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क्रिकेट जगत में फिर दस्तक देगा ‘सायमंड्स’ का बल्ला

प्रयागराज : अस्सी के दशक में क्रिकेट की दुनिया में सायमंड्स के बल्ले की धूम थी. दुनिया के दिग्गज अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने इन बल्लों से खेलते हुए मैदान के हर तरफ अपने पसंदीदा शॉट्स लगाये, लेकिन प्रचार पर मोटी रकम खर्च न कर पाने के कारण यह कंपनी पिछड़ने लगी. इसके नामलेवा कम होते गये. […]

प्रयागराज : अस्सी के दशक में क्रिकेट की दुनिया में सायमंड्स के बल्ले की धूम थी. दुनिया के दिग्गज अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने इन बल्लों से खेलते हुए मैदान के हर तरफ अपने पसंदीदा शॉट्स लगाये, लेकिन प्रचार पर मोटी रकम खर्च न कर पाने के कारण यह कंपनी पिछड़ने लगी. इसके नामलेवा कम होते गये. कंपनी प्रबंधन ने अब फिर से सायमंड्स का बल्ला बाजार में उतारने की तैयारी की है.

सायमंड्स एंड कंपनी के निदेशक अमित बनर्जी ने कहा, ‘सायमंड्स के बल्ले को ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के खिलाड़ी ग्राहम यैलप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान दिलायी थी. इसके बाद एलन बॉर्डर भी सायमंड्स के बल्ले से खेले. 1987-88 तक सायमंड्स का बल्ला शीर्ष पर था.’

उन्होंने बताया कि वेस्ट इंडीज के क्लाइव लॉयड की कप्तानी के दौर में लैरी गोम्स, रिची रिचर्डसन, गॉर्डन ग्रीनिज जैसे कुछ खिलाड़ी सायमंड्स के बल्ले से खेलते थे. इसी तरह से पूरी श्रीलंका की टीम के पास सायमंड्स के बल्ले थे. पाकिस्तान की टीम में इमरान खान, रमीज राजा जैसे खिलाड़ी सायमंड्स के बल्ले से खेलते थे.

बनर्जी ने बताया कि सायमंड्स की धाक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस दौर में कंपनी 35,000-40,000 क्लेफ्ट आयात करती थी, जबकि दूसरी कंपनियां 400-500 क्लेफ्ट हमसे लेती थीं, क्योंकि 400-500 क्लेफ्ट आयात करने के लिए लाइसेंस नहीं मिलता था. उन्होंने बताया कि टायर बनाने वाली कंपनी एमआरएफ ने विज्ञापन के लिए स्टिकर लगाकर बल्ला देना शुरू किया. हम पैसे के मामले में एमआरएफ और पावर से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके. यह कंपनी के पिछड़ने की मुख्य वजहों में से एक है.

उन्होंने बताया कि जहां एक खिलाड़ी को हम 2 लाख से 4 लाख रुपये सालाना देते थे, वहीं दूसरी कंपनियां उन्हें 15-20 लाख रुपये देने लगीं. उन्होंने कहा कि सायमंड्स विशुद्ध रूप से स्पोर्ट्स कंपनी थी और विज्ञापन पर उसका खर्च बहुत सीमित था, जबकि दूसरी कंपनियां स्पोर्ट्स के विज्ञापन पर बहुत अधिक खर्च करती थीं.

बनर्जी ने बताया, ‘कंपनी फिलहाल कुछ पूर्व क्रिकेटर से बातचीत कर रही है, जिससे सायमंड्स ब्रांड के तहत खेल के सामान फिर से उतारे जायें. हम बैट बनाना शुरू करेंगे. कुछ दक्ष कर्मचारी यहां से हटने के बाद स्थानीय स्तर पर बढ़ई का काम करने लगे थे. वो अभी हैं और उनमें से एक-दो लोग वापस आ गये हैं.’

उन्होंने बताया कि सायमंड्स इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज, ऑस्ट्रेलिया और कुछ हद तक पाकिस्तान को बल्लों का निर्यात करती थी. सायमंड्स उम्दा किस्म के हॉकी स्टिक्स भी बनाया करती थी और 80 के दशक में पूरी ऑस्ट्रेलियाई टीम, जर्मन टीम और अर्जेंटीना की टीम सायमंड्स की हॉकी स्टिक से हॉकी खेला करती थी.

बनर्जी ने बताया कि सायमंड्स की स्थापना वर्ष 1962 में इलाहाबाद में की गयी थी. इससे पूर्व 1958 से यह कंपनी लॉन टेनिस के रैकेट एक दूसरी कंपनी के साथ मिलकर बना रही थी. 1962 से इसने बैट और हॉकी स्टिक बनाना शुरू कर दिया. कंपनी के पास अब भी उम्दा टेक्नोलॉजी मौजूद है, जिसके बल पर उसे फिर से अपना बल्ला चलने की उम्मीद है. उन्होंने दावा किया कि सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ, कृष्णामाचारी श्रीकांत, रवि शास्त्री, कपिल देव, स्टीव वॉ जैसे खिलाड़ी सायमंड्स के बल्ले के मुरीद रहे हैं.

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