता है, जब खिलाड़ी संतोषजनक प्रदर्शन नहीं कर रहे होते हैं?

एक क्षण के लिए मान लीजिए जो खिलाड़ी छठें नंबर पर बैटिंग कर रहा है, क्या हो सकता है? जबकि वह अच्छी बैटिंग कर सकता है. मुश्किल से उसे छह या सात ओवर खेलने को मिलते हैं, क्योंकि शुरू के पांच बल्लेबाज अच्छी बैटिंग कर चुके होते हैं, ऐसे में वह 30 रन मुश्किल से बना पाता है. कभी ऐसा होता है कि 40 ओवर उसके सामने होते है, संयोग से वह आउट हो जाता है. लोग कहते हैं कि मौका मिला और उसने गंवा दिया. लोगों का ध्यान इस पर नहीं जाता कि जब वह मैदान में आया तो स्कोर 20 रन पर पांच विकेट था. हो सकता है कि पिच अनुकूल न हो, बॉलिंग अटैक घातक हो. यह नहीं भूलना चाहिए कि शुरुआती पांच विकेट गिरने का दबाव बहुत ज्यादा होता है, उसे बिल्कुल अलग हालात में बैटिंग करना होता है.

अत: यह कहने के बजाय उसने मौके का फायदा नहीं उठाया, आपको पहले सोचना चाहिए. एक कप्तान के रूप में आपको इन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और उस खिलाड़ी के पक्ष में खड़ा होना पड़ता है. आपको यह समझना होता है कि हमेशा सब कुछ प्लान के मुताबिक ही घटित नहीं होता है, खासकर अनिश्चितता वाले क्रिकेट जैसे खेलों में. जब आप ऐसे दौर में होते है तो बॉलिंग अटैक और धारदार हो जाता है और बेहतरीन कैच भी पकड़े जाते हैं. यह मैं भी मानता हूं कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दबाव में खेलने का उसे और मौका मिले और घरेलू क्रिकेट के बाद उसके रास्ते खुले हों, अगर वह वास्तव में अच्छा खिलाड़ी है, तो वह अच्छा ही करेगा.

* जब वह अच्छे प्रदर्शन के साथ वापसी करता है, तो क्या आपको विशेष खुशी और संतुष्टि होती है?

उससे कहीं ज्यादा, उस खिलाड़ी के लिए खुशी होती है. इससे केवल आपका फैसला ही न्यायसंगत साबित नहीं होता है. जिस प्रकार आप उसकी मदद करते हैं, चुनौतियों से निपटने और कठिन परिश्रम करने की उसे प्रेरणा मिलती है.

* आपने खुद को उन पांच दिग्गज खिलाडि़यों के मार्गदर्शन में साबित किया. उन्होंने आपके अंदर एक अच्छे लीडर की झलक देखी. तेंदुलकर ने ही कप्तानी के लिए आपके नाम को आगे बढ़ाया. क्या कभी महसूस हुआ कि ये लोग आपको अगले भारतीय कप्तान के रूप में देखना चाहते हैं?

नहीं, ऐसा कुछ नहीं रहा. मैं सोचता हूं कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हमारा आपसी मेल-जोल था. मान लीजिए, जब सचिन बॉलिंग के लिए आते थे, वह कई तरीके से बॉलिंग कर लेते थे- पूछते, कौन सी बॉल अच्छी हो सकती हैं-सीम-अप, लेग स्पिन, ऑफ स्पिन. यह विकेट के मिजाज और बल्लेबाज पर निर्भर करता है. शायद साफ कहने के कारण ही अपनी समझ के अनुसार अपनी राय देता था. विकेट कीपर होने के कारण मैं स्लिप एरिया में अपने सीनियरों के साथ रणनीतिक मुद्दों पर बातें भी करता था. शायद इसी बातचीत के कारण उन्हें विश्वास हुआ कि मैं टीम का नेतृत्व कर सकता हूं.

