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”क्रिकेटरों पर डोपिंग के सभी नियम लागू कर पाना नाडा के सामने बड़ी चुनौती”

लखनऊ : दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने आखिरकार राष्ट्रीय डोपिंग रोधी संस्था (नाडा) के दायरे में आना मंजूर कर लिया, मगर इसके पूरी तरह से प्रभावी होने को लेकर आशंकाएं भी जाहिर की जा रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में क्रिकेट को धर्म और खिलाड़ियों को […]

लखनऊ : दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने आखिरकार राष्ट्रीय डोपिंग रोधी संस्था (नाडा) के दायरे में आना मंजूर कर लिया, मगर इसके पूरी तरह से प्रभावी होने को लेकर आशंकाएं भी जाहिर की जा रही हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में क्रिकेट को धर्म और खिलाड़ियों को भगवान माना जाता है. ऐसे में क्या नाडा क्रिकेट खिलाड़ियों पर अपने पूरे नियमों को लागू कर पाएगा.

राष्ट्रीय जूनियर हॉकी टीम के पूर्व फिजिकल ट्रेनर और स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर सरनजीत सिंह ने अपने खिलाड़ियों के डोप परीक्षण नाडा से कराने के बीसीसीआई के फैसले के पूरी तरह लागू होने पर संदेह जाहिर करते हुए बताया कि भारत में क्रिकेट को पूजा जाता है और खिलाड़ियों को भगवान की तरह माना जाता है, तो क्या ये ‘भगवान’ उन सारे नियमों को मानने के लिये तैयार होंगे? क्या वे विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) के वर्ष 2004 में बनाये गये ‘ठहरने के स्थान संबंधी नियम’ को पूरी तरह से मानेंगे, जिसके तहत उनको हर एक घंटे पर खुद से जुड़ी सूचनाएं नाडा को देनी पड़ेंगी?

उन्होंने कहा अगर क्रिकेटर इन तमाम चीजों के लिये तैयार होते हैं और नाडा पूरी ईमानदारी से काम करती है तो मेरा मानना है कि पृथ्वी शॉ का मामला महज इत्तेफाक नहीं है. पंजाब रणजी टीम के भी शारीरिक प्रशिक्षक रह चुके सिंह ने कहा कि जहां तक बीसीसीआई की बात है तो उसे नाडा से डोप परीक्षण करवाने पर रजामंदी देने में इतना वक्त क्यों लगा, यह बहुत बड़ा सवाल है.

दूसरी बात यह कि क्या नाडा बीसीसीआई जैसी ताकतवर खेल संस्था के मामले में सभी नियमों को पूरी तरह से लागू कर पायेगी. कई ऐसी ताकतवर खेल संस्थाएं हैं जो वाडा के सभी नियमों को पूरी तरह नहीं मानती हैं, जिनकी वजह से उनके खिलाड़ी बहुत आसानी से डोप परीक्षण में बच जाते हैं.

इस सवाल पर कि क्या नाडा इतनी सक्षम है कि वह हर तरह के ड्रग के सेवन के मामलों को पकड़ सके, सिंह ने कहा ऐसा नहीं है, क्योंकि डोपिंग के मामलों को समय से पकड़ने में नाडा और वाडा अक्सर नाकाम रही हैं. यही वजह है कि वर्ष 2012 के ओलम्पिक खेलों में प्रतिबंधित दवाएं लेने वाले एथलीट अब पकड़े जा रहे हैं.

उन्होंने कहा ”वर्ष 1960 के दशक में जब डोपिंग पर प्रतिबंध लगाया गया था, उस वक्त महज पांच या छह कम्पाउंड हुआ करते थे. इस साल जनवरी में वाडा ने प्रतिबंधित दवाओं की जो सूची जारी की है उसमें करीब 350 कम्पाउंड हैं. उन सभी को पूरी तरह से जांचने का खर्च प्रति खिलाड़ी करीब 500 डॉलर होता है. सवाल यह है कि क्या नाडा हर खिलाड़ी के टेस्ट पर 500 डॉलर खर्च कर सकेगी?

भारतीय खेल प्राधिकरण के सलाहकार रह चुके सिंह ने यह भी कहा कि नाडा के पास ऐसी तकनीक भी पूरी तरह से नहीं है जो हर ड्रग को पकड़ सके. तमाम नयी तकनीक हैं, जिनकी कीमत अरबों रुपये में है, जो नाडा के पास उपलब्ध नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि डोपिंग में पकड़े गये खिलाड़ियों के मुकाबले बहुत बड़ा प्रतिशत ऐसे खिलाड़ियों का है जो ड्रग्स लेने के बावजूद बड़ी आसानी से बच निकले हैं. स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ पीएसएम चंद्रन का भी कहना है कि नाडा को क्रिकेट खिलाड़ियों के डोप टेस्ट को लेकर उच्चस्तरीय पेशेवर रुख अपनाना पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि विराट कोहली, रोहित शर्मा, जसप्रीत बुमराह और शिखर धवन समेत प्रख्यात खिलाड़ियों के नमूने लेने में एजेंसी को काफी सावधानी बरतनी होगी. मालूम हो कि बरसों तक परहेज करने के बाद आखिरकार बीसीसीआई ने शुक्रवार को नाडा के दायरे में आने पर रजामंदी दे दी.

खेल सचिव राधेश्याम जुलानिया ने कहा कि नाडा अब सभी क्रिकेटरों का डोप परीक्षण करेगी. इससे पहले तक बीसीसीआई नाडा के दायरे में आने से यह कहते हुए इनकार करता रहा था कि वह कोई राष्ट्रीय खेल महासंघ नहीं बल्कि स्वायत्त ईकाई है और वह सरकार से धन नहीं लेती है.

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