आर्थिक तंगी से जूझ रहा अंतरराष्‍ट्रीय दिव्यांग क्रिकेटर, पेट पालने के लिए कर रहा यह काम

कुजू : अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में डंका बजाने वाले दिव्यांग ( मूक बधिर) क्रिकेटर रंजीत कुमार (32 वर्ष ) क्रिकेट से अपना नाता तोड़ दिया है. अब वह अनुबंध पर 15 हजार के पगार पर ग्राउंड मैन का काम करने के लिए मजबूर हैं. युवक रंजीत कुमार रामगढ़ जिला के मांडू प्रखंड ओरला पंचायत के ग्राम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2019 8:15 PM

कुजू : अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में डंका बजाने वाले दिव्यांग ( मूक बधिर) क्रिकेटर रंजीत कुमार (32 वर्ष ) क्रिकेट से अपना नाता तोड़ दिया है. अब वह अनुबंध पर 15 हजार के पगार पर ग्राउंड मैन का काम करने के लिए मजबूर हैं.

युवक रंजीत कुमार रामगढ़ जिला के मांडू प्रखंड ओरला पंचायत के ग्राम डटमा का रहने वाले हैं. एक ऐसा भी वक्त था जब क्रिकेट की दुनिया में रंजीत के नाम की खूब चर्चाएं होती थी. उनके द्वारा जीते दर्जनों मैडल और प्रशस्ति पत्र घर में सिर्फ शोभा की वस्‍तु बनकर रह गई हैं. धीरे धीरे रंजीत का समय निकलता चला गया और उन्हें सरकार की ओर से किसी तरह का कोई सहयोग नहीं मिला. जिससे वह थक हार कर क्रिकेट से अपना नाता तोड़ लिया.

अब वह खेल गांव स्थित एकलब्य आर्चरी ग्राउंड में अनुबंध पर 15 हजार की पगार में ग्राउंड मैन की नौकरी कर रहे हैं. साथ ही प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों का देखभाल तथा रख-रखाव व घास काटने का काम कर रहे हैं.

रंजीत का चयन टी-20 में भी हुआ था

दिव्यांग क्रिकेटर रंजीत कुमार का चयन ऑल इंडिया क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ द डीफ में हुआ था. वह झारखंड के एकमात्र खिलाड़ी थे जिसने टीम का नेतृत्व किया था. उन्‍होंने 2014 में 7 मई से लेकर 15 मई तक दुबई में आयोजित टी-20 इंटरनेशनल क्रिकेट में भी हिस्सा लिया.

2015 में पाकिस्तान में आयोजित अंतराष्ट्रीय टी 20 एशिया कप में रंजीत ने भारत की ओर कप्तानी किया था. इसके अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका और आफगानिस्तान के विरूद्ध मैच भी खेला. देश लौटने पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने उन्हें सम्मानित किया था.

* सपना हुआ चकनाचूर

रंजीत भले ही मूक बधिर हैं, लेकिन उनके अंदर काफी प्रतिभाएं छिपी हैं. उन्होंने 10 साल तक झारखंड टीम की कप्तानी भी की. वह शुरू से ही क्रिकेट के क्षेत्र में तेज तर्रार थे. उनका परफॉर्मेंस भी काफी बढ़िया हुआ करता था. क्रिकेट के क्षेत्र में उन्‍होंने दर्जनों मैडल, शील्ड जीता.

आज यह सभी मैडल उनके घर के छज्जे में रखा है. जिसे वह अब बेकार समझने लगा है. उनका सपना था, क्रिकेट के क्षेत्र में वह काफी आगे निकले और अपने क्षेत्र का नाम रोशन करे, लेकिन उनका सपना अब केवल सपना बनकर रह गया है.

* रंजीत मुख्यमंत्री के जनता दरबार में लगा चुके हैं गुहार

दो बच्चों के पिता रंजीत की पत्नी रीमा देवी कहती है कि आर्थिक तंगी के कारण रंजीत खेल छोड़कर परिवार और बच्चों को पालन-पोषण करने के लिए 15 हजार की पगार पर काम कर रहे हैं. इसको लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकाला. अंतत: पेट चलाने के लिए एकलब्य आर्चरी ग्राउंड में अनुबंध पर ग्राउंड मैन की पद नौकरी करनी शुरू कर दी.

* परिवार चलाने में रंजीत की पत्नी कर रही है सहयोग

महंगाई के इस युग में एक मध्यवर्गीय व्यक्ति को परिवार चलाना कितना कठिन कार्य हो सकता है इसे भली-भांति समझा जा सकता है. ऐसी परिस्थिति में रंजीत की पत्नी ने अपने पति की मदद की बिड़ा उठायी और आज ऐसे मूक बधिर युवक जो बोल नहीं सकते उनकी भाषा को समझने और समझाने का कार्य कर रही हैं. रंजीत की पत्नी झारखंड सरकार की बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग मंत्री डॉ लुईस मरांडी के हाथों सम्मानित भी हुई हैं.

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