सचिन ने किया खुलासा, कहा, कप्तान के रूप में मैं टूट चुका था
नयी दिल्ली : सचिन तेंदुलकर को भले ही क्रिकेट का भगवान माना जाता हो लेकिन उनके करियर में भी एक ऐसा दौर आया था जब यह महान खिलाड़ी अपनी कप्तानी में टीम की असफलता से इतना डर गया था और टूट चुका था कि वह पूरी तरह से खेल से दूर होना चाहता था. अंतरराष्ट्रीय […]
नयी दिल्ली : सचिन तेंदुलकर को भले ही क्रिकेट का भगवान माना जाता हो लेकिन उनके करियर में भी एक ऐसा दौर आया था जब यह महान खिलाड़ी अपनी कप्तानी में टीम की असफलता से इतना डर गया था और टूट चुका था कि वह पूरी तरह से खेल से दूर होना चाहता था.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ढेरों रिकार्ड बनाने के बाद पिछले साल खेल को अलविदा कहने वाले पूर्व बल्लेबाज तेंदुलकर ने दो दशक से अधिक के अपने करियर के अहम लम्हों को उजागर किया है जिसमें उनका बुरा दौर भी शामिल है. दुनियाभर में छह नवंबर तेंदुलकर की आत्मकथा का विमोचन होना है जिसमें इस महान बल्लेबाज ने कप्तान के रूपमें अपने कार्यकाल के दौरान की हताशा का भी जिक्र किया है.
तेंदुलकर की किताब के एक्सक्लूसिव मुख्य अंश पीटीआई के पास उपलब्ध हैं जिनके अनुसार, मुझे हार से नफरत है और टीम के कप्तान के रुप में मैं लगातार खराब प्रदर्शन के लिए खुद को जिम्मेदार मानता था. इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि मुझे नहीं पता था कि इससे कैसे उबरा जाए क्योंकि मैं पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा था.
उन्होंने कहा, मैंने अंजलि (तेंदुलकर की पत्नी) से कहा कि मुझे डर है कि मैं लगातार हार से उबरने के लिए शायद कुछ नहीं कर सकता. लगातार करीबी मैच हारने से मैं काफी डर गया था. मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया और मुझे भरोसा नहीं था कि क्या मैं 0.1 प्रतिश्त भी और दे सकता हूं.
जाने माने खेल पत्रकार और इतिहासविद बोरिया मजूमदार के सह लेखन वाली इस आत्मकथा में तेंदुलकर ने खुलासा किया, इससे मुझे काफी पीड़ा पहुंच रही थी और इन हार से निपटने में मुझे लंबा समय लगा. मैं पूरी तरह से खेल से दूर होने पर विचार करने लगा था क्योंकि ऐसा लग रहा था कि कुछ भी मेरे पक्ष में नहीं हो रहा था.
तेंदुलकर का यह बुरा दौर 1997 के समय का है जब भारतीय टीम वेस्टइंडीज का दौरा कर रही थी. पहले दो टेस्ट ड्रा कराने के बाद भारतीय टीम तीसरे में जीत की ओर बढ़ रही थी और उसे सिर्फ 120 रन का लक्ष्य हासिल करना था. लेकिन भारतीय टीम सिर्फ 81 रन पर ढेर हो गई जिसमें सिर्फ वीवीएस लक्ष्मण ही दोहरे अंक में पहुंच पाए.
तेंदुलकर ने कहा, सोमवार, 31 मार्च 1997 भारतीय क्रिकेट के इतिहास का काला दिन था और निश्चित तौर पर मेरे कप्तानी करियर का सबसे खराब दिन था. इससे एक दिन पहले रात को सेंट लारेंस गैप में एक रेस्टोरेंट में डिनर के दौरान मुझे याद है कि मैंने वेटर से मजाक किया कि कौन वेस्टइंडीज की जीत की भविष्यवाणी कर रहा है. उसे विश्वास था कि अगली सुबह एंब्रोस भारत को ध्वस्त कर देगा.
उन्होंने कहा, इस मैच की पहली पारी में फ्रेंकलिन रोज ने मुझे बाउंसर की थी और मैंने पुल करते हुए छक्का जड़ा था. मैंने वेटर को वह शॉट याद दिलाया और मजाक में कहा कि अगर एंब्रोस मुझे बाउंसर फेंकने की कोशिश करेगा तो मैं गेंद को मारकर एंटीगा पहुंचा दूंगा. तेंदुलकर ने किताब में कहा, मैं अपनी संभावनाओं को लेकर इतना आश्वस्त था कि मैंने फ्रिज की ओर इशारा किया और कहा कि उसे (वेटर को) शैंपेन की बोतल तुरंत ठंडी करने के लिए लगा देनी चाहिए और मैं अगले दिन आकर इसे खोलूंगा और मैच जीतने के जश्न में उसे गिलास में डालकर दूंगा.
