सचिन के लिए कभी विलेन बन गये थे कपिल देव
नयी दिल्ली : सर्वकालिक महान भारतीय ऑलराउंडर और 1983 विश्व कप के विजयी टीम के कप्तान कपिल देव को भी लेकर सचिन ने अपनी आत्मकथा में बड़ा खुलासा किया है. सचिन ने अपने बायोग्राफी में खिला है कि कपिल ने भी कोच के रुप में उन्हें निराश किया था. तेंदुलकर ने दावा किया है कि […]
नयी दिल्ली : सर्वकालिक महान भारतीय ऑलराउंडर और 1983 विश्व कप के विजयी टीम के कप्तान कपिल देव को भी लेकर सचिन ने अपनी आत्मकथा में बड़ा खुलासा किया है. सचिन ने अपने बायोग्राफी में खिला है कि कपिल ने भी कोच के रुप में उन्हें निराश किया था.
तेंदुलकर ने दावा किया है कि ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान वह कपिल से काफी निराश हुए थे क्योंकि कोच ने रणनीतिक चर्चाओं में खुद को शामिल नहीं किया था. तेंदुलकर ने अपनी किताब में लिखा है कि उन्होंने कपिल से काफी उम्मीदें लगा रखी थी.
उन्होंने लिखा है, जब मैं दूसरी बार कप्तान बना तो हमारे साथ कोच के रुप में कपिल देव थे. वह भारत की तरफ से खेलने वाले बेहतरीन क्रिकेटरों में से एक और दुनिया के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडरों में एक थे और मैंने ऑस्ट्रेलिया में उनसे काफी उम्मीदें लगा रखी थी.
तेंदुलकर ने कहा, मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि कोच की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. वह टीम के लिये रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है. ऑस्ट्रेलिया के कडे दौरे के दौरान कपिल से बेहतर कौन हो सकता था जो मेरी मदद करता.उन्होंने लिखा है, लेकिन उनकी भागीदारी का तरीका और उनकी विचार प्रक्रिया सीमित थी जिससे पूरा जिम्मा कप्तान पर आ गया था. वह रणनीतिक चर्चा में शामिल नहीं रहते थे जिससे कि हमें मैदान पर मदद मिलती. तेंदुलकर ने इसके साथ ही अपनी निराशा भी जाहिर की है कि किस तरह से कप्तान के रुप में उनके कुछ फैसले नहीं चले जबकि अन्य कप्तानों के उसी तरह के निर्णय सही साबित होते थे.
इस स्टार बल्लेबाज ने 1997 की शारजाह सीरीज का जिक्र किया है जब उन्होंने रोबिन सिंह को तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतारा लेकिन बायें हाथ का यह बल्लेबाज नाकाम रहा और मीडिया ने इसके लिये उनकी कडी आलोचना की.तेंदुलकर ने लिखा है, पाकिस्तान के खिलाफ 14 दिसंबर का मैच दिखाता है कि किस तरह से चीजें मेरे अनुकूल नहीं रही. मैं चयनकर्ताओं के आग्रह पर उस श्रृंखला में नंबर चार पर बल्लेबाजी कर रहा था. सौरव और नवजोत सिद्धू ने पाकिस्तान के खिलाफ हमें अच्छी शुरुआत दिलायी और जब सिद्धू आउट हुआ तब स्कोर दो विकेट 143 रन था. मैंने ऑलराउंडर रोबिन सिंह को तेजी से रन बनाने के उद्देश्य से क्रीज पर भेजा. मैंने काफी सोच विचार करने के बाद यह फैसला किया था.
उन्होंने लिखा है, लेग स्पिनर मंजूर अख्तर दायें हाथ के बल्लेबाज के लिये राउंड द विकेट गेंदबाजी कर रहा था. रोबिन सिंह को इसलिए भेजा गया कि बायें हाथ का बल्लेबाज होने के कारण वह लेग स्पिन बेहतर तरह से खेल सकता है और कुछ बडे शॉट भी लगा सकता है. लेकिन रोबिन बिना खाता खोले मध्यम गति के गेंदबाज अजहर महमूद की गेंद पर आउट हो गया और यह प्रयोग बुरी तरह असफल रहा.
मीडिया में मुझसे पहले रोबिन को भेजने के फैसले की कडी आलोचना हुई और इसे हार का कारण माना गया. तेंदुलकर ने कहा, एक महीने बाद जनवरी 1998 में अजहर फिर से कप्तान बन गया और उन्होंने ढाका में पाकिस्तान के खिलाफ सिल्वर जुबली इंडिपेंडेस कप में यही तरीका अपनाया.
सौरव और मैंने तेजतर्रार शुरुआत थी और इस बार भी रोबिन को तीसरे नंबर पर भेजा गया. रोबिन ने 82 रन की शानदार पारी खेली. उन्होंने कहा, यह यकीनन बहुत बड़ा जुआ था क्योंकि उसे ऑफ स्पिनर सकलैन मुश्ताक के सामने खड़ा कर दिया गया था और यह किसी से छुपा नहीं है कि बायें हाथ के बल्लेबाजों को ऑफ स्पिनरों को खेलने में परेशानी होती है. तेंदुलकर के अनुसार, अब इसी प्रयोग की मास्टर स्ट्रोक कहकर प्रशंसा होने लगी थी. कहा भी जाता है कि सफलता का श्रेय लेने वाले कई होते हैं लेकिन असफलता पर कोई सामने नहीं आता.