IPL स्पॉट फिक्सिंग : श्रीनिवासन को पड़ी फटकार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कलंक मुक्त हो बीसीसीआई

नयी दिल्ली: आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में आज सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एन श्रीनिवासन से पूछा कि आपने आईपीएल की एक टीम खरीदने के लिए जो 400 करोड़ रुपये का निवेश किया है, उसके पीछे क्रिकेट के प्रति प्रेम है या फिर बिजनेस. आज की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने क्रिकेट प्रशासक के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 9, 2014 11:57 AM

नयी दिल्ली: आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में आज सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एन श्रीनिवासन से पूछा कि आपने आईपीएल की एक टीम खरीदने के लिए जो 400 करोड़ रुपये का निवेश किया है, उसके पीछे क्रिकेट के प्रति प्रेम है या फिर बिजनेस.

आज की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने क्रिकेट प्रशासक के तौर पर किनारा करने के बावजूद एन श्रीनिवासन के तमिलनाडु क्रिकेट संघ की बैठकों में भाग लेने पर एतराज जताया. कोर्ट में श्रीनिवासन ने गलती स्वीकार की, कहा कि उन्हें बैठकों में भाग नहीं लेना चाहिए था.

ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि कोर्ट एन श्रीनिवासन पर कोई अहम निर्णय सुनायेगा. कल मुद्गल समिति की रिपोर्ट पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्रिकेट की पवित्रता बरकरार रखी जानी चाहिए.

न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि हितों का टकराव तो पूर्वाग्रह के समान है और हो सकता है कि वास्तविक पूर्वाग्रह नहीं हो लेकिन पूर्वाग्रह की संभावना होना भी महत्वपूर्ण है.न्यायालय ने कहा कि क्रिकेट की पवित्रता बनाये रखनी है और इसके मामलों की देखरेख करने वाले सभी व्यक्तियों को संदेह से परे होना चाहिए.

न्यायाधीशों ने कहा, सभी परिस्थितियों पर गौर करते समय आपकी यह दलील स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि इसमें हितों का टकराव नहीं था. न्यायालय ने कहा कि इस मामले में चार बिंदु है जिनसे हितों के टकराव का मुद्दा उठता है क्योंकि श्रीनिवासन इंडिया सीमेंट्स के प्रबंध निदेशक हैं, इंडिया सीमेंट्स चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक है और इसका एक अधिकारी सट्टेबाजी में शामिल है जबकि वह खुद बीसीसीआई के मुखिया हैं.

न्यायाधीशों ने श्रीनिवासन की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये आपके इस तर्क को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि इसमें कोई हितों का टकराव नहीं था. सिब्बल का कहना था कि मौजूदा समय में सभी गतिविधियों में हितों का टकराव नजर आता है. इस संबंध में उन्होंने कहा कि हाकी फेडरेशन और फीफा में इसकी अनुमति है.

न्यायालय ने सुझाव दिया कि चुनाव के बाद गठित होने वाले बोर्ड को न्यायमूर्ति मुद्गल समिति की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए. इसके साथ ही न्यायालय ने जानना चाहा कि किसे बीसीसीआई का चुनाव लड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए. न्यायालय ने कहा कि यदि हम उसे इसका फैसला करने की अनुमति दें तो बीसीसीआई को हर तरह के कलंक से मुक्त होना चाहिए. न्यायालय ने सवाल किया कि किसे चुनाव लड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए?

क्या रिपोर्ट में दोषी ठहराये गये व्यक्ति को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा सकती है? न्यायालय ने कहा कि इस रिपोर्ट के निष्कर्षो के आधार पर कार्रवाई करने के लिए क्रिकेट का प्रशासक सभी आरोपों और संदेह से परे होना चाहिए.

न्यायाधीशों ने श्रीनिवासन से कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि फे्रंचाइजी लेने में छल किया गया लेकिन एक बार जब आप टीम के मालिक हो जाते हैं तो टीक में दिलचस्पी और क्रिकेट के प्रशासक के रूप में आप परस्पर विपरीत दिशा में चल रहे होते हैं. न्यायालय ने कहा, आप एक ठेकेदार (सीएसके के मालिक के नाते) हैं और साथ ही ठेका करने वाले पक्ष (बीसीसीआई) के मुखिया भी हैं.न्यायालय ने कहा कि इस मसले को क्रिकेट की जनता के नजरिये से देखना होगा जिसके लिए यह दीवानापन ही नहीं बल्कि धर्म भी है.

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