* कितना आश्चर्यजनक था जब आपका नाम कप्तान के रूप में सामने आया?

हां ऐसा ही था, क्योंकि मैंने कभी कप्तानी के बारे में सोचा भी नहीं था. मेरे लिए कप्तान बनने के बजाय टीम का हिस्सा बनना ही महत्वपूर्ण था. कप्तानी से एक और जिम्मेवारी बढ़ा दी गयी, ऐसा शायद इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने सोचा कि मैं इसके लिए फिट हूं.

* आइसीसी टेस्ट माक में कामयाबी, आइसीसी चैंपियनशिप ट्रॉफी, आइसीसी विश्वकप 2011, आइसीसी वर्ल्ड टी-20 में से आपके लिए एक कप्तान व क्रिकेटर के रूप में सबसे महत्वपूर्ण क्या है और कैसे है?

यह बिल्कुल एक मां से पूछने जैसा है कि आपका सबसे अच्छा बच्चा कौन सा है. सब अपने लिहाज से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि-आइसीसी टेस्ट माक: खास था क्योंकि यह लगातार तीन साल की मेहनत का नतीजा होता था. यह एक टूर्नामेंट खेलने और जीतने जैसा नहीं था. एक साथ काफी कुछ करना होता था, आगे बढ़ने के लिए खिलाडि़यों, चयनकर्ताओं और सहयोगी स्टाफ की भूमिका महत्वपूर्ण होती था. इसमें केवल अच्छा खेलना ही जरूरी नहीं था, बल्कि मैदान और मैदान के बाहर खुद को फिट रखना होता था. मुश्किलों में सीनियर खिलाडि़यों की मौजूदगी अहम होती था, जिसके लिए वह अपनी फिटनेस पर काफी मेहनत करते थे.

विश्वकप 2011: यह अलग प्रकार की चुनौती थी. जिन 15 खिलाडि़यों को टीम में चुना गया था, उन्हें उस अवधि में न केवल अच्छी क्रिकेट खेलनी थी, बल्कि मानसिक स्तर को संतुलित करना था. उन्हें दबाव में धैर्यपूर्वक अच्छा प्रदर्शन करना था और कठिनाइयों से निपटना था. जिस हिसाब से हम क्रिकेट खेल रहे हैं, फिटनेस महत्वपूर्ण पहलू होता है, जिस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.

चैंपियंस ट्रॉफी 2013: एक टीम के रूप में हम मुश्किलों से गुजर रहे थे और इंगलिश कंडीशन में जीत हासिल करना बेहद मुश्किल था. इन सबको दरकिनार करते हुए युवा टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया.

2007 वर्ल्ड टी-20: हां, उसके बारे में क्या कह सकता हूं? सब नये सिरे से शुरू हो रहा था. युवा टीम के लिए मैं कप्तान के रूप में बिल्कुल नया था. मैं नहीं सोचता हूं कि कभी यह कह पाऊंगा कि ह्ययह मेरे दिल के बेहद करीब हैह्ण. मेरे लिए सब एक जैसे ही हैं.

* हर जीत के बाद आपको स्टंप लेने की आदत है, काफी ज्यादा आपने इकट्ठा कर लिया होगा? क्या घर में इनको रखने के लिए कोई कमरा है?

यह मेरा रिटायरमेंट प्लान का हिस्सा है. अच्छी बात है कि मैंने काफी स्टंप इकट्ठा कर लिया है, लेकिन बुरा यह है कि कौन-सा किस मैच का है, यह पता नहीं है? इसलिए रिटायरमेंट के बाद में सभी मैचों की वीडियो देखूंगा, मैच के स्पांसर के लोगो को बारीकी से देख कर पता लगाऊंगा कि कौन-सा स्टंप किस मैच का है. यह क्रिकेट के बाद मेरे लिए समय बिताने का साधन होगा.

Next Article

Exit mobile version