नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बार फिर से मुद्गल समिति की रिपोर्ट पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड(बीसीसीआइ) ने आज उन खिलाडियों और प्रशासकों की सूची उच्चतम न्यायालय में पेश की जिनके आईपीएल में व्यावसायिक हित हैं. इनमें सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री और सौरव गांगुली के नाम भी शामिल हैं. न्यायालय ने कहा कि कथित सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग मामले में आदेश बाद में सुनाया जायेगा.
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बीसीसीआई की सूची का अवलोकन किया जिसमें अनिल कुंबले, श्रीकांत, वेंकटेश प्रसाद और लालचंद राजपूत के नाम भी शामिल हैं. इन नामों के अवलोकन के बाद न्यायाधीशों ने कहा, यदि आईपीएल या खेल के किसी अन्य स्वरुप में आपके व्यावसायिक हित हैं तो आपको प्रशासन में नहीं रहना चाहिए. बीसीसीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुन्दरम ने यह सूची सौंपते हुये कहा कि किसी न किसी रुप में इन सभी के आईपीएल में व्यावसायिक हित हैं.
सुन्दरम ने कहा, इनमें से कुछ कमेन्टरी करते हैं और कुंबले तथा श्रीकांत जैसे खिलाड़ी आईपीएल टीम मुंबई इंडियंस और सनराइजर्स हैदराबाद के सलाहकार हैं. न्यायालय ने कहा कि जहां तक आईपीएल या चैम्पियंस लीग का सवाल है तो आपने (बीसीसीआई) उन्हें नियम 6.2.4 से हटा दिया है. अब इसे ही देखते हैं. श्रीकांत चयन समिति में भी हैं और वह सनराइजर्स हैदराबाद के सलाहकार भी हैं.
न्यायाधीशों ने सवाल किया कि आप उन्हें चयन समिति में कैसे रख सकते हैं. आप इसे कैसे न्यायोचित ठहरायेंगे. आपने कैसे श्रीकांत को चयनकर्ता के रुप में काम करने की अनुमति दी जबकि आईपीएल में उनकी भूमिका है. हम राष्ट्रीय टीम के चयन के बारे में बात कर रहे हैं. बीसीसीआई के वकील ने कहा कि ये हितों के टकराव के संभावित मामले हैं और यदि इन्हें हितों का टकराव माना गया तो बहुत ही विकट स्थिति हो जायेगी.
सुंदरम ने कहा कि अगर हितों के टकराव के मामले सामने आते हैं तो इससे निपटने के प्रभावी तरीके खोजे जा सकते हैं. उन्होंने कहा, महेंद्र सिंह धौनी चेन्नई सुपरकिंग्स टीम के प्रमोटर हैं. वह राष्ट्रीय टीम के कप्तान भी हैं और भारतीय टीम के चयन में अहम भूमिका निभाते हैं.
उन्होंने कहा, हितों के टकराव की स्थिति से निपटने के तरीके पर हम फैसला कर सकते हैं. अदालत ने कहा कि नीलामी में खुद को रखने वाले लोगों और निश्चित राशि के लिए अपनी सेवा देने वाले तथा खेल के नतीजे को लेकर उत्सुक नहीं रहने वाले लोगों (जैसे कमेंटेटरों) में अंतर है.
खंडपीठ ने कहा, कमेंटेटरों की मैच के नतीजे में दिलचस्पी नहीं होती. उनकी भूमिका महाभारत के संजय की तरह है. वह नतीजों को लेकर उत्सुक नहीं होते. श्रीनिवासन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि एक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए हितों के टकराव का आरोपी नहीं ठहराया जा सकता कि वह प्रशासक है और साथ ही ऐसी कंपनी का हिस्सा है जो टीम की मालिक है.
उन्होंने कहा, अगर मेरा बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर होना और टीम का मालिक होना हितों का टकराव है तो कृपा करके मेरे खिलाफ आदेश दीजिए. सिब्बल ने कहा कि हितों का टकराव हर जगह होता है. शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हितों का टकराव नहीं होता हो. उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका में भी होता है.