नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आइपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में एन श्रीनिवासन से जुड़ी हितों के टकराव मसले को काफी गंभीरता के साथ लिया है और इस मामले की जांच कराने का निर्णय भी लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आज निर्णय किया कि वह बीसीसीआई के नियमों में विवादास्पद उस संशोधन की जांच करेगा जिसके तहत हितों के टकराव के मसले पर बहस के बीच पदाधिकारियों को आईपीएल और चैंपियंस लीग में टीमों का स्वामित्व ले सकते थे.
उच्चतम न्यायालय ने हितों के टकराव के मसले को प्रासंगिक बताते हुये कहा कि विवादास्पद संशोधनों की जांच की जायेगी. इस दौरान बीसीसीआई के नियमों में इस प्रावधान को शामिल करने के सवाल पर क्रिकेट प्रशासक एन श्रीनिवासन और आई एस बिन्द्रा के बीच आरोप प्रत्यारोप लगाये गये.
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति एफ एम आई कलीफुल्ला की खंडपीठ ने कहा, बीसीसीआई को ही इस संशोधन का बचाव करना होगा. आईपीएल और चैंपियन लीग को हितों के टकराव के दायरे से बाहर करने और अपने पदाधिकारियों को इन आयोजनों के लिये टीम लेने और उनका प्रयोजन के बारे में अनुमति देने संबंधी बीसीसीआई के नियमों में फरवरी, 2008 में संशोधन 6.2.4 की न्यायालय द्वारा जांच पडताल करने का निर्णय लेने से पहले बिन्द्रा ने कहा कि समस्या की जड यही है और इसी वजह से खेल में लालच आया.
बिन्द्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा, 2008 से ही हितों का टकराव बना हुआ है जिसने सारा गडबडी पैदा की है. इस वजस से क्रिकेट का खेल बर्बाद हो रहा है. लेकिन श्रीनिवासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, संशोधन के बारे में बैठक की कार्यवाही की पुष्टि बिन्द्रा ने ही की थी और आज पांच साल बाद वह इस मसले को उठा रहे हैं.
सिब्बल ने जब यह कहा कि हितों का टकराव और संशोधन को चुनौती नहीं दी गयी है तो न्यायालय ने कहा क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार ने अपने सचिव आदित्य वर्मा के जरिये बीसीसीआई के नियमों में ढील दिये जाने को चुनौती दे रखी है. इस संगठन ने पहले श्रीनिवासन के खिलाफ हितों के टकराव का मसला उठाया था और आरोप लगाया था कि वह इंडिया सीमेन्ट्स कंपनी के प्रबंधन निदेशक हैं जो आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स की मालिक है.
राजीव धवन पर दलीलें पेश कर रहे थे तो न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर दो राय हैं. या तो न्यायालय संशोधन की खुद जांच करे या यह न्यायलाय इस पर गौर करने की बजाये इसे प्रस्तावित समिति के लिये छोड दें कि क्या खेल संस्थाएं इस तरह के प्रावधान रख सकती हैं या नहीं और वह अपना सुझाव दे.
न्यायालय ने कहा कि इस तथ्य की जांच करनी ही होगी कि क्या सैद्धांतिक और नैतिकता इस तरह का प्रावधान रखने की अनुमति देते हैं? इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने आईपीएल के मुख्य संचालन अधिकारी (सीओओ) सुन्दर रमण द्वारा श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मय्यपन और राजस्थान रायल्स के राज कुन्द्रा के अभिनेता विन्दु दारा सिंह के संपर्क में रहने की सूचना मिलने के बावजूद कार्रवाई नहीं करने पर भी सवाल उठाये. विन्दू दारा सिंह आईपीएल-6 में स्पाट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के सिलसिले में कथित रुप से सटोरियों के संपर्क में था.
न्यायाधीशों ने सुन्दर रमण से सवाल किया, आपने सट्टेबाजी और दो व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों के बारे में सूचना मिलने पर बीसीसीआई में किसी से भी बात करना उचित नहीं समझा. मूक दर्शके रुप में आप इसका मजा ले रहे थे. न्यायाधीशों ने सवाल किया, यदि बीसीसीआई के अध्यक्ष का दामाद सट्टेबाजी जैसी गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त हो तो आप क्या करेंगे. आपकों ऐसे अवसर पर साहस दिखाना होगा. लेकिन आपने कुछ नहीं किया. आपको सूचित करना चाहिए था कि मय्यपन सट्टेबाजी में संलिप्त है.
न्यायाधीशों ने ये टिप्पणी उस वक्त की जब सुन्दर रमण के वकील वी गिरि का कहना था कि उसे बीसीसीआई की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई के वाई पी सिंह से सट्टेबाजी के बारे में सूचना मिली थी लेकिन उन्होंने इसे कार्रवाई नहीं करने योग्य सूचना बताया था. न्यायालय ने कहा कि आईपीएल-6 में स्पाट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के बारे में उनके खिलाफ न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल समिति का निष्कर्ष उनके बयान पर भी आधारित है.