उन्होंने कहा, इसकी जगह हम सिर्फ 81 रन पर ढेर हो गए और वेस्टइंडीज 38 रन से जीत गया. इतने खराब बल्लेबाजी प्रयास के लिए कोई बहाना नहीं था फिर भले ही यह विकेट बल्लेबाजी के लिए मुश्किल क्यों नहीं था। मैं हार के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहता था क्योंकि यह मेरा तरीका नहीं था. वैसे भी मैं उस टीम का हिस्सा था और कप्तान के रुप में यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं टीम को जीत तक लेकर जाऊं.
मुझे कभी यह अहसास नहीं आया कि हम अति आत्मविश्वास में थे लेकिन इसके बावजूद लक्ष्मण के अलावा दूसरी पारी में कोई दोहरे अंक में नहीं पहुंच पाया और यह उस सबसे खराब बल्लेबाजी प्रदर्शन में से एक था जिसका मैं हिस्सा रहा. दो सौ टेस्ट में 15921 रन और 463 वनडे में 18246 रन बनाकर संन्यास लेने वाले तेंदुलकर को इस बात की इतनी पीड़ा है कि वह जब भी इसे याद करते हैं तो इसकी टीस उन्हें महसूस होती है. तेंदुलकर इस मैच में सिर्फ चार रन बना पाए थे.
वेस्टइंडीज के खराब प्रदर्शन पर और अधिक बात करते हुए तेंदुलकर ने कहा कि टेस्ट मैचों के बाद हुई वनडे श्रृंखला ने मुश्किलें और बढा दी जिसमें भारत को 1-4 से शिकस्त का सामना करना पड़ा. तेंदुलकर इस हार से इतने नाराज थे कि वह ड्रेसिंग रुम बैठक में अपने उपर नियंत्रण नहीं रख पाए.
तेंदुलकर ने कहा, टेस्ट श्रृंखला 0-1 से गंवाने के बाद हमने एकदिवसीय श्रृंखला भी गंवा दी. दौरे की अच्छी शुरुआत के बावजूद हम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और यह अंत में घातक साबित हुआ. इस अक्षमता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण सेंट विन्सेंट में तीसरा वनडे मैच था. हमें अंतिम 10 ओवर में 47 रन चाहिए थे और हमारे छह विकेट शेष थे. राहुल और सौरव ने हमारे लिए मंच तैयार किया था और हमें जीत हासिल करनी चाहिए थी.
उन्होंने कहा, बार-बार मैं बल्लेबाजों को निर्देश दे रहा था कि बडे शाट नहीं खेलने और मैदानी शॉट खेलें. मैं कह रहा था कि जोखिम लेने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि हमें प्रति ओवर पांच से कम रन बनाने थे. हालांकि हमारे मध्य क्रम और निचले क्रम के बल्लेबाज गेंद को हवा में खेलते रहे. कुछ विकेट गंवाने से डर बढ़ गया जिसके कारण कुछ रन आउट हुए. टीम को जीत की स्थिति से हारते हुए देखकर मैं काफी गुस्से में था.
तेंदुलकर ने कहा, मैच के अंत में मैंने टीम बैठक बुलाई और लडकों के ड्रेसिंग रुम में आने पर मैंने अपना आपा खो दिया. मैंने अपने दिल से बात की और कहा कि यह प्रदर्शन अस्वीकार्य है. मैंने कहा कि विरोधी के बेहतर खेलने पर मैच हारना अलग चीज है और ऐसी हार से मुझे कोई परेशानी नहीं है. लेकिन जिस मैच में हम पूरी तरह नियंत्रण में हैं वह मैच गंवाना सुझाव देता है कि टीम में कुछ गंभीर गलती है. इसके बाद लेग स्पिनर अनिल कुंबले और तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ जैसे दिग्गज गेंदबाजों ने तेंदुलकर को शांत किया.
तेंदुलकर ने कहा, हम जिस तरह खेल रहे थे उससे मैं काफी निराश था और शाम को अनिल और श्रीनाथ मेरे कमरे में आए और मुझे शांत करने का प्रयास किया. अनिल ने मुझे कहा कि मुझे हार के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए और हमें दक्षिण अफ्रीका तथा वेस्टइंडीज में की गलतियों से सबक लेना चाहिए. हालांकि चीजें मुझ पर हावी होने लगी थी. अंतत: कप्तानी के दौरान हताशा से उबरने और आगे बढने में अंजलि ने तेंदुलकर की मदद की.
तेंदुलकर ने कहा, हर बार की तरह अंजलि ने चीजों को एक परिदृश्य में संजोया और मुझे आश्वस्त किया कि आगामी महीनों में निश्चित तौर पर चीजें ठीक होंगी. अब पीछे देखता हूं तो लगता है कि हताश मुझ पर हावी हो रही थी.